रेप पीड़िता के शरीर में चोट का निशान न होने का मतलब यह नहीं कि उसकी सहमति थी : बांबे हाईकोर्ट

Bombay High Courts comment over injury on the body of rap victim
रेप पीड़िता के शरीर में चोट का निशान न होने का मतलब यह नहीं कि उसकी सहमति थी : बांबे हाईकोर्ट
रेप पीड़िता के शरीर में चोट का निशान न होने का मतलब यह नहीं कि उसकी सहमति थी : बांबे हाईकोर्ट

डिजिटल डेस्क,मुंबई ।  यदि रेप पीड़िता के शरीर में चोट का कोई निशान नहीं मिलता है तो इसका अर्थ यह नहीं है पीड़िता ने संबंध बनाने के लिए सहमति दी थी। यह टिप्पणी करते हुए बांबे हाईकोर्ट ने दुष्कर्म के मामले से 21 साल पहले आरोपी को बरी करने के फैसले को पलट दिया है  और आरोपी को इस मामले में दोषी ठहाराया। नाशिक की निचली अदालत ने इस मामले में आरोपी को 1997 में बरी किया था। निचली अदालत के फैसले के खिलाफ राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में अपील की थी। 

न्यायमूर्ति इंद्रजीत महंती व न्यायमूर्ति वीके जाधव के सामने इस अपील पर सुनवाई हुई। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि निचली अदालत आदेश खामी व लापरवाहीपूर्ण है। निचली अदालत ने तकनीकी पहलुओं पर गौर करते हुए अपना फैसला सुनाया है। खंडपीठ ने मामले से जुड़े दस्तावेजी सबूत  व गवाहों के बयान पर गौर करने के बाद राज्य सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया।  खंडपीठ ने कहा कि यह एक नाबालिग लड़की के साथ दुष्कर्म का मामला है। भले ही यह मामला काफी पुराना है लेकिन लोगों का न्यायिक संस्था पर भरोसा कायम रहे इसलिए सबूतों के आधार पर आरोपी को दोषी ठहराया जाता है और आरोपी मच्छींद्र  सोनावने को सात साल के कारावास की सजा सुनाई जाती है।

सुनवाई के दौरान सोनवाने के वकील ने दावा किया कि  मामले से जुड़े दस्तावेजी सबूत दर्शाते है कि पीड़िता के शरीर में कोई चोट के निशान नहीं है। इस पर खंडपीठ ने कहा कि दुष्कर्म के दौरान पीड़िता के शरीर में चोट का निशान न होने का अर्थ उसकी रजामंदी से नहीं लगाया जा सकता है। यह कहते हुए खंडपीठ ने राज्य सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया। खंडपीठ ने विधि सेवा प्राधिकरण के प्राधिकरण के सचिव को मामले से जुड़ी पीड़िता को मुआवजा देने की दिशा में भी उचित कदम उठाने को कहा है। 

Created On :   29 Dec 2018 12:38 PM GMT

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