बचपन में फल के व्यापार के सिलसिले में नागपुर आया करते थे दिलीप साहब

As a child, Dilip Sahab used to come to Nagpur in connection with the fruit business.
बचपन में फल के व्यापार के सिलसिले में नागपुर आया करते थे दिलीप साहब
बचपन में फल के व्यापार के सिलसिले में नागपुर आया करते थे दिलीप साहब

डिजिटल डेस्क, नागपुर। बॉलीवुड के दिग्गज और मशहूर अभिनेता दिलीप कुमार के निधन ने नागपुर से जुड़ी उनकी यादों को ताजा कर दिया है। उनकी यादों को जीवंत करते हुए चाहने वाले भावुक हो गए। दिलीप कुमार अपने समय में कई मर्तबा नागपुर आए। उनके स्थानीय कलाकार और नेताओं से खासकर पूर्व मंत्री एनकेपी साल्वे से काफी करीबी संबंध रहे। साल्वे के बुलावे पर वे कई बार नागपुर पहुंचे। कामठी में पूर्व सांसद दत्ता मेघे की चुनावी सभा को भी संबोधित किया था। सिविल लाइन्स स्थित वीसीए मैदान पर आयोजित भारत-न्यूजीलैंड का अंतरराष्ट्रीय मैच भी देखने वे पहुंचे थे, लेकिन इस मैच में एक हादसा हो गया। वीसीए के एक तरफ की दीवार गिर गई, जिसमें कुछ लोग दब गए थे। उन्हें मैच छोड़कर जाना पड़ा। इस बीच उनकी दूरदर्शन के निसार खान से बात हुई थी। बातचीत में उन्होंने हादसे को लेकर दु:ख जताया था। ऐसे में उनका नागपुर में चुनाव से लेकर खेल-सांस्कृतिक कार्यक्रमों में आना-जाना लगा रहता था।  

नागपुर से अलग रिश्ता : इन संबंधों के इतर भी उनका नागपुर से एक अलग रिश्ता रहा है। बहुत कम लोगों को पता है कि उनके पिता का नागपुर से व्यापारिक संबंध रहा था। वे फल व्यापार से जुड़े थे। ऐसे में उनका नागपुर के संतरा मार्केट में व्यापार के सिलसिले में आना-जाना लगा रहा था। उनके साथ दिलीप कुमार भी बचपन में नागपुर के चक्कर लगाया करते थे। इस कारण नागपुर उनके लिए नया नहीं था। अभिनेता के तौर पर पहचान बनाने के बाद लोग उनके दीवाने हो गए। नागपुर में उन्हें एक नजर देखने के लिए हजारों की भीड़ इकट्ठा हो जाती थी। 

देखने उमड़ पड़ी थी भारी भीड़ : एक घटना को ताजा करते हुए मिमिक्री आर्टिस्ट सैयद मुमताज बताते हैं कि कामठी में चुनावी सभा के बाद उनका महल स्थित चिटणीस पार्क में कार्यक्रम था। कार्यक्रम में दिलीप कुमार के आने की खबर लगने के बाद भारी भीड़ जुटी थी। कामठी में कार्यक्रम विलंब होने से चिटणीस पार्क में लोग खुद पर काबू नहीं रख पा रहे थे। अनियंत्रित भीड़ को नियंत्रित करना मुश्किल हो रहा था। इस बीच कांग्रेस नेता अनीस अहमद ने मिमिक्री आर्टिस्ट मुमताज को स्टेज पर चढ़ाकर अपनी कला के जरिये लोगों को शांत रखने की कमान सौंपी। मुमताज ने दिलीप कुमार सहित अनेक कलाकारों की मिमिक्री कर लोगों को बांधे रखा। इस बीच जैसे ही दिलीप साहब कार्यक्रम में पहुंचे, लोगों ने तालियां और सीटी बजाकर उनका जोरदार स्वागत किया। दिलीप साहब की एक झलक पाने के लिए लोग इतना बेकाबू हुए कि पुलिस को भी सख्त होना पड़ा। 

