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भोपाल गैस त्रासदी की 34वीं बरसी: हादसे ने ली थी हजारों लोगों की जान
डिजिटल डेस्क, भोपाल। राजधानी भोपाल में गैस त्रासदी को कभी नहीं भुलाया जा सकेगा। हर साल गैस त्रासदी की बरसी के साथ ही इस घटना में पीड़ित हुए लोगों के जख्म फिर से हरे हो जाते हैं। तीन दिसम्बर को भोपाल गैस त्रासदी की 34वीं बरसी है, लेकिन पीड़ित लोगों को अब भी एक उम्मीद है कि शायद उन्हें इंसाफ कभी ना कभी जरुर मिलेगा। हाल ही चुनावी रण के दौरान भोपाल के उत्तर, मध्य और नरेला तीन सीटों पर एंडरसन का मुद्दा छाया रहा। इस बीच चुनावी क्षेत्र में खड़े होने वाले प्रत्याशियों ने भी पीड़ितों को यह विश्वास दिलाया कि वे उनकी हर संभव मदद करेंगे।

हादसे के बाद जो लोग बचे वे अपनी जान का जोखिम देखते हुए शहर से दूर पलायन करते नजर आने लगे। सबसे बुरी तरह प्रभावित हुई कारखाने के पास स्थित झुग्गी बस्ती। यहां रहने वाले लोग रोजगार की तलाश में आकर कारखाने के मजदूर के रूप में कार्य कर रहे थे।
इस बात की किसी को भनक तक नहीं थी, कि कभी उन लोगों को रोजगार और जिंदगी देने वाला कारखाना उनके लिए मौत की नींद सुला देगा।

बताया जाता है कि त्रासदी का बढ़ा रूप लेने की एक वजह समुचित डॉक्टरी सुविधाओं का उपलब्ध नहीं होना रहा। त्रासदी की बढ़ी वजह कारखाने में टैंक नंबर 610 में जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का पानी से मिल जाना था। इससे हुई रासायनिक प्रक्रिया की वजह से टैंक में दबाव पैदा हो गया और टैंक खुल गया और उससे गैस रिसी। इस गैस की चपेट में जो भी आया, जिंदा नहीं बच सका।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस लापरवाही की वजह से करीब 5 लाख से अधिक लोग मिथाइल आइसोसाइनेट गैस और दूसरे जहरीले रसायनों के रिसाव की चपेट में आए थे। इस घटना में करीब 25 हजार लोगों ने अपनी जान गंवाई थी। हालांकि ये सिलसिला साल दर साल जारी रहा, क्यों कि जो लोग इस त्रासदी में बचे उनका जीवन सिर्फ दवाओं और दुआओं के सहारे ही व्यतीत होता चला गया। इस त्रासदी को दुनिया के औद्योगिक इतिहास की सबसे बड़ी दुर्घटना के रूप में जाना जाता है।

बता दें कि 34 बरस पहले 1984 में 3 दिसंबर की रात मौत ने हजारों लोगों को अपने आगोश में ले लिया था। ये मंजर इतना भयानक था कि देखने वालों की रूह कांप उठी। भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड के कारखाने से जब जहरीली गैस का रिसाव हुआ तो पूरे शहर में मौत का तांडव सा मच गया। इस गैस त्रासदी ने कई जिंदगियों को लील लिया, वहीं कई बचने वाले ऐसे रहे जो अब तक इसका दंश झेल रहे हैं। 1984 में हुए इस हादसे से अब भी यह शहर उबर नहीं पाया है।
Created On :   1 Dec 2018 5:58 PM IST