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40 सालों बाद नर्मदा में भीषण जल संकट, पिछले वर्ष के मुकाबले 43% कम पानी
डिजिटल डेस्क, जबलपुर। अभी तक जो हालात गोदावरी और क्षिप्रा जैसी नदियों के थे, वही स्थिति अब नर्मदा में निर्मित होने जा रही है। नर्मदा में जल की धार पतली हो चली है और स्थिति एकदम चिंताजनक है। डिण्डौरी से लेकर मण्डला और जबलपुर जहां नर्मदा शुरूआत तौर पर गति के साथ अमृत रूपी जल लेकर चलती है, वहीं अब एकदम बहाव कम है। जानकारों का कहना है िक वर्ष 1977 यानी 40 सालों बाद ऐसा हुआ है, जब पानी इतना कम है। नर्मदा घाटी एवं सागर परियोजना के सामान्य आंकलन के अनुसार इस बार बहाव क्षेत्र में 43 फीसदी पानी कम है। वहीं सहायक नदियों में 60 प्रतिशत पानी की कमी है
वर्ष 1980 से पहले साल के सूखों में पानी कम था, वही स्थिति अभी देखने मिल रही है। नर्मदा में प्राकृतिक जल घटने से बहाव क्षेत्र का पूरा दाराेमदार अब बरगी बांध से छोड़े जाने वाले पानी पर निर्भर है। बांध से भी सीमित मात्रा में पॉवर जनरेशन के बाद पानी छोड़ा जा रहा है, जिससे जल की कमी साफ नजर आने लगी है।
सबसे बड़ी समस्या तो भेड़ाघाट पंचवटी तट पर है, जहां नौकायान के लिए दूर से आने वाले पर्यटकों को पूरा फेरा लगाये बिना ही उतार दिया जाता है। इसकी मुख्य वजह यही बताई जा रही है िक भेड़ाघाट के बंदरकूदनी और अन्य ऐसे स्थानों में पानी कम बचा है। इस तरह नर्मदा के कई जिलों में सभी मनोरम घाट जल संकट से जूझ रहे हैं। नर्मदा चिंतक और कथाकार अमृत लाल बेगड़ कहते हैं कि पेड़ लगाकर हम इस समस्या से निपट सकते हैं। नर्मदा को पेड़, पहाड़, पर्यावरण से बल मिलता है। अभी जागें तभी कल बेहतर होगा
अभी आने वाले 83 दिनों की चुनौती | पानी की कमी के बीच प्रमुख रूप से अब नर्मदा में शुरूआत से लेकर गुजरात की सीमा तक आने वाले 83 दिन यानी 30 जून तक चुनौती है। मध्य प्रदेश में मानसून 15 जून तक आता है इसके बाद 15 दिनों में नर्मदा में बरसाती पानी नजर आता है। इसमें भी डिण्डौरी और मण्डला मेें जो पानी गिरा वही बहकर नर्मदा में ज्यादा आता है। इसके बाद जबलपुर से आगे पानी का बहाव जुलाई की शुरूआत में नजर आने लगता है। इस तरह अब पूरे गर्मियों के बचे हुये दिन बहुत संघर्षपूर्ण गुजरने वाले हैं, आने वाले इन दिनों में सभी की नजर है।
इस वजह से पानी है कम
- डिण्डौरी, मण्डला और जबलपुर में इस साल औसत से कम वर्षा
- 19 प्रमुख और 41 उपसहायक नदियों में पानी कम
- गौर परियट नदी इस बार जल्द सूखीं
- नर्मदा के बायीं तट के बरसाती नालों में पानी नहीं
- बरगी बांध से पानी कम छोड़ा जाना
- पेड़ों पहाड़ कटने से जल स्रोत्र पर हमला
- छोटी झिरों से पानी निकलना बंद
ऐसा करने से कुछ राहत
प्रमुख पर्यावरणविदों और नर्मदा चिंतकों का मानना है िक अब नर्मदा में काक्रीट घाटों के िनर्माण पर रोक लगना चाहिए। प्राकृतिक झिरों को बंद नहीं करना चाहिए। साथ ही पेड़ लगाने पहाड़ बचाने की मुहिम चले। इधर जल प्रबंधन के जानकार कहते हैं िक नर्मदा में छोटे स्टाप डैम से भी पानी को विपरीत परििस्थयों के लिए सुरक्षित रख जा सकता है। 43% जल पिछले साल के मुकाबले कम
60% जल सहायक नदियों में कम
यहां दिख रहा पूरा उथला तल
मण्डला, सिद्धघाट, नावघाट, रपटाघाट
निवास
प्राकृतिक घाट बालपुर सिवनी
जबलपुर
ग्वारीघाट, तिलवारा, लम्हेटा, सरस्वती
नरसिंहपुर
बरमानघाट
होशंगाबाद
सेठानीघाट
- हरदा नाभीकुण्ड हमारे लिए है वरदान
- 65 फीसदी जल मध्य प्रदेश क
- 5 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में सिंचाई
- कुल बहाव क्षेत्र 1321 किमी।
- मध्य प्रदेश के हिस्से 1079
- शेष महाराष्ट्र
- गुजरात में
- 2500 मेगावाट बिजली का उत्पादन
- 20 जिलों को पीने का पानी
- 16 जिलों को उद्योग का पानी
- जबलपुर, इंदौर, उज्जैन और बडोदा को ज्यादा लाभ
Created On :   9 April 2018 12:19 AM IST