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लोगों को डिब्बा पहुंचाने वालों को पड़े खाने के लाले, 44 साल बाद बंद हुई है मुंबई के डिब्बे वालों की सेवा

डिजिटल डेस्क, मुंबई। कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते मुंबई के डिब्बे वालों की आर्थिक स्थिति गड़बड़ा गई है। संकट की इस घड़ी में डिब्बे वाले ही एक-दूसरे का सहारा बन रहे हैं। मुंबई डिब्बे वाला एसोसिएशन की तरफ डिब्बे वालों की 5-5 लोगों की टीम तैयार की है। यह टीम एक संस्था की मदद से हर डिब्बे वालों को घर में 1500-1500 रुपए का अनाज पहुंचा रही है।मुंबई डिब्बे वाला एसोसिएशन के अध्यक्ष सुभाष तलेकर ने ‘दैनिक भास्कर’ से बातचीत में कहा कि महानगर में 20 मार्च से डिब्बे वालों की सेवाएं बंद हैं।
राज्य में जारी तालाबंदी के कारण डिब्बे वालों को डिब्बे पहुंचाने के लिए मार्च महीने का वेतन भी नहीं मिल पाया है। हम लोग हमेशा से नकद पैसे लेते थे इस कारण डिब्बे की सेवाएं लेने वाले लोग भी हमें वेतन नहीं दे पा रहे हैं। इसके मद्देनजर मुंबई डिब्बे वाला एसोसिएशन को सत्य साईंबाबा भक्त व समाजसेवक चंद्रशेखर ने आर्थिक मदद की है। इसके माध्यम से डिब्बे वालों के घरों में अनाज पहुंचा जा रहा है।
डिब्बे वालों की टीम अपने यहां के स्थानीय किराना दुकान से अनाज और जीवनावश्यक वस्तुओं को खरीदकर डिब्बे वालों को घर पहुंचा रही है। हर दिन लगभग 25 से 30 डिब्बे वालों के घरों में पर अनाज उपलब्ध कराया जा रहा है। तलेकर ने कहा कि मार्च महीने में डिब्बे की सेवा बंद होने के बाद अधिकांश डिब्बे वाले अपने मूल गांव में चले गए हैं। लेकिन जो डिब्बे वाले फिलहाल मुंबई में हैं उनके परिवार के लिए अनाज की व्यवस्था कराने का प्रयास किया जा रहा है। मुंबई में लगभग 5 हजार डिब्बे वाले हैं जो शहर में प्रति दिन 2 लाख लोगों को टिफिन पहुंचाने का काम करते हैं। महानगर में 44 साल बाद डिब्बे वालों की सेवा बंद हुई है। 1974 में मजदूर नेता जॉर्ज फर्नांडिस ने मुंबई में रेल रोको आंदोलन किया था। उस आंदोलन के कारण लोकल ट्रेन सेवाएं ठप हो गई थी। इस वजह से तब डिब्बे वालों ने 12 से 15 दिन तक के लिए टिफिन सेवा बंद रखी थी।
Created On :   10 April 2020 7:03 PM IST