1989 से 2018 तक रहा बीजेपी-शिवसेना का साथ, जानें...कैसे आई रिश्तों में कड़वाहट

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1989 से 2018 तक रहा बीजेपी-शिवसेना का साथ, जानें...कैसे आई रिश्तों में कड़वाहट
1989 से 2018 तक रहा बीजेपी-शिवसेना का साथ, जानें...कैसे आई रिश्तों में कड़वाहट

डिजिटल डेस्क, महाराष्ट्र। बालासाहेब के जन्मदिन के मौके पर शिवसेना ने बड़ा एलान किया है। इस एलान के बाद राज्य की सत्ता में बदलाव आ सकता है। हालांकि यह बदलाव 2019 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान देखने को मिलेगा। बता दें की मंगलवार को शिवसेना ने 2019 लोकसभा और राज्यसभा के दौरान अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है। वहीं दोनों पार्टियां के गठबंधन वाली राज्य सरकार बनी रहेगी। 


2014 में आई दरार
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2014 में बीजेपी और शिवसेना के रिश्तों में कड़वाहट आनी शुरू हो गई थी। हुआ यह था की शिवसेना बीजेपी को 119 सीटें देने को तैयार नही थी। यह बात बीजेपी को नागवार गुजरी। दोनो पार्टियों ने राज्य में अलग अलग चुनाव लड़ा। बीजेपी को इस कड़वाहट का बड़ा फायदा हुआ। जहां शिवसेना के साथ चुनाव लड़ने पर बीजेपी को केवल 119 सीटों पर चुनाव लड़ने को मिल रहा था वहीं बीजेपी ने यहां अकेले चुनाव लड़कर राज्य में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। बीजेपी को इस कड़वाहट से बड़ा फायदा मिला। बीजेपी ने 288 विधानसभा वाले राज्य में 123 सीटें जीतीं। वहीं शिवसेना को 63 सीटें मिली हैं चुनाव के बाद दोनो पार्टियों ने गठबंधन कर लिया। बता दें की शिवसेना और बीजेपी का साथ 29 साल पुराना था। शिवसेना ने बीजेपी का हाथ सन् 1989 में पकड़ा था और विधानसभा और लोकसभा चुनाव के लिए दोनो ने गठबंधन कर लिया। दोनो पार्टियां बीएमसी चुनावों मे एक दूसरे के साथ रहीं और बहुत दिनों तक बीएमसी पर राज किया। सन् 1995 से लेकर सन् 1999 तक इन पार्टियों की मिली-जुली सरकार रही। इस सरकार मे मुख्यमंत्री पद पर शिवसेना के प्रमुख मनोहर जोशी कार्यरत रहे फिर उसके बाद 7-8 महीनों के लिए नारायण राणे को पद पर नियुक्त किया गया।


बालासाहेब ने सुषमा स्वाराज़ को बताया था पीएम उम्मीदवा
शिवसेना और बीजेपी के बीच सिर्फ 119 सीटों की ही नही थी। दोनों पार्टियों के बीच खाई में खिच गई थी जब 2012 में बालासाहेब ने सार्वजनिक तौर पर कहा था की वह प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे सही उम्मीदवार सुषमा स्वाराज़ को बताया था। वह सुषमा स्वाराज़ को प्रधानमंत्री के पद पर देखना चाहते थे। लेकिन 2013 मे बीजेपी की तरफ से नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बना दिया गया।


25 सालों बाद बीएमसी चुनाव तोड़ा गठबम
शिवसेना और बीजेपी ने गठबंधन मे रहकर 25 सालों तक बीएमसी पर राज किया लेकिन 2017 में इस रिश्ते मे दरार और भी गहरी हो गई जब उद्धव ठाकरे ने कहा की वह बीजेपी से अलग होकर बीएमसी चुनाव लड़ना चाहते थे। चुनाव के बाद फिर ये दोनो पार्टियां एक दूसरे के साथ मे आ गई लेकिन इन दोनो पार्टियों के रिश्ते पहले जैसे नही रहे।
 

गठबंधन के बावजूद विरोध में रही शिवसेना
बीजेपी और शिवसेना ने भले ही राज्य की सत्ता में तीन साल पूरे कर लिए हों लेकिन इस दौरान दोनों कई मुद्दों पर एक दूसरे के आमने-सामने रहीं। इन तीन सालों में शिवसेना ने अपनी पत्रिका में सहयोगी केंद्र सरकार और राज्य सरकार के खिलाफ खुलकर लिखा। केंद्र सरकार द्वारा की गई नोटबंदी हो या फिर जीएसटी शिवसेना ने जमकर विरोध किया। यहां तक की शिवसेना यह तक कहा कि बीजेपी राज्य में पूरे 5 साल तक अपनी सरकार नहीं चला पाएगी। एक ओर शिवसेना ने राज्य की सत्ता को अपने हाथ में रखा तो राज्य की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते विपक्ष की भूमिका निभाई। जानकारों की माने तो शिवसेना इस तरह के विरोध और समर्थन से बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियों से नाराज वोटरों को अगले चुनाव में अपने पाले में लाने की जुगत में हैं। 

Created On :   23 Jan 2018 4:01 PM GMT

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