हिमाचल की हार से नहीं लिया सबक तो बीजेपी को हो सकता है चार राज्यों में बड़ा नुकसान, बीजेपी नेताओं की गुटबाजी बन रही है पार्टी की हार की वजह

हिमाचल की हार से नहीं लिया सबक तो बीजेपी को हो सकता है चार राज्यों में बड़ा नुकसान, बीजेपी नेताओं की गुटबाजी बन रही है पार्टी की हार की वजह
भारी पड़ेगी गुटबाजी! हिमाचल की हार से नहीं लिया सबक तो बीजेपी को हो सकता है चार राज्यों में बड़ा नुकसान, बीजेपी नेताओं की गुटबाजी बन रही है पार्टी की हार की वजह

डिजिटल डेस्क,भोपाल,राजा वर्मा।  हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने भले ही गुजरात में बड़ी जीत हासिल की है लेकिन हिमाचल में मिली हार ने उस जीत को फीका करने का काम किया है तो वहीं कांग्रेस इसे संजीवनी मान कर चल रही है। हिमाचल में मिली हार के बाद अब बीजेपी समीक्षा करने में जुड़ी हुई है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक बीजेपी आलाकमान भी यह मान रहा है कि संगठन में गुटबाजी की वजह से पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा । 

जानकारी के मुताबिक गृह मंत्री ने राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और संगठन महासचिव बीएल संतोष के साथ हिमाचल में मिला बड़ी हार को लेकर चर्चा की है। यह हार बीजेपी संगठन पर कई सवाल खड़े कर रही है क्योंकि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष खुद भी हिमाचल प्रदेश से ही आते हैं। यही नहीं केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के गृह जिले में बीजेपी को एक सीट में भी जीत नहीं मिल पाई है। इसके साथ ही केंद्र में मजबूत सरकार होने के बाद भी राज्यों में आंतरिक गुटबाजी ने पार्टी नेताओं की टेंशन बढ़ा दी है। बीजेपी समय रहते अगर गुटबाजी को समाप्त करने में सफल नहीं हो पाती है तो आने वाले साल में पार्टी को कई राज्यों में भी इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है। 

आने वाले साल में कई राज्यों में  चुनाव होने है यहां पर अभी से गुटबाजी दिखाई दे रही है। बीजेपी को इस गुटबाजी को समाप्त करने के लिए अभी से काम करना होगा। आइए जानते हैं किन-किन राज्यों में पार्टी के अंदर गुटबाजी हावी है?

कर्नाटक 

कर्नाटक में भारतीय  जनता पार्टी के अंदर गुटबाजी चरम पर है। कई बार गुटबाजी के मामले सामने भी आ चुके हैं। यहां पर पूर्व सीएम येदियुरप्पा और वर्तमान सीएम बीएस बोम्मई गुट के बीच टकराव की स्थिति हमेशा बना रहती है। बता दें ऑपरेशन लोटस के तहत 2019 में सरकार बनने के बाद येदियुरप्पा को सीएम बनाया था। लेकिन बाद में 2021 के जुलाई माह में येदियुरप्पा को हटाकर बीएस बोम्मई को राज्य का सीएम बनाया गया। तब से ही येदियुरप्पा गुट ने सीएम और पार्टी हाईकमान के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। बात दें बीतों दिनों ही पार्टी ने डैमेज कंट्रोल करने के लिए येदियुरप्पा को केंद्रीय पार्लियामेंट बोर्ड का सदस्य नियुक्त किया गया है। 

बात दें कर्नाटक में फरवरी 2023 में चुनाव होना है। ऐसे में चुनाव से पहले येदियुरप्पा को साधना पार्टी के लिए अहम है क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता है और यहां पर दोनों गुट एक दूसरे के लिए हावी हो गए तो कर्नाटक की सत्ता हाथ से निकल सकती है। येदियुरप्पा जिस लिंगायत समुदाय से आते हैं उनकी आबादी राज्य में करीब 18 फीसदी है। 

राजस्थान  

राजस्थान में बीजेपी को 2018 के विधानसभा चुनावों में मिली हार के बाद से ही गुटबाजी हावी है। यहां पर केंद्रीय मंत्री गजेंद्र शेखावत और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे सिंधिया के बीच टकराव जारी है। इसके साथ ही बीजेपी प्रदेश सतीश पूनिया के खिलाफ भी वसुंधरा गुट ने लगातार मोर्चा खोल रखा है। बीते साल ही जुलाई में पूनिया और शेखावत के खिलाफ बयान देने वाले वसुंधरा के एक करीबी और पूर्व मंत्री को बीजेपी ने पार्टी से निकाल दिया था। बीजेपी ने भले ही कई तरह के प्रयास किए हो लेकिन गतिरोध रूका नहीं। गतिरोध तब  भी नहीं रूका इसी साल राज्य सभा चुनाव में वसुंधरा के करीबी विधायक माने जाने वाले विधायक ने पार्टी के खिलाफ जाकर क्रॉस वोटिंग कर दिया था। 