गजलों के कार्यक्रम में दिलीप साहब : यूं तो दिलीप साहब नागपुर में कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों में शामिल हुए, लेकिन देशपांडे हॉल में गजलों के कार्यक्रम में उनका आना खास बना। कार्यक्रम गजलों का था। पहले से हिदायत थी कि गजलों के अलावा कोई फिल्मी गाना नहीं होगा। लेकिन दिलीप कुमार को सामने देखकर कलाकारों को भी रहा नहीं गया। ढाई-तीन घंटे तक चले गजल कार्यक्रम के बाद आखिरकार एम.ए. कादर ने दर्शकों सेे पूछ लिया कि क्या फिल्मी गाना सुनना पसंद करोगे। दर्शकों ने इसे जमकर प्रतिसाद दिया। मौका देख एम.ए. कादर ने दिलीप साहब पर फिल्माया गया और रफी साहब का गाया हुआ फिल्म कोहिनूर का गीत ‘मधुबन में राधिका’ पेश किया गया तो खूब तालियां बजीं। दिलीप साहब भी बहुत खुश हुए और आशीर्वाद दिया।

दिलीप साहब ने पीठ थपथपाई थी : एम.ए. कादर बताते हैं कि वर्ष 1991 में हिंदुस्तान के मशहूर शायर डॉ. मंशा उर रहमान मंशा साहब के सम्मान में जश्ने मंशा का आयोजन देशपांडे हॉल में किया गया था। अभिनेता दिलीप कुमार कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थे। मंशा साहब की गजलों पर आधारित ‘महफिल गजल‘ का पूरा इवेंट उनके बेटे डॉ. नदीम ने किया था। कार्यक्रम में एम.ए. कादर और मशहूर कव्वाल अब्दुल रब चाऊस ने मंशा साहब की चुनिंदा गजलें पेश की थीं। दिलीप साहब भी कार्यक्रम को निरंतर सुन रहे थे। ऐसे में एम.ए. कादर से रहा नहीं गया। उन्होंने दिलीप साहब का गाना पेश कर लोगों की खूब वाह-वाही लूटी और दिलीप साहब से भी प्रशंसा पाई। 

क्या आपको मेरी अदाकारी पर शुबहा है...
दिलीप कुमार से दस वर्षों के अंतराल में दो बार मिलने का मौका मिला।
पहली बार में यह पूछने पर कि "लारेंस ऑफ अरेबिया" में आपको भूमिका मिली थी  किंतु आपने क्यों इनकार कर दिया। पहले तो उन्होंने कहा कि जिसने भी वह भूमिका निभाई थी, वह बेहतरीन थी। यह कहने पर कि आपकी अंंतरराष्ट्रीय छवि विशेषकर सऊदी अरब आदि में इसका प्रतिकूल असर पड़ने का डर तो नहीं था, तो दिलीप कुमार ने कहा कि आपको मेरी "एक्टिंग" या इबादत पर शक है क्या? तो किसी तरह बातें समेट कर यहीं तक सीमित किया और अगला प्रश्न पूछा कि आपने नरगिस के देहावसान से पूर्व ही उन्हें श्रद्धांजलि दे दी, तो दिलीप कुमार भड़क गए और उन्होंने कहा कि किसी समाचार एजेंसी के पत्रकार ने मुझे यह जानकारी दी कि वह नहीं रहीं, तो मैं कोई प्रमाण-पत्र थोड़े ही मांगता।

इस महान अदाकारा का इंतकाल हो गया तो मैं उस पर शुबहा करूं या कहूं कि आपके पास क्या प्रमाण है? मैंने अपनी आदरांजलि प्रकट की, जिस पर बवाल खड़ा हो गया। खालिश उर्दू बोलने वाले दिलीप कुमार ताजुद्दीन बाबा को भी मानते थे। दूसरी बार उनकी बेगम सायराबानोे भी आई थी, उनके साथ वे दरगाह पर गए थे। उनके और बेगम का चित्र कुछ इस तरह छपा कि जैसे दोनों दरगाह के भीतर हैं, जबकि जनाना दरगाह के भीतर नहीं जाती है, यह मामला भी ले देकर शांत हुआ। उनके बातचीत में हमेशा अभिनय ढरकता था तथा अमन के बारे में वे बहुत संजीदा भी थे, जिन्हें लोगों ने दशकों तक प्यार किया।- आनंद निर्बाण

Created On :   8 July 2021 3:14 PM IST

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