स्वास्थ्य/चिकित्सा: डॉ. के.के. अग्रवाल भारत में 'क्लॉट बस्टर' और 'कलर डॉपलर' के जनक, चिकित्सा क्षेत्र में लाए क्रांति

नई दिल्ली, 4 सितंबर (आईएएनएस)। जब भारत के मशहूर चिकित्सकों की चर्चा होती है, तो डॉ. कृष्ण कुमार अग्रवाल (के. के. अग्रवाल) का नाम प्रमुखता से सामने आता है। उन्होंने अपने उत्कृष्ट योगदान से चिकित्सा क्षेत्र को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। डॉ. अग्रवाल ने न केवल हृदय रोगों के उपचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, बल्कि चिकित्सा जागरूकता और शिक्षा के प्रसार में भी उल्लेखनीय काम किया।
5 सितंबर 1958 को नई दिल्ली में पैदा हुए डॉक्टर के.के. अग्रवाल ने 1979 में नागपुर विश्वविद्यालय से एमबीबीएस और 1983 में महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज से एमडी की डिग्री प्राप्त की। वे नई दिल्ली के मूलचंद मेडसिटी में 2017 तक वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत रहे।
महात्मा गांधी इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के मुताबिक, डॉ. अग्रवाल ने 1984 में भारत में पहली बार तीव्र मायोकार्डियल इन्फ्रक्शन (हार्ट अटैक) के रोगियों में क्लॉट बस्टर्स का इस्तेमाल शुरू किया। 1987 में उन्होंने उत्तर भारत में कलर डॉपलर इकोकार्डियोग्राफी की शुरुआत की। वे हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के मानद सचिव-जनरल रहे। उन्होंने भारतीय चिकित्सा संघ (आईएमए) के राष्ट्रीय अध्यक्ष (2016-17) के रूप में भी काम किया।
डॉ. के.के. अग्रवाल ने चिकित्सा शिक्षा को न केवल नया आयाम दिया, बल्कि उन्होंने दिल्ली इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्युटिकल साइंसेज एंड रिसर्च में विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में भी पढ़ाया। उन्होंने एलोवेद सहित कई पुस्तकें लिखीं, जिनमें आयुर्वेद और योग को आधुनिक चिकित्सा के साथ जोड़ा। उनकी 129 से अधिक शोध पत्रिकाएं (रिसर्च जर्नल), जैसे 'द अमेरिकन जर्नल ऑफ कार्डियोलॉजी' और 'इंडियन हार्ट जर्नल,' में प्रकाशित हुईं।
इसके अलावा, अग्रवाल ने सबसे अधिक लोगों को हैंड्स-ओनली सीपीआर (कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन) तकनीक सिखाने का 'लिम्का बुक ऑफ' वर्ल्ड रिकॉर्ड भी बनाया। महामारी के दौरान उन्होंने सोशल मीडिया और यूट्यूब के माध्यम से कोविड-19 से संबंधित मिथकों को दूर करने और लोगों को शिक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई। अपने अंतिम दिनों में भी वे वेंटिलेटर पर रहते हुए वीडियो के जरिए जनता को जागरूक करते रहे।
चिकित्सा के क्षेत्र में योगदान के लिए 2010 में सरकार ने उन्हें पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया। दुर्भाग्यवश, 17 मई 2021 को, नई दिल्ली के एम्स में कोविड-19 से लंबी लड़ाई के बाद 62 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। उनके निधन से चिकित्सा जगत को अपूरणीय क्षति हुई, लेकिन उनकी शिक्षाएं और कार्य आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करते हैं।
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Created On :   4 Sept 2025 6:40 PM IST