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रेप के बाद पीड़िता की मर्जी के बिना गर्भपात करना जघन्य अपराध-हाईकोर्ट

डिजिटल डेस्क, मुंबई । दुष्कर्म के बाद महिला की मर्जी के बिना उसका गर्भपात कराना गंभीर व जघन्य अपराध है। ऐसे मामले में भले ही महिला व आरोपी ने आपसी सहमति से मामला सुलझा लिया हो। फिर भी आरोपी के खिलाफ दर्ज किए गए मामले को रद्द नहीं किया जा सकता है। बांबे हाईकोर्ट के आदेश में यह बात उभर कर सामने आयी है।
न्यायमूर्ति एसएस शिंदे व न्यायमूर्ति मनीष पीटाले की खंडपीठ ने मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद पाया कि आरोपी ने पीड़िता का उसकी इच्छा के विरुद्ध दो बार गर्भपात कराया है। एक बार आरोपी शिकायतकर्ता(पीड़िता) को उसकी इच्छा के खिलाफ गर्भपात के लिए डाक्टर के पास ले गया था। डाक्टर की गोली के बाद पीड़िता का गर्भपात हुआ था। इसके बाद फिर आरोपी ने पीड़िता के साथ संबंध बनाए। जिससे वह गर्भवती हो गयी। आरोपी दोबारा पीड़िता को अस्पताल में गर्भपात के लिए ले गया। जहां पीड़िता का फिर उसकी इच्छा के बिना गर्भपात किया गया। इसके अलावा आरोपी ने पीड़िता से शादी का वादा किया था। लेकिन बाद उसने अपने इस वादे को तोड़ दिया। आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 376 व 313(महिला की मर्जी के बिना उसका गर्भपात करना) दर्ज है। इन दोनों आपराधों का स्वरुप काफी गंभीर व जघन्य है। इस मामले में आरोपी की संलिप्तता नजर आ रही है। लिहाजा आरोपी के खिलाफ मामले को लेकर दर्ज की गई एफआईआर को रद्द नहीं किया जा सकता है।
इससे पहले सरकारी वकील ने आरोपी की याचिका का विरोध किया। उन्होंने कहा कि यदि आरोपी के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर को रद्द किया जाता है तो इसका समाज पर विपरीत असर पड़ेगा। वहीं आरोपी की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने कहा कि आरोपी व पीड़िता के बीच सहमति से संबंध बने थे। इसलिए इस मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत मामला नहीं बनता है। इसके अलावा आरोपी व शिकायतकर्ता ने अपने मामले को आपसी सहमति से सुलझा लिया है। इसलिए आरोपी के खिलाफ दर्ज मामले को रद्द कर दिया जाए। किंतु खंडपीठ ने इसे अस्वीकार करते हुए कहा कि आरोपी के खिलाफ जिस अपराध को लेकर मामला दर्ज किया गया है उसका स्वरुप गंभीर व नृशंस है। इसलिए आरोपी की याचिका को खारिज किया जाता है।
Created On :   6 April 2021 6:27 PM IST