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17 साल बाद अनुकंपा नियुक्ति की मांग करने वाली बेटी को हाईकोर्ट से राहत नहीं

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने 17 वर्षों तक अनुकंपा नियुक्ति को लेकर कोई कदम न उठाने वाली विवाहित बेटी को राहत देने से इंकार कर दिया है। विवाहित बेटी ने दावा किया था कि उसके साथ उसकी विधवा मां रहती है। अपनी मां कि देखरेख के लिए उसे नौकरी की जरुरत है। नियुक्ति के लिए उसने राज्य सरकार के एक शासनदेश को आधार बनाया था जिसके तहत विवाहित बेटी को अनुकंपा नियुक्ति के लिए पात्र माना गया है।
इसके साथ ही उसने दावा किया था कि अगस्त 1996 में पिता की मौत के बाद उसने अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया था, लेकिन जिस स्थानीय निकाय में उसके पिता कार्यरत थे, उसने अप्रैल 1997 में उसके अावेदन को खारिज कर दिया था। याचिका के मुताबिक उसके पिता चुंगी वसूली विभाग में निरीक्षक के पद पर तैनात थे। न्यायमूर्ति शांतनु केमकर व न्यायमूर्ति नीतिन सांब्रे की बेंच के सामने याचिका पर सुनवाई हुई।
याचिका में उल्लेखित तथ्यों पर गौर करने के बाद बेंच ने कहा कि एक बार अनुकंपा नियुक्ति का आवेदन रद्द होने के बाद याचिकाकर्ता ने और कोई कदम क्यो नहीं उठाए? याचिकाकर्ता के वकील ने इसका कोई संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं दिया। इस पर बेंच ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति की योजना वित्तीय संकट से उबरने व परिवार को आर्थिक सहायता देने के उद्देश्य से बनाई गई है। जहां तक मामला याचिकाकर्ता की मां की है तो उन्हें नियोक्ता की ओर से पेंशन दी जाती है।
इस लिहाज से हमे इस मामले में किसी प्रकार की हस्तक्षेप की जरुरत नहीं महसूस होती है, क्योंकि प्रकरण से जुड़े तथ्य अनुकंपा नियुक्ति की योजना के अनुरुप नहीं है। यह कहते हुए बेंच ने विवाहित बेटी को राहत देने से इंकार कर दिया।
Created On :   22 July 2018 3:47 PM IST