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यहां मुश्किल है आजादी के पहले का रिकॉर्ड मिलना, सारे दस्तावेज हो गए जीर्ण

डिजिटल डेस्क,नागपुर। अगर आपको वर्ष 1916 से लेकर 1945 तक का कोई भी दस्तावेजी रिकार्ड चाहिए तो उम्मीद छोड़ दीजिए, क्योंकि जिला प्रशासन के तहत अानेवाले रिकार्ड (अभिलेखाकार) सेक्शन से कोई मदद नहीं मिलेगी। यहां रिकार्ड सेक्शन में 1916 से लेकर 1945 तक का रिकार्ड जीर्ण होकर खराब हो चुका है। हां, मांगने पर आपको संबंधित रिकार्ड उपलब्ध नहीं होने का प्रमाणपत्र जरूर मिल जाएगा। ऐसा नहीं है कि इन रिकार्ड को सहेजने के लिए प्रयास नहीं किए गए। वर्ष 2014 में स्कैन कर फाइलों को साइट पर अपलोड करने का निर्णय लिया गया और एक कंपनी ने काम शुरू भी किया, लेकिन मात्र 20 हजार फाइलों को किसी तरह अपलोड करने के बाद उसने हाथ खड़े कर दिए।
काफी अहम दस्तावेज हैं
जिला प्रशासन का रिकार्ड सेक्शन लोगों के नाम, जाति, जमीन, लीज-पट्टे, भू-संपादन, गैर-कृषि जमीन से संबंधित जानकारी सहेज कर रखता है। जमीन पर दावा पुख्ता करने के लिए रिकार्ड सेक्शन का प्रमाण-पत्र काफी अहम माना जाता है। इसी तरह जाति प्रमाणपत्र के लिए जब पुराना दस्तावेज नहीं होता है, तो रिकार्ड सेक्शन से कोतवाल पंजी लेकर जाति प्रमाण प्राप्त किया जा सकता है। इसके लिए 15 रुपए शुल्क जमा करना पड़ता है।
रिकार्ड सुरक्षित रखने लाए कॉम्पैक्टर
रिकार्ड सुरक्षित रखने के लिए सरकार ने जिला प्रशासन को कॉम्पैक्टर उपलब्ध कराए हैं। ये कॉम्पैक्टर बटन से खुलकर पुन: बंद हो जाते है। कॉम्पैक्टर पूरी तरह बंद रहने से दस्तावेजों पर मौसम की मार नहीं पड़ती तथा चूहा व कीड़ों से भी बचाव होता है। अंग्रेजों के जमाने में दस्तावेजी कागज मोटा होता था। इस पर स्याही की लिखावट होती थी। नमी व ठंड से स्याही फैलने के साथ ही लिखावट अस्पष्ट हो जाती है। िरकार्ड खंगालने के दौरान ही इन कॉम्पैक्टरों को खोला जाता है।
साफ कहते हैं ‘उपलब्ध नहीं’
वर्ष 1916 से लेकर 1945 तक की कोतवाल पंजी व अन्य जमीनी रिकार्ड मांगने पर ‘उपलब्ध नहीं’ होने का जवाब दिया जाता है। हालांकि रिकार्ड सेक्शन से राहत नहीं मिलने पर मनपा के अधीन आनेवाले जमाबंदी विभाग से रिकार्ड प्राप्त किया जा सकता है। आजादी के पहले जमीनी व संपत्ति के दस्तावेजों में जाति का उल्लेख हुआ करता था।
ठेका कंपनी ने स्कैनिंग से किया इनकार
वर्ष 2014 में सरकार ने रिकार्ड सेक्शन के सभी दस्तावेज व केस फाइलें स्कैन कर इसे साइट पर अपलोड करने का निर्णय लिया था, ताकि लोग ऑनलाइन दस्तावेज प्राप्त कर सके। अहमदनगर की इस कंपनी ने वर्ष 2015 में काम शुरू किया था आैर इसे 20 लाख केस फाइलें स्कैन करने के लिए दी थी। कंपनी 20 हजार फाइलें स्कैन करने के बाद काम छोड़कर चली गई। बताया गया कि जीर्ण कागजों व दस्तावेजों को स्कैन करने में कंपनी के पसीने छूट रहे थे। कंपनी ने स्कैनिंग कर इसे साइट पर अपलोड करने से मना कर दिया था।
दी गई खड्डे की फाइलें
दस्तावेज खराब होने से बचाने के लिए हर रिकार्ड (दस्तावेज) को अब खड्डे की फाइल में लगाया गया है। सरकार के निर्देश पर जिला प्रशासन ने खड्डे की फाइलें उपलब्ध कराई हैं। दस्तावेजी कागज फाइल में रहने से खराब होने का खतरा कम रहता है। छह दशक पहले तहसीलदार ही जमीन व अन्य विवादों का निपटरा करते थे। ऐसे केसेस फाइलों में रखी गई है।
रिकार्ड को सुरक्षित रखने कई कदम उठाए
जीर्ण होते जा रहे रिकार्ड को सुरक्षित रखने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। दरअसल, वर्ष 1916 से 1945 तक के दस्तावेज बहुत ज्यादा जीर्ण हो गए थे। सारा रिकार्ड स्कैन कर आॅनलाइन करने की कोशिश की, लेकिन ठेकेदार ने काम छोड़ दिया। 1945 के बाद का सारा रिकार्ड यहां उपलब्ध है। इसके पहले का रकार्ड उपलब्ध नहीं होने का प्रमाणपत्र दिया जाता है। अन्य विभागों व स्कूलों से भी रिकार्ड प्राप्त किया जा सकता है।
-रवींद्र खजांजी, निवासी उपजिलाधीश नागपुर.
Created On :   6 April 2018 2:13 PM IST