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इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन सिलेंडर से भी हो रहा ब्लैक फंगस

डिजिटल डेस्क, नागपुर। ऑक्सीजन ने हजारों कोरोना संक्रमित मरीजों की सांसों की डोर टूटने से रोकी है, लेकिन अब इसी ऑक्सीजन में कमी (अशुद्धता) के कारण ब्लैक फंगस यानी म्यूकर माइकोसिस जैसी बीमारी होने की आशंका जताई जा रही है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के महासचिव डॉ. जयेश लेले के अनुसार ब्लैक फंगस एक प्रकार का फंगल इंफेक्शन है। आज जो इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन अस्पतालों को सप्लाई की जा रही है, उसमें सावधानियां नहीं बरती जा रही हैं, जिसके चलते यह इंफेक्शन बढ़ रहा है। यहां तक की ऑक्सीजन सप्लाई के दौरान जो पानी का इस्तेमाल कुछ जगह हो रहा है, उसमें नल का पानी इस्तेमाल किया जा रहा है, जबकि डिस्टिल्ड वॉटर का इस्तेमाल होना चाहिए। ब्लैक फंगस का एक कारण इंडस्ट्रियल सिलेंडर को सैनिटाइज नहीं करना भी माना जा रहा है।
अलग-अलग ऑक्सीजन नहीं बनती
इस संबंध में श्री इंफोटेक के प्रोपराइटर श्याम सुंदर राजपूत का कहना है कि बड़ी-बड़ी इंडस्ट्री ऑक्सीजन को लिक्विड फॉर्म में बनाती हैं। मेडिकल लिक्विड ऑक्सीजन को एयर ऑक्सीजन में कन्वर्ट करके सिलेंडरों में भरा जाता है। सिलेंडर में गैस भरते समय कुछ सावधानियां बरतनी पड़ती हैं। इंडस्ट्री से तो शुद्ध ऑक्सीजन दी जाती है, लेकिन डिस्ट्रीब्यूटर उसे कैसे भरता है यह पता नहीं। वर्तमान में जो समस्याएं आ रही हैं, हो सकता है कि डिस्ट्रीब्यूटर वजन बढ़ाने के लिए जिस प्रेशर से सिलेंडर भर रहे हैं, उसमें असावधानियां बरती जा रही हैं। ऑक्सीजन बनाने वाली कंपनियां मेडिकल और इंडस्ट्रियल यूज दोनों के लिए अलग-अलग ऑक्सीजन नहीं बनाती हैं।
100% शुद्ध ऑक्सीजन नहीं होती
जानकारों के अनुसार ऑक्सीजन की कमी को देखते हुए खुद सरकार ने कह दिया कि इंडस्ट्रियल यूज की ऑक्सीजन को अस्पतालों में शिफ्ट किया जाए। होम आइसोलेशन में भी ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी थी, यही वजह थी कि बहुत से लोगों ने इंडस्ट्रियल यूज ऑक्सीजन सिलेंडर का प्रयोग अपने घरों में किया, जिसमें 100% शुद्ध ऑक्सीजन नहीं होती, बल्कि कुछ सरल तेल का भी उपयोग किया गया होता है, जिसकी वजह से एक व्यक्ति कोरोना से तो बच जाएगा, लेकिन वह फंगल इनफेक्शन का शिकार बन सकता है।
पानी में फंगस होने की आशंका
दूसरा बड़ा कारण है ऑक्सीजन कंसंट्रेटर, जिनके उपयोग के लिए साफ-साफ की गाइडलाइन है कि आप उसमें सिर्फ डिस्टिल्ड वॉटर यानी पूरी तरह से स्वच्छ जल का प्रयोग करें, लेकिन जब पूरा परिवार ही संक्रमित हो तो डिस्टिल्ड वाटर की बोतल कहां से लाएं। ऐसे में बहुत से लोगों ने नल के पानी का इस्तेमाल किया, जिस पानी में कुछ बैक्टीरिया और फंगस होने की आशंका थी और जिसके बाद वह ब्लैक फंगस के शिकार हो गए।
7 दिन में बदल दें पाइप
शहर के नियोनटोलॉजिस्ट पीडियाट्रिशियन डॉ. राजेश अग्रवाल ने बताया कि म्यूकर माइकोसिस एक फंगल इंफेक्शन है। जिस मरीजों को कोविड के दौरान ऑक्सीजन दी गई है, उस समय ऑक्सीजन सप्लाई में फिल्टर की तरह उपयोग होने वाले पानी का शुद्ध होना जरूरी है। पानी की अशुद्धता, बैक्टिरिया और वायरस के कारण यह फंगल इंफेक्शन होता है। जिस पाइप से ऑक्सीजन दे रहे हैं, उसे भी 7 दिन में बदल दें, क्योंकि पाइप में वायरस जमा हो जाते हैं। घर में पानी का उपयोग कर रहे हैं, तो पहले पानी को उबाल लें, फिर उसे ठंडा कर ऑक्सीजन में उपयोग करें।
डायबिटीज हमेशा कंट्रोल में रखेंं
चिकित्सा विशेषज्ञों का सुझाव है कि मरीजों को ऑक्सीजन में जो पानी दिया जाता है, वह पानी गंदा हो तो भी कोरोना मरीजों को म्यूकर माइकोसिस हो सकता है। इसमें मरीजों के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि शुगर कंट्रोल में रखें, ऑक्सीजन की जरूरत नहीं हो, तो मत लें, जब तक जरूरत न हो तो एस्टेरोइड न लें, अस्पताल में भर्ती होना पड़े तो ऑक्सीजन में प्यूएरिफाई पानी लें और नल के पानी का इस्तेमाल न करें।
Created On :   22 May 2021 3:26 PM IST