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96 फीसदी बच्चे जन्म से भूख बर्दाश्त करने को मजबूर, नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 में खुलासा

डिजिटल डेस्क, सतना। जिले के 96 फीसदी बच्चे जन्म के पहले क्षण से ही भूख बर्दाश्त करने को मजबूर हैं। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 (एनएफएचएस-4) के मुताबिक सतना जिले के दो तिहाई बच्चों को जन्म होते ही मां का दूध भी नसीब नहीं होता। यानि इन्हें पर्याप्त आहार नहीं मिल पाता। एनएफएचएस के आंकड़े चौंकाने वाले हैं और यदि इन आंकड़ों को सही माना जाए, तो महिला एवं बाल विकास विभाग और स्वास्थ्य महकमे के दावों की पोल खुल जाती है।
सबसे पहले मां का दूध
जानकारों के मुताबिक जन्म के एक घंटे बाद शिशु को मां का दूध पिलाया जाता है। जब बच्चों को जन्म के तुरंत बाद से स्तनपान मिलना शुरू नहीं होता, तो वे कुपोषण का शिकार हो जाते हैं। इसके असर गहरे होते हैं और वो धीरे-धीरे ठिगनेपन का शिकार होना शुरू हो जाते हैं। ऐसे बच्चे स्कूल देर से जा पाते हैं और स्कूल जाने पर भी उनकी शिक्षा पर प्रतिकूल असर पडऩे लगता है। शुरुआत में स्तनपान नहीं करने से बच्चों में विकलांगता हो सकती हैं एवं क्षमताएं नकारात्मक रूप से प्रभावित होने लगती है। मां के दूध में बच्चों के लिए आवश्यक प्रोटीन, वसा, कैलोरी, लैक्टोज, विटामिन, लौह तत्व, खनिज, पानी और एंजाइम पर्याप्त मात्रा में होते हैं।
सर्वे रिपोर्ट पर एक नजर
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (चार) के अध्ययन की प्रदेशीय रिपोर्ट स पता चलता है कि मप्र के भीतर ही जिलों के बीच स्तनपान के व्यवहार में बेहद चौंकाने वाली असमानता है। जिले में मातृत्व स्वास्थ्य, नवजात स्वास्थ्य और बाल पोषण की बात करें तो सतना के आंकड़े बहुत ही चिंताजनक हैं। यहां प्रसव पूर्व चार या चार से अधिक भ्रमण का प्रतिशत 23.1 है, जबकि गर्भवती महिलाओं की प्रसव पूर्व पूर्ण जांच का अनुपात 7.6 फीसदी है। संस्थागत प्रसव का आंकड़ा जहां 80.7 है तो वहीं 32.5 प्रतिशत बच्चों को ही जन्म के एक घंटे के भीतर मां का दूध नसीब हो पाता है। जिले के 55.7 फीसदी बच्चे ऐसे हैं जो छ: माह तक सिर्फ स्तनपान पर निर्भर रहते हैं जबकि उम्र के मुकाबले 41.2 फीसदी बच्चों में ठिगनापन बढ़ा है। जिले के 6 से 23 माह के 4.1 प्रतिशत बच्चों को ही पर्याप्त ऊपरी आहार मिल पाता है, शेष 96 फीसदी बच्चों को भूख बर्दाश्त करना पड़ता है।
इनका कहना है
एनएफएचएस-4 की सर्वे रिपोर्ट कहती है कि जिले के 6 से 23 माह के 96 फीसदी बच्चों को पर्याप्त पोषण आहार नहीं मिलता। यह बेहद चिंताजनक है। अध्ययन से यह साफ होता है कि सतना समेत प्रदेश भर में बच्चों के जीवन से संबंधित महत्वपूर्ण पहलुओं पर अब भी सघन प्रयास किए जाने की जरूरत है। -राकेश मालवीय विकास संवाद, भोपाल
Created On :   13 Oct 2018 1:03 PM IST