दिन निकलते ही पेट की आग बुझाने निकल पड़ते हैं मासूम भाई-बहन, जानिए अनाथ हुए बच्चों की दास्तान

As soon as the day passes, innocent brothers and sisters go out to extinguish the fire of the stomach
दिन निकलते ही पेट की आग बुझाने निकल पड़ते हैं मासूम भाई-बहन, जानिए अनाथ हुए बच्चों की दास्तान
दिन निकलते ही पेट की आग बुझाने निकल पड़ते हैं मासूम भाई-बहन, जानिए अनाथ हुए बच्चों की दास्तान

डिजिटल डेस्क, नागपुर। दो मासूम बहन-भाई ,न छत , न खाने की व्यवस्था, दिन निकलते ही पेट की आग बुझाने की जद्दोजहद। रात होने पर जहां जगह मिली वहां सो जाना, यही उनका जीवन था। भाई-बहन एक-दूजे के सहारे अपनी जिंदगी बिता रहे थे। मां-बाप पहले ही चल बसे। जीवन की अग्निपरीक्षा से गुजरते इन बच्चों को और एक दर्द का सामना करना पड़ा। इनमें से भाई टीबी से ग्रस्त है। वह एमडीआर टीबी का इलाज करवाने के लिए मनपा के डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर अस्पताल में आया था। उस समय यह कहानी सामने आई। इसकी दखल लेते हुए बहन को मनपा की मदद से चाइल्ड लाइन संस्था ने आधार दिया। 

पहले पिता की मृत्यु हुई फिर मां ने भी दम तोड़ा
निराधार दोनों भाई-बहन उप्पलवाड़ी मार्ग के समतानगर परिसर में रहते हैं। इन बच्चों के पिता की मृत्यु हो चुकी है। उस समय दोनाें अज्ञान थे। 2018 में टीबी व एचआईवी से ग्रस्त होने से मां भी चल बसी। ऐसे में बहन को संभालने की जिम्मेदारी भाई पर आ गई। तबसे यह दोनों जैसे-तैसे जिंदगी गुजार रहे हैं। 

आशाकिरण छात्रावास में दिलाया प्रवेश
 मनपा के डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर अस्पताल में भाई टीबी का उपचार करने पहुंचा। उस समय डॉक्टर ने उसका समुपदेशन किया। इस दौरान इस बच्चे ने अपनी कहानी बताई। भाई-बहन की कहानी सुनकर वहां उपस्थित सभी की आंखें भर आईं। डॉक्टरों ने तुरंत निराधार बच्ची को आधार देने की तैयारी दिखाई। उन्होंने चाइल्ड लाइन संस्था की मदद से बच्ची को आशाकिरण छात्रावास में प्रवेश दिलाया। इस बच्ची की स्वास्थ्य जांच की गई। उसे नए कपड़े दिलाए गए। अब यह बच्ची छात्रावास में है। निराधार बच्ची को आधार दिलाने के लिए डॉ. रोशनी, एटीएस शिवानंद जायभाये, शैलेद्र मेश्राम, कार्यक्रम अधिकारी कोमेश नीलिमा ने अहम भूमिका निभाई।
 

Created On :   15 Jun 2021 5:46 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story