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अस्पताल में घायल युवक को पोर्टमार्टम के लिए भेजा, उत्तराखंड के डॉक्टर भी नहीं बचा पाए

डिजिटल डेस्क छिंदवाड़ा। नागपुर के निजी अस्पताल में 12 दिनों से जीवन के लिए संघर्ष कर रहा हिमांशु अंतत:चिरनिद्रा में लीन हो गया। सुबह 7 बजकर 45 मिनट पर हिमांशु ने आखिरी सांसें ली। बीते सोमवार को सुबह पोस्टमार्टम गृह से जिंदा लौटने के बाद से हिमांशु नागपुर के एक निजी अस्पताल में वेंटीलेटर पर था। जिसे बचाने न सिर्फ नागपुर के विशेषज्ञ चिकित्सकों ने ही नहीं बल्कि उत्तराखंड से आए डॉक्टर ने भी तमाम प्रयास कर लिए। लेकिन हिमांशु को नहीं बचाया जा सका। गुरुवार सुबह हिमांशु की मृत्यु की सूचना प्रोफेसर कॉलोनी स्थित उनके घर पहुंची तो परिवार में शोक की लहर दौड़ पड़ी। पूरी कॉलोनी में दिनभर सन्नाटा पसरा रहा। नागपुर में पोस्टमार्टम के बाद हिमांशु का शव छिंदवाड़ा लाया गया। यहां देर शाम को स्थानीय मोक्षधाम में अंतिम संस्कार किया गया। हिमांशु की अंतिम यात्रा में शहर के सैकड़ों लोग शामिल हुए।
घर में चूल्हा नहीं जला, 12 दिन उम्मीदों मेें जिया हिमांशु का परिवार
हिमांशु भारद्वाज 4 मार्च को दुर्घटना में घायल हुए। गंभीर अवस्था में नागपुर रेफर किया गया। बे्रन डेड होने पर नागपुर से लौटा दिया गया। यहां जिला अस्पताल के डॉक्टर ने मृत घोषित कर दिया। मरच्युरी में पोस्टमार्टम से पहले स्वीपर को पल्स चलते दिखी। जिसने शोक में डूबे भारद्वाज परिवार में उम्मीदें जगा दीं। फिर नागपुर के अस्पताल में भर्ती कराया। यहां देहरादून के डॉक्टर ने इलाज शुरू कर हिम्मत बढ़ाई। 12 दिनों तक मौत से संघर्ष में आखिरकार हिमांशु हार गया। उसके इस संघर्ष में पूरा परिवार उसके साथ खड़ा रहा। नागपुर के श्योरटेक हास्पिटल के वेंटीलेटर में हिमांशु को रखा गया था। परिवार के लोगों ने नजदीक ही एक होटल में आश्रय लिया। 4 तारीख को हुई घटना के बाद पिता चार दिनों तक भूखे रहे। भोजन का एक निवाला भी नहीं चखा। रिश्तेदारों ने मनाया तब अन्न को हाथ लगाया। मां अपने जिगर के टुकड़े को कैसे अपने से दूर रख सकती है। मां राधाबाई हर दिन अस्पताल का गेट खुलने से पहले पहुंच जाती। आईसीसीयू के बंद दरवाजों से बेटे को निहारती। पूरा दिन गुजारने के बाद तब रवाना होती जब अस्पताल के गेट बंद होने की बारी आती। 12 दिनों तक उनकी यही दिनचर्या रही।
आने वाले मई माह में अपनी शादी की तीसरी सालगिरह मनाने का सपना संजो रही पत्नी रानी के साथ तो मानो धोखा हो गया। पहले चार तारीख और फिर गुरुवार को उसे पति की मौत की खबर मिली। पहली खबर तो झूठी निकली लेकिन दूसरी खबर से वह सुध-बुध खो बैठी है। महज सवा साल की बेटी हीरू जो अब तक अपने पापा को सिर्फ निहारकर खिलखिलाती थी, वक्त ने उसे पापा को पुकारने का मौका तक नहीं दिया और साया छीन लिया।
बहन रिमझिम खुद भी दुर्घटना में घायल हुई थी। घायल होने के बावजूद गंभीर रूप से घायल अपने इकलौते भाई को लेकर अस्पताल पहुंची। बाद में खुद का इलाज शुरू कराया। उसे उम्मीद थी कि भाई ठीक हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया।
संघर्ष में पूरा शहर था साथ
पोस्टमार्टम कक्ष से जागी उम्मीदों के बाद हिमांशु के संघर्ष में सिर्फ उसका परिवार या रिश्तेदार नहीं बल्कि पूरा शहर साथ था। शहर में कई जगह कई संस्थाओं ने हिमांशु की कुशलक्षेम के लिए प्रार्थना हुई। आरती-पूजन व अन्य अनुष्ठान कर लोगों ने ईश्वर से हिमांशु के स्वस्थ होने की कामना की।
भगवान से दुआ मांगी थी कि बच जाए हिमांशु- संजू सारवान
पोस्टमार्टम की तैयारी करते वक्त हिमांशु की नब्ज देख उसे शवगृह से जीवित बाहर लाने वाले जिला अस्पताल के स्वीपर संजू सारवान रोजाना की तरह गुरुवार को अपनी ड्यूटी पर पहुंचे थे। जैसे ही उन्हें हिमांशु की मृत्यु की सूचना मिली तो उनकी आंखें नम हो गई। संजू ने भारी आवाज में कहा कि भगवान से हिमांशु के बच जाने की दुआ मांगी थी। जीवन के लिए हिमांशु के संघर्ष से लग रहा था कि वह तंदुरुस्त होकर लौटेगा। खैर...भगवान को जो मंजूर है उसे बदला नहीं जा सकता।
यह था पूरा घटनाक्रम
4 मार्च रविवार शाम सड़क हादसे में घायल हिमांशु भारद्वाज बे्रन डेड होने की वजह से नागपुर से सोमवार सुबह 4 बजे परिजनों ने उसे छिंदवाड़ा वापस ले आया था। यहां जिला अस्पताल में ड्यूटी डॉ.दिनेश ठाकुर ने उसे मृत घोषित कर पोस्टमार्टम कक्ष में रखा दिया था। सुबह 8.30 बजे जब मृतक के पीएम की तैयारी की जा रही थी। इस दौरान स्वीपर संजू सारवान को मृतक की नब्ज चलते दिखाई दी। तब उसे पीएम कक्ष से उठाकर सर्जिकल में भर्ती किया गया। परिजनों से उसे वापस नागपुर के एक निजी अस्पताल ले जाकर भर्ती कराया है।
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Created On :   16 March 2018 1:36 PM IST