मौसी करती थी 6 वर्षीय बालक का यौन शोषण, कोर्ट पहुंचा मामला

Aunt used to sexually abuse 6-year-old boy, case reached court
मौसी करती थी 6 वर्षीय बालक का यौन शोषण, कोर्ट पहुंचा मामला
मौसी करती थी 6 वर्षीय बालक का यौन शोषण, कोर्ट पहुंचा मामला

डिजिटल डेस्क, नागपुर। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने एक 6 वर्षीय बालक से दुराचार की आरोपी मौसी के खिलाफ एफआईआर खारिज करने से साफ इनकार किया है। न्या.सुनील शुक्रे व न्या.अविनाश घारोटे की खंडपीठ ने इस फैसले में कहा है कि प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेंसेस एक्ट (पोक्सो अधिनियम) का गठन ही बच्चों की यौनाचारों से सुरक्षा के लिए किया गया है। इसके किसी भी आरोपी को बरी करने से पूर्व मूल शिकायत में उल्लेखित आरोपों की गंभीरता पर गौर करना जरूरी है। ऐसे मामले में कई बार बच्चे परिजनों को अपनी आपबीती नहीं बताते या देरी से बताते हैं, इससे उनकी बात पर शंका व्यक्त करना सही नहीं है। कई बार पिटाई या अविश्वास के डर से भी बच्चे शिकायत नहीं करते। एफआईआर में देरी को ही एफआईआर खारिज करने का आधार नहीं मान सकते। ऐसे मामले में एक निष्पक्ष ट्रायल से ही सच्चाई सामने ला सकता है। 

पिता से कहा- सोते वक्त अश्लील हरकतें 
यह मामला शहर के इतवारी क्षेत्र का है। पीड़ित बच्चे के माता-पिता का दिसंबर 2013 में आपसी सहमति से तलाक हो गया था। उस वक्त कोर्ट ने दो वर्षीय बच्चे की कस्टडी उसकी मां को सौंपी थी। मां अपने बेटे को लेकर मायके में रहने लगी। पिता समय- समय पर बच्चे से मिलते रहे। एक ऐसी ही मुलाकात में बच्चे ने पिता को अपनी आपबीती बताई, जिसके बाद 10 सितंबर 2017 को पिता ने बाल कल्याण समिति के पास शिकायत कर दी कि बच्चे की मां और ननिहाल के लोग उसके बच्चे के साथ क्रूरता कर रहे हैं। 6 वर्ष के हो चुके इस बच्चे का शारीरिक शोषण किया जा रहा है। शिकायत में बच्चे की मौसी पर आरोप लगाए कि रात को सोते वक्त वह बच्चे के साथ अश्लील हरकतें करती है। मौसी ने बच्चे को धमकी दे रखी थी कि यदि इस घटना के बारे में वह अपनी मां को बताता है तो उसकी खूब पिटाई की जाएगी।

बाल कल्याण समिति के कहने पर हुई एफआईआर
बाल कल्याण समिति ने इस मामले में अपनी जांच की। जांच अधिकारी के सामने बच्चे ने भी इस बात की पुष्टि कर दी। समिति के कहने पर 25 अक्टूबर 2017 को शांतिनगर पुलिस ने बच्चे की मां, आरोपी मौसी और मामा के खिलाफ पॉक्सो धारा 8 व 12, जुवेनाइल जस्टिस एक्ट धारा 75 और भादवि 323, 34 के तहत मामला दर्ज किया। पुलिस की जांच में बच्चे ने खुलासा किया कि उसने अपनी आपबीती अपनी मां को बताई थी, लेकिन मां ने उसकी बात को महत्व नहीं दिया। विशेष सत्र न्यायालय में आरोपियों ने स्वयं को बरी करने की अर्जी दायर की, लेकिन मामले की गंभीरता को देखते हुए निचली अदालत ने याचिका खारिज कर दी। इसके बाद आरोपियों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। हाईकोर्ट ने मां और मामा को तो मामले से बरी कर दिया, लेकिन मुख्य आरोपी मौसी को बरी नहीं किया। सर्वोच्च न्यायालय ने भी हाईकोर्ट के इस फैसले को कायम रखा था। 

आरोपी मौसी की याचिका खारिज कर दी
अंतत: मौसी ने एफआईआर खारिज करने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की। दलील दी कि उसके खिलाफ गलत मंशा से बच्चे के पिता ने उसे पट्टी पढ़ा कर शिकायत कराई है। कहा कि घटना की तारीख और शिकायत कराने की तारीख में एक लंबा अंतर है, लेकिन हाईकोर्ट ने इन तथ्यों को महत्व नहीं दिया। उक्त निरीक्षण के साथ आरोपी मौसी की याचिका खारिज कर दी। 

Created On :   12 Feb 2021 10:28 AM IST

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