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16 करोड़ रुपए का 1 इंजेक्शन , मिलने पर ही हो सकेगा उपचार

चंद्रकांत चावरे , नागपुर। कुछ ऐसी दुर्लभ बीमारियां हैं, जिनकी दवा भारत में उपलब्ध नहीं है। इनका इलाज कराना गरीब तो दूर, हर किसी के बस की बात नहीं है। इनके इलाज में करोड़ों रुपए खर्च आते हैं। नागपुर में दो बच्चे ऐसे हैं, जिन्हें इस तरह की दुर्लभ बीमारियां हैं। 10 साल के चैतन्य को मस्कुलर डिस्ट्रॉफी नामक बीमारी है। विशेषज्ञ डॉक्टर के अनुसार इसके लिए 16 करोड़ रुपए चाहिए, वहीं दूसरा बच्चा डेढ़ साल का विहान है। इसे स्पाइनल मस्कुलर एट्राॅफी नामक बीमारी है। इस बच्चे को भी 16 करोड़ रुपए के इंजेक्शन की जरूरत है।
10 साल का चैतन्य मौंदेकर 6 साल का होने तक पूरी तरह स्वस्थ था। 2017 में अचानक उसके पैरों में दुर्बलता आई। दिन-ब-दिन उसके पैरों में कमजोरी आती गई और उसका चलना-फिरना बंद हो गया। मेडिकल जांच में उसको मस्कुलर डिस्ट्रॉफी नामक बीमारी पता चली। इस बीमारी के इलाज के लिए करोड़ों का खर्च बताया गया है। परिजनों ने आर्थिक परिस्थिति खराब होने के कारण अब चैतन्य का उपचार करने का विचार त्याग दिया। दो साल से उपचार बंद है। अब चैतन्य रेंगते हुए जीवन बीता रहा है।
दो साल से उपचार बंद है
चैतन्य मस्कुलर डिस्ट्रॉफी नामक बीमारी का शिकार है। उसके उपचार के लिए अमेरिका से इंजेक्शन मंगवाना है। वहां पर इसकी कीमत 22 करोड़ रुपए है। परिजनों की आर्थिक स्थिति कमजोर होने से पिछले दो साल से उसकी नियमित जांच व सामान्य उपचार बंद कर दिया है। हम सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों से मदद मांग रहे हैं।
-चंद्रशेखर मौंदेकर (चैतन्य के पिता)
विहान आकुलवार की उम्र मात्र डेढ़ साल की है। यह बच्चा चल-फिर नहीं सकता। जन्म के दो महीने बाद ही विहान की तबीयत बिगड़ने लगी। विहान के पिता पेशे से डॉक्टर हैं। विहान को स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी नामक बीमारी है। इस बीमारी के शिकार बच्चे दो साल से अधिक नहीं जी पाते हैं। दो साल के भीतर ही उनका उपचार करवाना पड़ता है। जीन थेरेपी उपचार पद्धति देनी पड़ती है। इसके लिए इंजेक्शन 22 करोड़ रुपए का है, जिसे अमेरिका से मंगाना पड़ता है। सरकारी रियायत के बाद इसकी कीमत 16 करोड़ रुपए है।
उपचार के बाद चल सकेगा
विहान डेढ़ साल का है। उसे स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी नामक बीमारी है। इसके उपचार के लिए 16 करोड़ रुपए का जोलगेन्समा इंजेक्शन चाहिए। यह इंजेक्शन अमेरिका में मिलता है। लोगों से मदद की अपील की जा रही है। यह इंजेक्शन लगाने के बाद विहान चल सकेगा। -डॉ. विक्रांत आकुलवार (विहान के पिता)
एक-दो मामले सामने आते हैं
दुर्लभ बीमारियों के साल में एक-दो मामले सामने आते हैं। उनका उपचार जीन थेरेपी पद्धति से किया जाता है। उपचार के लिए जरूरी इंजेक्शन अमेरिका से मंगाना पड़ता है। शुरुआत में ही इसका इलाज किया गया तो लाभ मिलता है। समय अधिक बीतने पर यह बीमारियां जानलेवा साबित होती हैं। उपचार के दौरान डॉक्टरों द्वारा फिजियोथेरेपी या अन्य पद्धति से राहत दिलाने का प्रयास किया जाता है। डॉ. चंद्रकांत बोकडे, पीडियाट्रिशियन, मेयो अस्पताल नागपुर
मस्कुलर डिस्ट्रॉफी
इस बीमारी में शरीर की मांसपेशियां धीरे-धीरे कमजोर हो जाती हैं। एक समय के बाद वे काम करना बंद कर देती हैं। बढ़ती उम्र के साथ यह बीमारी पूरे शरीर को घेर लेती है। चलने-फिरने में दिक्कत होती है। बिना सहारे के खड़े नहीं हो सकते। श्वास लेने में परेशानी होने लगती है। रीढ़ की हड्डी झुकने लगती है। पैर की पिंडलियां मोटी हो जाती हैं। मांसपेशियां फूलने लगती हैं। यह बीमारी बच्चों को ही होती है, जो जानलेवा है।
स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी
शरीर में प्रोटीन तैयार करने वाला एक जीन होता है। इस बीमारी से ग्रस्त बच्चों में यह जीन नहीं होता, इसलिए शरीर में प्राेटीन तैयार नहीं हो पाता। इससे शरीर की तंत्रिकाएं काम नहीं कर पातीं। मस्तिष्क की मांसपेशियां काम करना बंद कर देती हैं। इस बीमारी से ग्रस्त बच्चों का उपचार 2 साल के भीतर करना पड़ता है। अन्यथा मरीज की जान जा सकती है।
सरकारी रियायत 6 करोड़ मिलती
मस्कुलर डिस्ट्रॉफी और स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी के उपचार के लिए जरूरी इंजेक्शन भारत में उपलब्ध नहीं हैं। जोलगेन्समा नामक इंजेक्शन अमेरिका से मंगाना पड़ता है। इसकी कीमत 22 करोड़ रुपए है। सरकारी रियायत 6 करोड़ मिलने पर इसकी कीमत 16 करोड़ रुपए हो जाती है। सरकार की तरफ से ऐसी बीमारियों के उपचार के लिए मदद नहीं मिलती है।
Created On :   14 May 2022 6:16 PM IST