- Home
- /
- 163 सरकारी अस्पताल 'राष्ट्रीय...
163 सरकारी अस्पताल 'राष्ट्रीय स्वास्थ्य मानक' पर फिसड्डी

डिजिटल डेस्क, नागपुर। इस बार के बजट में राज्य सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य अभियान के तहत 964 करोड़, महात्मा ज्योतिबा फुले जन आरोग्य में 576 करोड़, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना में 65 करोड़ का प्रावधान कर राज्य में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने का दावा किया है। लेकिन नागपुर संभाग के 254 में से 163 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ऐसे हैं, जहां सुविधाओं की कमी है। अनेक खामियों के चलते यह अस्पताल अब तक भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानक को पूर्ण नहीं कर पाए। जबकि हर केंद्र के लिए डेढ़ लाख रुपए सालाना खर्च किया जाता है, वहीं प्रत्येक जिले पर औसतन 30 से 40 करोड़ रुपए विविध योजनाओं में खर्च किए जाते हैं। ऐसे में खुद ही बीमार पड़े 163 अस्पतालों से उत्तम स्वास्थ्य सेवा का लाभ पाने की उम्मीद नहीं की जा सकती।
स्वास्थ्य मानक पर क्यों खरे नहीं उतरे ?
सरकारी अस्पताल व स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार को लेकर महाराष्ट्र को अग्रसर बताया जाता रहा है, लेकिन पूर्व विदर्भ के 6 जिलों में मौजूद 254 में से 163 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र आज तक भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानक पर क्यों खरे नहीं उतर पा रहे हैं, इसकी गंभीरता से चिंता व समीक्षा करने की आवश्यकता है। वहीं कुल केंद्रों में से 125 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ऐसे हैं, जिन्होंने राज्य के सरकारी स्वास्थ्य संस्था के स्वच्छ, सुसज्ज व लोकाभिमुख के मानक के काबिल भी नहीं बन सके। भवन, मानव संसाधन, दवा एवं आवश्यक जांचों की उपलब्धता सुनिश्चित कराने में मिल रही विफलता का यह हाल तब है जब सर्वत्र ‘स्वस्थ भारत, समृद्ध भारत’ तथा ‘आयुष्मान भारत’ के लिए नारे लगाते हुए सभी राज्यों की सरकारें स्वास्थ्य सुविधाओं की बेहतरी के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही हैं।
उत्तम स्वास्थ्य सुविधा दिलाने के लिए हर संभव प्रयास
हर नागरिक को उत्तम स्वास्थ्य सुविधा दिलाने के लिए सरकार हरसंभव प्रयास कर रही है। हर गरीब को 5 लाख रुपए तक का कैश मेडिकल सुविधा का लाभ, आधी आबादी को आयुष्मान भारत के तहत राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना का लाभ, गरीब मरीजों का इंश्योरेंस, कैशलेस इलाज देने की घोषणा बीते माह की गई। सरकारी अस्पतालों को सक्षम बनाकर इलाज दिलाने की मंशा है।
हेल्थ और वेलनेस सेंटर खुलवाकर जरूरी दवाएं और जांच सेवाएं फ्री में मुहैया कराने की योजना है। ऐसे में नागपुर सहित पूर्व विदर्भ के वर्धा, भंडारा, गोंदिया, चंद्रपुर एवं गड़चिरोली जिलों में मौजूद प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर प्रत्येक वर्ष डेढ़ लाख रुपए के हिसाब से बीते अनेक वर्षों में करोड़ों रुपए खर्च किए गए। बावजूद उन अस्पतालों की स्थिति दयनीय होने के चलते सरकार की मंशा ध्वस्त होते दिखाई पड़ती है। वहीं प्रशासन अपनी नाकाम स्थिति से बाहर नहीं निकल पा रहा है।
आला अधिकारियों को नहीं परवाह
वर्षों से पुराने ढर्रे पर चल रही स्वास्थ्य व्यवस्था में बदलाव करने की दिशा में कठोर कदम नहीं उठाया जाना, यहीं के प्रशासन के आला अधिकारियों की लापरवाह कार्यप्रणाली की पोल खोल रहा है। मरीजों के जरूरत के समय उसे स्वास्थ्य संबंधित सुविधाएं नहीं मिलने से संभाग में निजी अस्पतालों की बाढ़ सी आ गई है। मरीजों के शोषण तंत्र के मूल में यही प्रशासनिक व्यवस्था जिम्मेदार है। जबकि मानकों को कठोरता से अमल किया जाता है तो सभी प्रा. स्वास्थ्य केंद्रों को क्रियाशील, सुलभ, नियमित करना होगा। मानक के अनुसार कर्मचारी, चिकित्सक, अधीक्षक, प्रभारी चिकित्साधिकारी, एएनएम आदि की नियुक्ति कर उन्हें निवासी रखने की पाबंदी होगी। केंद्र में विद्युत, जलापूर्ति व जनरेटर बैकअप जैसी सभी सुविधाएं देनी होगी।
Created On :   11 March 2018 5:39 PM IST