धम्म दीक्षा के लिए नागपुर के साथ दिल्ली-मुंबई और औरंगाबाद भी थे लिस्ट में

62nd Dhammachakra Pravartan Day on Dikshabhoomi nagpur maharashtra
धम्म दीक्षा के लिए नागपुर के साथ दिल्ली-मुंबई और औरंगाबाद भी थे लिस्ट में
धम्म दीक्षा के लिए नागपुर के साथ दिल्ली-मुंबई और औरंगाबाद भी थे लिस्ट में

डिजिटल डेस्क, नागपुर। 18 अक्टूबर को दीक्षाभूमि पर 62वां धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस मनाया जा रहा है । 62वें धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस के माध्यम से एक बार फिर धम्म दीक्षा समारोह की यादें ताजा हो रही हैं। 14 अक्टूबर 1956 को दीक्षाभूमि पर डॉ. बाबासाहब आंबेडकर द्वारा ली गई बुद्ध धम्म दीक्षा देश की सबसे बड़ी रक्त-विहिन क्रांति कहलाई। इस क्रांति को सलाम करने हर साल दीक्षाभूमि पर लाखों लोग जुटते हैं। इससे प्रेरणा लेकर आगे बढ़ने का संकल्प लेते हैं। इस क्रांति के लिए बाबासाहब को बड़े पैमाने पर तैयारी करनी पड़ी। अपने अनुयायी और समाज की मानसिकता बदलने के लिए बाबासाहब को कई चरणों पर संघर्ष करना पड़ा। वर्षों का संघर्ष और कई योजनाओं पर काम करना पड़ा। विशेष यह कि संविधान के निर्माता व भारतरत्न डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने बौद्ध धम्म स्वीकारने की घोषणा की थी। किन्तु नागपुर में धम्म दीक्षा समारोह होगा, यह निश्चित नहीं था। समारोह के लिए बाबासाहब की सूची में दिल्ली, मुंबई, नागपुर और औरंगाबाद शहर शामिल थे। ऐसे में नागपुर ने अपनी मजबूत दावेदारी पेश की आैर उस पर नागपुर खरा भी उतरा। 

धम्म दीक्षा के लिए जुटे 5 हजार भीमसैनिक
दीक्षा समारोह को सफल बनाने के लिए शहर के 5000 स्वयंसेवक और समता सैनिक दल के कार्यकर्ता इस कार्य में जुटे थे। इसके लिए अलग-अलग समितियां बनाई गई थी। दीक्षा विविध कार्यक्रम का प्रचार दूर-दराज तक करने और अन्य राज्यों से लोग धर्मांतरण के लिए इसके लिए हिंदी, मराठी व अंग्रेजी में सामूदायिक धर्मांतर शीर्षक अंतर्गत हैंडबिल, पोस्टर छापे गए थे। विशेषकर लोगों से सफेद परिधान पहनकर आने की अपील की गई थी। बस और रेलवे के समय-सारणी की जानकारी देने के लिए बड़े-बड़े पोस्टर जगह-जगह लगाये गए थे। लोगों की व्यवस्था के लिए शहर की सभी प्राइमरी स्कूलें आरक्षित कर रखी थी। दीक्षा लेने वालों का पंजीयन करने के लिए 36 रजिस्टर रखे गए थे। 

24 मई 1956 को नागपुर में पहली बार बुद्ध जयंती
दीक्षा लेने के पहले 24 मई 1956 को नागपुर में पहली बार जोरशोर से बुध्द जयंती समारोह मनाया गया था। भव्य झांकी निकाली गई थी। जिसमें गौतम बुद्ध को बोधी वृक्ष के नीचे बैठा दृश्य दिखाया गया था। रैली में महिला, पुरुष व बच्चे बड़ी संख्या में शामिल हुए थे। पांच हजार से अधिक लोग इसमें शामिल हुए थे। दोपहर 3 बजे यह रैली कोठारी भवन, सीताबर्डी से निकलकर शहर के प्रमुख मार्गों से घूमते हुए शाम 7 बजे मॉरिस कॉलेज के स्वतंत्र भवन के सामने समाप्त हुई थी। रैली में लोगों ने मोमबत्ती, अगरबत्ती और पंचशील ध्वज पकड़ रखा था। स्वतंत्र भवन के सामने स्थित मैदान में बड़ा पंडाल डाला गया था। जिसे रोशनाई से सजाया गया था। समाप्ति के दौरान भव्य सभा का आयोजन हुआ था।  कार्यक्रम की अध्यक्षता सीपी एंड बेरार के तत्कालीन श्रममंत्री दीनदयाल गुप्ता ने की थी।

