निजी अस्पतालों में बेड की स्थिति बिकट, आम जनता थपेड़े झेलने मजबूर

Bed condition sold out in private hospitals, general public forced to bear the brunt
निजी अस्पतालों में बेड की स्थिति बिकट, आम जनता थपेड़े झेलने मजबूर
निजी अस्पतालों में बेड की स्थिति बिकट, आम जनता थपेड़े झेलने मजबूर

डिजिटल डेस्क, नागपुर। कोरोना संक्रमितों की संख्या कम होने का नाम नहीं ले रही है। सबसे बड़ी परेशानी बेड को लेकर है। कई अस्पतालों में परिजनों के साथ हुए हंगामे के बाद मनपा ने निजी अस्पतालों में बेड की उपलब्धता की जानकारी के लिए एक हेल्पलाइन नंबर जारी किया, जो 0712-2567021 है। राहत तो मिली, मगर परेशानी यह है कि इस हेल्पलाइन नंबर की जानकारी और अस्पतालों में बेड उपलब्धता की हकीकत में मेल नहीं।  

केस : स्नेह नगर निवासी एक महिला ने बताया कि उनके 62 वर्षीय पति कोरोना पॉजिटिव हैं। दो दिन से होम क्वारेंटाइन है। अचानक उनकी तबीयत खराब हो गई। ऑक्सीजन लेवल भी कम हो गया। मनपा के हेल्पलाइन नंबर पर कॉल किया, तो  मनपा से सेंट्रल बाजार के पास के एक निजी अस्पताल का नंबर दिया गया। जब हमने कॉल किया तो वहां से जवाब मिला कि बेड नहीं है। इस तरह के अनेकों मामले हर रोज सामने आ रहे हैं। 

जब भी मरीज को भर्ती करें, मनपा को अपडेट दें
मरीज के डिस्चार्ज होने के बाद मनपा के कॉल सेंटर में डाटा अपडेट किया जाता है, इसलिए मनपा के कॉल सेंटर में संबंधित हॉस्पिटल में बेड उपलब्ध होने की जानकारी दिखती है, जबकि एडमिट करने की प्रक्रिया दिन भर चलती रहती है। इसलिए अब ऐसा  आर्डर निकाल रहे हैं, जिसमें कोई अस्पताल पेशेंट को एडमिट करते वक्त ही कॉल सेंटर को जानकारी दे, ताकि डाटा अपडेट किया जा सके। ऐसा नहीं है कि बेड नहीं है, प्रॉब्लम यह है कि  अपडेशन से पहले ही  मरीज एडमिट हो रहे हैं।  -जलज शर्मा, अतिरिक्त आयुक्त मनपा

परिजन सीधे संपर्क करें, तो बेहतर
बेड कम हैं। हमारे अस्पताल में कोरोना मरीजों के लिए केवल 9 बेड हैं। जैसे ही कोई पेशेंट डिस्चार्ज होता है, हम वेटिंग लिस्ट वाले को कॉल कर देते हैं। अगर कोई मरीज ज्यादा सीरियस है, तो वेटिंग लिस्ट ब्रेक कर उसे भर्ती कर लिया जाता है। कॉल सेंटर अपना काम कर रहे हैं, पर मुझे लगता है कि किसी मरीज को प्राइवेट हॉस्पिटल में भर्ती होना है तो परिजनों को डायरेक्ट प्राइवेट हॉस्पिटल में संपर्क करना होगा और वेटिंग लिस्ट में नाम डालना होगा। बेड कम हैं, इसलिए जिन अस्पतालों के नाम प्रिफर किए जाते हैं, वहां जाकर संपर्क करना चाहिए। स्थिति आउट ऑफ कंट्रोल है। 
-डॉ. विक्रांत देशमुख, सीनियर डॉक्टर रेस्पिरा अस्पताल

डीसीपी ने फोन किया तब 4 घंटे बाद पुलिसकर्मी को मिला बेड
 बेड नहीं...। संकटकाल में सबसे बड़ी समस्या। मरीज परेशान, परिजन हैरान। सरकारी हो या निजी, इलाज के लिए लोग भागते फिर रहे हैं। ‘कोरोना योद्धा’ पुलिसकर्मियों के साथ  भी यही हो रहा है। बिना डीसीपी के फोन के भर्ती की कार्रवाई तक नहीं हो पा रही है। समझने वाली बात है कि जब पुलिसकर्मियों के साथ यह स्थिति बन रही है, तो फिर आम आदमी का क्या हाल होगा?  

अस्पतालों के चक्कर लगाती रही बहन
लकड़गंज पुलिस स्टेशन के कॉन्स्टेबल रूपेश बालबुधे की तबीयत खराब हो रही थी। भर्ती कराने के लिए उनकी बहन अस्पतालों के चक्कर लगाती रही। रेडिएंस हॉस्पिटल पहुंची। मरीज का ऑक्सीजन लेवल लगातार कम हो रहा था। 101 और 102 डिग्री बुखार था। डॉक्टर बार-बार यही बोल रहे थे कि आधे घंटे में बेड दे रहे हैं।  शाम 7 बजे तक मरीज की हालत गंभीर हो गई। इसके बाद मरीज के परिजनाें ने इसकी जानकारी डीसीपी गजानन राजमाने को दी। इसके बाद अधिकारियों ने अस्पताल में संपर्क किया और तब कहीं मरीज को बेड दिया गया और इलाज शुरू हुआ। 

पहले भी बनी थी ऐसी स्थिति
इसी तरह की स्थिति कुछ दिन पहले भी हुई थी। एक निजी अस्पताल में पुलिसकर्मी को भर्ती नहीं किया जा रहा था। डीसीपी के कॉल के बाद भर्ती प्रक्रिया शुरू की गई लेकिन तब तक मरीज की मृत्यु हो गई।
 

Created On :   15 Sep 2020 6:03 AM GMT

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