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देशी बीज से बदलेंगे किस्मत, 5199 किसान कर रहे संवर्धन

डिजिटल डेस्क, वर्धा। देशी बीज तैयार कर इससे किस्मत बदलने की तैयारी क्षेत्र के किसानों ने की है। 5199 किसानों ने देशी बीज संवर्धन के लिए जुटे हुए हैं। रासायनिक खाद तथा बीटी बीजों के बढ़ते इस्तेमाल से धरती की घटती उपजाऊ क्षमता को देखते हुए वर्धा स्थित मगन संग्रहालय एक सराहनीय उपक्रम चला रहा है। मगन संग्रहालय के जरिए चलाए जा रहे विविध उपक्रमों के फलस्वरूप वर्तमान में करीब 260 गांवों के 5 हजार 199 किसान देशी बीजों का संवर्धन और संरक्षण कर रहे हैं। वर्धा शहर में स्थापित मगन संग्रहालय की संचालिका डा. विभा गुप्ता के प्रयासों से आज पूरे जिले में देसी बीजों के प्रति किसानों का आकर्षण बढ़ रहा है।
किसानों को दिया गया प्रशिक्षण
किसान अब देसी बीजों की फसल लेकर अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत कर रहे हैं। वर्ष 2006 में गिरड में पानलोट कार्यक्रम परिसर के गिरड, पेठ, नान्ही, येदलाबाद, भवानपुर, मजरा, डोंगरगांव, अंतररगांव, उंदिरगांव, शिवणफल, आर्वी में चलाया गया। इन इलाकों में केवल रासायनिक खेती होती थी। इस दौरान नैसर्गिंक खेती के विशेषज्ञ डा. सुभाष पालेकर ने प्राकृतिक खेती की संकल्पना सामने रखी। इसके बाद डा. विभा गुप्ता ने जिले में भी प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने का कार्य शुरू किया। इसके जरिए 4 हजार किसानों को तीन दिनों का प्राकृतिक खेती करने का प्रशिक्षण दिया गया। इससे 2 हजार 500 किसानों ने प्राकृतिक खेती अपनाना शुरू किया। अब मगन संग्रहालय प्राकृतिक खेती करनेवाले किसानों को मार्गदर्शन करना, समस्या सुलझाना तथा उन्हें जानकारी उपलब्ध करने का कार्य कर रहा है।
संवर्धन यात्रा निकालकर दिया संदेश
इस प्राकृतिक खेती के जरिए वर्ष 2007 में किसानों को उत्पादन में 70 फीसदी खर्च हुआ तथा 30 फीसदी का मुनाफा हुआ। इसमें बीज, खाद व दवा इन तीन घटकों पर कार्य शुरू किए गए। संवर्धन का काम गिरड परिसर के 50 गांवों में बीज संवर्धन यात्रा निकालकर किया गया। लगातार तीन वर्ष तक यह यात्रा निकाली गई। साइकिल तथा बैलगाड़ी से निकाली गईं इस यात्रा के दौरान किसानों से देसी बीज दान स्वरूप लिए गए। इन बीजों का परीक्षण कर मगन संग्रहालय की गिरड परिसर के6 एकड़ खेती पर प्रयोग किया गया। प्रयोग सफल रहा और उसके जरिए किसानों को बीज बांटे गए। बीजों में बंसी गेहूं, काशी टमाटर, पोपट, वॉल, मिर्च सहित अनाज व सब्जियों के 23 तरह के बीजों का समावेश था। परिसर के हजारों किसान इन बीजों का प्रयोग कर सफल उत्पादन ले रहे हैं।
अन्य क्षेत्रों में बढ़ी मांग
राज्य के अन्य हिस्सों में मांग होने पर इन बीजों का वितरण किया जा रहा है। कपास अनुसंधान संस्था की मदद से देशी बीजों का निर्माण कर किसानों को पहुंचाया गया। कहा जाता है कि बीटी बीजों से निकली कपास के बाद दूसरे साल उसके बीजों की बुआई नहीं हो सकती परंतु मगन संग्रहालय ने अनोखा प्रयोग कर दूसरे वर्ष भी बीटी बीजों से घरेलू बीज तैयार कर उसकी बुआई की। फिलहाल 24 गांवों के किसानों ने कर अच्छा उत्पादन ले रहे हैं। साथ ही कपास के भी देशी बीज आज घरों में किसान तैयार कर रहे हैं। इसके साथ ही पारंपारिक बंसी गेहूं का उत्पादन 33 गांवों के किसान 38 एकड़ में ले रहे हैं। इसके जरिए किसानों को 35 से 40 रुपए प्रति किलो तक दाम मिल रहा है। इसके अलावा मगन संग्रहालय के प्रयासों से हल्दी उत्पादक मंडल की भी शुरुआत की गई। 50 एकड़ में हल्दी का उत्पादन लिया जा रहा है। किसानों को खेती सामग्री को लेकर आने वाली परेशानी को दूर करने के लिए भी मगन संग्रहालय ने घूमता ग्रामीण वेल्डिंग वर्कशॉप शुरू किया है। अब तक 16 गांव के 65 किसानों ने इसका लाभ लिया है। जवस उत्पादन किसान मंडल की भी स्थापना कर 9 गांव के 36 किसान जवास का बीज बना रहे हैं। अभी तक नो लॉस नो प्रॉफिट की तर्ज पर 380 लीटर जवस तेल का वितरण किया गया है। इसके अलावा पलसबाग उपक्रम भी 6 गांवो में चलाया जा रहा है। इसमें 252 महिलाओं का समावेश होकर सब्जियों की फसल के बीज तैयार हो रहे हैं।
देसी व हाइब्रिड बीज में बुनियादी फर्क
देसी बीजों के संरक्षण और संवर्धन का काम मगन संग्रहालय कर रहा है। वर्धा जिले के गिरड गांव को देसी बीज बैंक बनाया है। यहां आसपास के 60 से 70 गांवों में हर साल बीज दान के नाम से बीज उत्सव मनाया जाता है। इस दौरान संस्था से जुड़े लोग गांव में घूमकर किसानों से देसी बीज का दान मांगते हैं। इसके बाद इन बीजों की छंटाई कर इनमें से देसी व परंपरागत बीज अलग करते हैं। यह बीज अन्य किसानों को इस शर्त पर बोने के लिए दिया जाता है कि अलगे साल वे दोगुना बीज देंगे। देसी बीजों के फायदे अधिक हैं। देसी और हाइब्रिड बीज में बुनियादी फर्क यही है कि देसी बीज सहनशील होता है और विपरित परिस्थितियों में भी उत्पादन देता है। इसे रासायनिक खादों की जरूरत नहीं पड़ती। वहीं संकरित बीज जमीन से अधिक पोषक तत्व खींचता है और इस पर बीमारियां भी अधिक लगती है। यह अधिक संवेदनशील होता है।
- डा. विभा गुप्ता, संचालिका, मगन संग्रहालय, वर्धा.


Created On :   9 March 2018 2:07 PM IST