इस अवसर पर प्रो. रामनाथन, रेवारामजी कवाडे, प्रिंसिपल चतुर्वेदी, प्रो. दीक्षित, बा.ना वैद्य उपस्थित थे। दूसरे दिन इस रैली को सभी प्रमुख अखबारों ने प्रमुखता से प्रकाशित किया था। विशेष यह कि इन खबरों की कतरनों को फोटो सहित बुद्धदूत सोसायटी नागपुर के तत्कालीन कार्यवाह वामनराव गोडबोले ने डॉ. बाबासाहब आंबेडकर को दिल्ली में ले जाकर दी थी। डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के आंदोलन में नागपुर शहर का योगदान विषय पर पीएचडी कर चुके डॉ. कृष्णकांत डोंगरे अपनी किताब में बताते हैं कि शायद नागपुर अपनी मजबूत दावेदारी पेश करना चाहता था। जिस कारण बुद्ध जयंती को दीक्षा समारोह के पहले बड़े जोश से मनाकर इस कार्य में खुद को अग्रसर बताया गया 

ठीक सुबह 9 बजे ली दीक्षा
दीक्षा समारोह के लिए बाबासाहब, माईसाहब सविता आंबेडकर, सचिव नानकचंद रत्तू के साथ 11 अक्टूबर को नागपुर पहुंच गए थे। कार्यकर्ताओं ने इनके रहने की व्यवस्था शहर के प्रसिद्ध श्याम होटल में की थी। 11 से 14 अक्टूबर तक यहां अनेक बैठकों का दौर चला। अनेक योजनाएं बनीं। 14 अक्टूबर की सुबह ठीक दीक्षा समारोह से पहले बाबासाहब, माईसाहब और सचिव के साथ एक विशेष कार में बैठकर दीक्षाभूमि की ओर रवाना हो गए। कार सीधे स्टेप के पास रुकी। बाबासाहब कैसे पहुंचे, किसी को नहीं पहुंचे। इसके बाद ठीक 9 बजे बाबासाहब ने बौध्द धम्म की दीक्षा ली। इनके साथ लगभग 6 लाख लोगों ने धर्मांतरण किया। देश की यह सबसे बड़ी रक्त-विहिन क्रांति कहलाई। 
 

वैक्सिन इंस्टिट्यूट बनी दीक्षाभूमि
बाबासाहब द्वारा नागपुर में दीक्षा लेने की घोषणा करने के बाद जगह की खोज शुरू हो गई। वामनराव गोडबोले व तत्कालीन उपमहापौर सदानंद फुलझेले दीक्षा विधि के लिए जगह ढूंढने जुट गए। दीक्षाभूमि, तब सीपी एंड बेरार की नजूल की जगह थी। वैक्सिन इंस्टिट्यूट ने यह जगह चारागाह के लिए आरक्षित रखी थी। दीक्षा समारोह के लिए सभी को यह जगह पसंद आई। तत्कालीन राजस्व मंत्री भगवंतराव मंडलोई से यह जगह देने का निवेदन किया गया। सरकार ने एक आदेश जारी कर 14 एकड़ भूमि दीक्षा समारोह के लिए दी। इसके बाद 28 सितंबर 1956 को सुबह 8 बजे लक्ष्मण झगुजी कवाडे के हाथों भूमिपूजन और पंडित रेवारामजी विठोबा कवाडे गुरुजी के हाथों पंचशील ध्वज फहराया गया था। 
 

Created On :   18 Oct 2018 10:30 AM GMT

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