कुपोषण : 378 शिशुआें ने मां के पेट में ही तोड़ा दम, मेलघाट में अब तक 1257 बच्चों की मौत

1257 children dead during six years in Melghat - 378 Infants die in womb
कुपोषण : 378 शिशुआें ने मां के पेट में ही तोड़ा दम, मेलघाट में अब तक 1257 बच्चों की मौत
कुपोषण : 378 शिशुआें ने मां के पेट में ही तोड़ा दम, मेलघाट में अब तक 1257 बच्चों की मौत

डिजिटल डेस्क, नागपुर। कुपोषण के लिए कुख्यात मेलघाट में पिछले साड़े छह साल में 1257 बच्चों की मौत होने का खुलासा RTI में हुआ है। इसमें 378 ऐसे शिशु है, जिनकी इस दुनिया में आने के पहले ही पेट में मृत्यु हो गई। अमरावती जिले के आदिवासी बहुल मेलघाट में कुपोषण भगाने के लिए सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद बच्चों की इतने बड़े पैमाने पर मौत होना बेहद चिंताजनक है। अमरावती जिले के चिखलदरा तहसील के तहत आने वाले आदिवासी बहुल मेलघाट में कुल 158 गांव आते है, जिसकी जनसंख्या 1 लाख 10 हजार 465 है।

इसमें आदिवासियों की जनसंख्या 89 हजार 408 है। चिखलदरा में आनेवाले 158 गांवों में 1 अप्रैल 2012 से 30 जून 2018 तक (साड़े छह साल) कुल 14805 बच्चों का जन्म हुआ। इसीतरह इस दौरान 1257 बच्चों की मौत हुई है। इसमें एक साल तक के 659, छह साल तक के 220 व गर्भ में मृत्यु पानेवाले 378 शिशु शामिल है। इन साड़े छह सालों में 28 गर्भवति माताआें की भी मृत्यु हुई है। 

नहीं भरे बाल रोग विशेषज्ञ के पद
इस क्षेत्र में ग्रामीण अस्पताल, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, आयुर्वेदिक व एलोपैथिक अस्पतालों की संख्या 9 है। इतने बड़े पैमाने पर बच्चों की मौत होने के बावजूद इन अस्पतालों में बाल रोग विशेषज्ञ, स्त्री रोग विशेषज्ञ व एनेस्थिसिया जैसे पद भरे नहीं गए है। इसकारण रोगियों को इलाज के लिए बाहर जाना पड़ता है। 1 जनवरी 2017 से 30 जून 2018 तक (डेढ़ साल) अस्पताल में 1 लाख 15 हजार 116 रोगी इलाज के लिए पहुंचे, जो आेपीडी में इलाज कराके वापस चले गए। इस दौरान 6531 रोगी अस्पतालों में भर्ती हुए। 

कम पड़ रहे सरकारी प्रयास
RTI एक्टिविस्ट अभय कोलारकर के मुताबिक सरकार एनजीआे के साथ मिलकर यहां ज्यादा से ज्यादा मेडिकल सुविधा उपलब्ध करा रही है, लेकिन बच्च्ों की मौत के आंकडों से स्पष्ट होता है कि सरकारी प्रयास कम पड़ रहे है। मेडिकल ट्रीटमेंट के प्रति अज्ञानता भी बच्चों की मौत के पीछे एक बड़ा कारण है। जच्चा व बच्चा दोनों को प्रोटीनयुक्त खाद्य नहीं मिलने के कारण भी बच्चों की मौत हो जाती है। समुचित स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिलने से पेट में 378 शिशु मर गए। आदिवासी इलाके में मेडिकल ट्रीटमेंट से ज्यादा देसी उपायों पर जोर दिया जाता है। यह देसी उपाय भी भारी पड़ जाता है। मेडिकल सुविधा देने के साथ ही मेडिकल अवेरनेस अभियान की भी जरूरत है। बाल रोग, स्त्री रोग जैसे पद नहीं भरना गंभीर बात है। 

Created On :   12 Nov 2018 4:52 PM GMT

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