आदिवासियों की हकीकत से रूबरू कराती ‘बोको-एक परंपरा’  

Boko-a tradition dealing with the reality of tribals
आदिवासियों की हकीकत से रूबरू कराती ‘बोको-एक परंपरा’  
आदिवासियों की हकीकत से रूबरू कराती ‘बोको-एक परंपरा’  

डिजिटल डेस्क, नागपुर ।  महाराष्ट्र के चिखलधरा के मेलघाट में बसे आदिवासियों के कई गांव कुपोषण के चलते देश-विदेश में पहचाने जाते हैं। आदिवासी समाज में बढ़ता कुपोषण और बाल विवाह पर ‘बोको एक परंपरा’ नामक  फिल्म बनाने का निर्णय शिवसेना के रामटेक लोकसभा संपर्क प्रमुख सुधीर सूर्यवंशी ने लिया। फिल्म हिंदी, मराठी व अंगरेजी भाषा में रूपहले पर्दे पर नजर आएगी। आदिवासी समाज की पूरी हकीकत, उनकी व्यथा जैसे पहलुओं से सभी को रूबरू कराने का प्रयास बोको के जरिए करने की जानकारी निर्माता सुधीर सूर्यवंशी ने हिंगना में आयोजित पोस्टर लॉच कार्यक्रम के दौरान दी। इस अवसर पर शिवसेना नागपुर ग्रामीण के जिला प्रमुख संदीप इटकेवार, फिल्म के सह निर्माता गणेश पाटील, सचिन शेंद्रे, जीवन जवंजाल आदि उपस्थित थे।

मेलघाट में व्याप्त कुपोषण और बाल विवाह पर बन रही फिल्म
नहीं छोड़ना चाहते पुरानी परंपरा : सूर्यवंशी ने आगे बताया कि जंगल के बीच बसे आदिवासी गांव में आज भी पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही परंपराएं जारी है। वे लोग शासन की किसी सुविधा को स्वीकार नहीं करना चाहते। वे लोग अपनी पुरानी परंपराओं को ही आगे बढ़ाना चाहते हैं। वहां आज भी आपस में शादियां होती हैं। 75 वर्ष का आदमी 25 वर्ष की महिला से शादी कर लेता है और  कभी भी छोड़ देता है। हमारा प्रयास समाज को कुरीतियों से बाहर निकालने का है। प्रशासन के सामने भी इन चीजों को लाना चाहते हैं, ताकि समाज के लोग आगे बढ़े।

करीब से जाना है आदिवासियों की व्यथा को
निर्माता सूर्यवंशी ने बताया कि मैंने अपने जीवन की शुरुआत मेलाघट से की हैं। वहां के आदिवासियों की समस्याओं को बेहद करीब से महसूस किया। मेलघाट में 20 ग्राम पंचायत मिलाकर 200 गांव आते हैं, जो पूरी तरह आदिवासी बहुल क्षेत्र है। यहां पर बड़े पैमाने पर आदिवासियों में कुपोषण और बाल विवाह प्रथा है। बोको आदिवासी शब्द है, जिसका मतलब छोटा बच्चा होता है। आदिवासी अपने बच्चों को बोको बोलते हैं। उन्होंने आगे कहा कि मेलघाट में कोरकू आदिवासी रहते हैं। साथ ही यहां गवली, मुस्लिम, गवलान, राठयाअ भिलाला आदि समाज भी रहता हैं, लेकिन उनमें कुपोषण नहीं है।  सिर्फ आदिवासी समाज में ही कुपोषण है। जिसका एक कारण सरकार द्वारा आदिवासी गर्भवती महिलाओं को मिलने वाली सुविधाएं शामिल हैं। दूसरी ओर आदिवासियों के पास काम नहीं होने की वजह से वहां के पुरुष रोजगार की तलाश में शहर की ओर पलायन करना बड़ी समस्या है।

 आदिवासियों को जंगल में जाने नहीं दिया जाता। जिससे उनका रोजगार छीन गया है। आदिवासी गांव में तीन लोगों का राज चलता है। जिसमें पुजारी (ओमका), पडियार (डॉक्टर) और आडा पाटील (मुखिया) का समावेश हैं। जो गांव में डर का माहौल  पैदा कर अंधश्रद्धा को बढ़ाकर अपना घर चलाते हैं। आदिवासियों के पास कारगर बड़ी-बड़ी बीमारियों के इलाज की दवाइयां हैं। जिसका सरकार ने जतन करना चाहिए। इन सब मुद्दों को लेकर यह फिल्म बनाई जा रही है। जिसमें आदिवासियों में कुपोषण बढ़ने की मुख्य वजह और उस पर कैसे मात दे सकते हैं, इन सब पहलुओं को उजागर करने का प्रयास किया गया है। फिल्म में विदर्भ के कलाकारों का समावेश होगा। फिल्म जी कुमार पाटील इंटरटेनमेंट नागपुर के बैनर तले बनने जा रही है।

Created On :   25 Jan 2021 3:27 PM IST

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