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ब्लाइंड हरीश ने सरकारी कोटे की नौकरी छोड़, पसंदीदा काम चुना, बुक भी लिख डाली

डिजिटल डेस्क, नागपुर। इच्छा शक्ति दृढ़ हो तो कोई भी काम ना-मुमकिन नहीं होता। इसे सार्थक किया है कि शहर के हरीश महावीर प्रजापति ने। 90 प्रतिशत दृष्टिबाधित हरीश ने विकलांग कोटे में मिल रही सरकारी नौकरी को छोड़ अपने मन का काम करने की ठानी, ताकि कोई उन्हें कमतर नहीं समझे। उन्होंने कोरोनाकाल में समय का उपयोग करते हुए "हम तो जीतेंगे" पुस्तक लिखी, जो काफी सराही जा रही है। वे एक लेखक और कवि के साथ ही शतरंज में नेशनल लेवल तक पहुंच चुके हैं, राष्ट्रीय स्तर की कई वाद-विवाद प्रतियोगिताएं जीत चुके हैं, वे स्टैंड-अप कमेडियन के साथ यू-ट्यूवर भी हैं। अपनी विशेष उपलब्धियों के लिए 100 से अधिक पुरस्कर जीत चुके हैं।
हम तो जीतेंगे, पुस्तक लिखी : हरीश निम्न मध्यम परिवार से हैं। पिता ई-रिक्शा चालक हैं। तीन वर्ष की उम्र में ही हरीश ने दृष्टि गवां दी थी। दसवीं तक की शिक्षा ज्ञानज्योति अंध विद्यालय में ली। 11 से स्नातक तक की शिक्षा वसंतराव नाईक शासकीय कला व समाज विज्ञान संस्था से ली। इसके बाद उन्होंने अर्थशास्त्र विषय में मास्टर्स की डिग्री पूरी की। वे राष्ट्रीय स्तर पर कई प्रतियोगिताएं जीत चुके हैं। अभी तक 100 से ज्यादा पुरस्कार उनकी झोली में आ चुके हैं।
जोखिम : हरीश ने बताया कि वे मोटिवेशनल स्पीकर बनना चाहते हैं। लोग सलाह देते हैं कि विकलांग कोटे से नौकरी मिलती है, तो यह नौकरी कर लो। सरकारी नौकरी होने के कारण बाद मे पेंशन का भी लाभ मिलेगा, लेकिन मुझे अपने आप पर विश्वास है और एक दिन मंजिल हासिल करके रहूंगा। मेरा मानना है कि बिना जोखिम लिए जिंदगी में मुकाम हासिल नहीं किया जा सकता। मुझे भूगोल विषय बहुत पसंद है। बहुत सारे लोगों ने कहा कि तुम दृष्टिबाधित हो, यह विषय नहीं कर पाओगे। लेकिन मैंने स्वयं पर विश्वास रखा और बारहवीं कक्षा में भूगोल में टाॅप किया। बीए में प्रवेश लेते समय साइकोलॉजी विषय के बारे में यही सुनने को मिला, लेकिन मैंने ग्रेजुएशन साइकोलॉजी से किया। मुझे अर्थशास्त्र विषय में हमेशा कम नंबर मिलते थे, इसलिए मैंने मास्टर्स की डिग्री के लिए अर्थशास्त्र विषय चयनित किया।
Created On :   2 Aug 2021 11:23 AM IST