बुद्ध की अमृतवाणी का साक्षी है नागपुर का अंबाझरी तालाब, श्रमदान से बना है यह तालाब

Ambajhari pond of Nagpur is a witness of Buddhas Amritvani
बुद्ध की अमृतवाणी का साक्षी है नागपुर का अंबाझरी तालाब, श्रमदान से बना है यह तालाब
बुद्ध की अमृतवाणी का साक्षी है नागपुर का अंबाझरी तालाब, श्रमदान से बना है यह तालाब

डिजिटल डेस्क, नागपुर । नागपुर का इतिहास कई ऐतिहासिक क्रांति और आंदोलनों का साक्षी रहा है। बहुत कम लोग जानते हैं कि अंबाझरी तालाब तथागत बुद्ध की क्रांति से जुड़ा है। तथागत बुद्ध के प्रभाव में आकर तत्कालीन क्रूर राजा अम्बतिथ्यक का मन परिवर्तन हुआ था। जब राजा अम्बतिथ्यक को पता चला कि पानी विवाद के कारण बनी युद्ध की स्थिति को टालने के लिए सिद्धार्थ गौतम राज सिंहासन छोड़कर बुद्ध बने हैं, तो राजा अम्बतिथ्यक ने भी नागपुर में श्रमदान के जरिए अंबाझरी तालाब की खुदाई की, ताकि स्थानीय जनता को पानी की समस्या का सामना न करना पड़े।

इस दौरान खुद तथागत बुद्ध नागपुर में थे। उनकी उपस्थिति में श्रमदान के जरिए अंबाझरी तालाब निर्माण हुआ। दिन भर श्रमदान चलता था और शाम को बुद्ध के धम्म उपदेश। इस तरह अंबाझरी बुद्ध की क्रांति का साक्षी माना जाता है।

नागपुर की ओर लौट रहे थे तथागत
इस शोध को सामने लाने वाले सत्यशोधक समाज (रिसर्च ग्रुप) के संस्थापक धर्मेश पाटील बताते हैं कि तथागत बुद्ध ने भारत (जम्बुद्वीप) के मानव जाति के कल्याण के लिए अपने प्रचारकों की टीम बनाई थी। भिक्षु और तथागत बुद्ध बारिश के दिनों में किसी एक जगह तीन महीने तक रुकते थे। इसे ही वर्षावास का नाम दिया गया। इस दौरान तथागत बुद्ध मुंबई स्थित नालासोपारा में एक विशाल स्तूप का उद्घाटन कर विदर्भ की ओर लौट रहे थे। इस दौरान कुछ समय वे चंद्रपुर में रुके थे। चंद्रपुर से वे नागपुर स्थित संघाराम (रामटेक) की ओर जाने निकले थे। उन्हें कुछ लोगों ने बताया कि नागपुर में क्रूर राजा अम्बतिथ्यक (तत्कालीन अथिक जनपद के राजा) का खौफ है। वह किसी को भी मार डालता है। बुद्ध को जाने से रोकने कोशिश की गई, लेकिन बुद्ध अपने निर्णय पर अडिग थे।

पहले पहुंच गए भंते सागत
बुद्ध को किसी तरह की हानि न पहुंचे, इसलिए तत्कालीन भंते अरहंत सागत तथागत बुद्ध के आने से पहले अथिक जनपद पहुंच गए। भंते अरहंत सागत खुद विद्वान बौद्ध भिक्षु थे। उन्होंने क्रूर राजा अम्बतिथ्यक से मिलकर उनके खौफ का सामना किया। इसी दौरान भंते अरहंत सागत राजा अम्बतिथ्यक का मन परिवर्तन करने में कामयाब हो गए। जब तथागत बुद्ध नागपुर पहुंचे तो उन्हें क्रूर राजा अम्बतिथ्यक से परिचय कराया, जब तक अम्बतिथ्यक का मन परिवर्तन हो चुका था। राजा अम्बतिथ्यक ने क्रूरता छोड़ अपनी जनता को दान देना शुरू कर दिया था। राजा अम्बतिथ्यक को जब पता चला कि पानी विवाद को टालने के लिए तथागत बुद्ध ने सब कुछ छोड़ दिया तो राजा अम्बतिथ्यक ने उसी समय अंबाझरी में तालाब की खुदाई का निर्णय लिया।

पानी की थी भीषण समस्या
उस समय नागपुर में भी पानी की भीषण समस्या हुआ करती थी। ऐसे में अम्बतिथ्यक ने जनता से श्रमदान का आह्वान कर अंबाझरी तालाब की खुदाई शुरू की। कुछ दिनों में ही अंबाझरी खुदाई कर उसे तालाब का रूप दिया गया। इसके बाद तथागत बुद्ध संघाराम (रामटेक), मनसर की ओर बढ़ गए। संशोधक धर्मेश पाटील कहते हैं कि इसे अम्बतिथ्यक नाम से ही जाना जाता था, लेकिन समय-समय के साथ यह अंबाझरी नाम से प्रचलित हो गया। 

पहले फनिन्दरपुर था
पाटील कहते हैं कि उस समय नागपुर को फनिन्दरपुर कहा जाता था। अब तक नागपुर को सात-आठ नामों से संबोधित किया गया है। धर्मेश पाटील का आरोप है कि इतिहासकारों ने इस इतिहास को दबाने की कोशिश की है। इस इतिहास को समेटते हुए धर्मेश पाटील ने इस संबंध में एक पुस्तिका भी प्रकाशित की है। 

Created On :   9 Dec 2019 5:36 AM GMT

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