मध्य प्रदेश

2018 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को हार कर सामना करना पड़ा था। लेकिन चुनाव हारने के बावजूद ऑपरेशन लोटस के तहत भारतीय जनता पार्टी मध्य प्रदेश में सरकार बनाने में सफल रही। बीजेपी की सरकार बनाने में सबसे अहम किरदार कांग्रेस के वरिष्ट नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ही थे। बीजेपी ने फिर से शिवराज सिंह चौहान को सीएम बनाया। 

लेकिन बीजेपी की सरकार बनने के बाद से सीएम शिवराज सिंह चौहान और नरोत्तम मिश्रा के बीच में कई बार आपसी टकराव देखने को मिले हैं। नरोत्तम मिश्रा कभी बैठक छोड़कर गए तो कभी मंच पर सीएम शिवराज सिंह के भाषण पर मंत्री को ताली बजाते देख उनको मना करते हुए भी देखा गया है। वहीं मई में सीएम हाउस में एक कार्यक्रम के दौरान नरोत्तम को जब बोलने का मौका नहीं मिला, तो उन्होंने मंच छोड़ दिया था। 

सिंधिया गुट भी हावी 
 कांग्रेस से बीजेपी में आए सिंधिया गुट भी पार्टी के भीतर हावी है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा  सकता है कि राज्य में हुए  उपचुनाव में सिंधिया समर्थकों को सबसे  ज्यादा टिकिट दिए गए थे। टिकट से लेकर पोर्टफोलियों बंटवारे तक में सिंधिया गुट की सक्रियता ने कई बार पार्टी के लिए परेशानी खड़ी की है। एमपी में भी आने वाले साल में चुनाव होना है ऐसे में चुनाव को एक साल से कम वक्त बचा है। अगर एमपी में भी गुटबाजी जारी रही तो पार्टी को बड़ा नुकसान  उठाना पड़ सकता है। 

छत्तीसगढ़

साल 2018 में बीजेपी को राजस्थान और एमपी की तरह ही करारी हार का सामना करना पड़ा था। पार्टी को मिली हार के बाद से ही संगठन ने फिर से बीजेपी को यहां पर मजबूत करने के लिए कई तरह के प्रयोग किए लेकिन पार्टी नेताओं के बीच आपसी गुटबाजी की वजह से यह सब फेल हो गया। राज्य में पूर्व सीएम रमन सिंह, पूर्व नेता प्रतिपक्ष धर्मलाल कौशिक, पूर्व अध्यक्ष विष्णुदेव साय के बीच गुटबाजी चरम पर है। 

राज्य में बढ़ती गुटबाजी को देखते हुए इस साल के शुरुआत में ही पार्टी ने बड़ा फैसला लेते हुए प्रदेश प्रभारी से लेकर अध्यक्ष से लेकर नेता प्रतिपक्ष तक को हटा दिया था। लेकिन इन सब के बाद भी पार्टी के परफॉरमेंस में कोई सुधार देखने को नहीं मिला है। राज्य में भी अगले साल विधानसभा चुनाव होना है। पार्टी के अंदर अगर ऐसे ही गुटबाजी चलती रही तो भूपेश सरकार को टक्कर देना मुश्किल हो सकता है।           

चार राज्यों में होंगे विधानसभा चुनाव 

बता दें साल 2023 में चार राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं जिसमें से कर्नाटक और मध्यप्रदेश में बीजेपी की सरकार है। जबकि छत्तीसगढ़ और राजस्थान में विपक्ष की भूमिका में है। सूत्रों की माने तो बीजेपी मिशन 2024  को लेकर अभी ले प्लान तैयार करने में जुट गई है ऐसे में बीजेपी के लिए आने वाले साल में होने वाले विधानसभा चुनाव काफी अहम होगें। बीजेपी के  पास जहां दो  राज्यों में सरकार बचाने की चुनौती है तो वहीं दो राज्यों में जीत दर्ज करने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। वर्तमान में माना यह जा रहा है कि बीजेपी को चुनावों से पहले गुटबाजी को पार्टी के अंदर समाप्त करना होगा तभी वह इन राज्यों में कुछ अच्छा कर पाएगी। 

    

Created On :   12 Dec 2022 11:34 AM GMT

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story