Budget-2020: बजट अर्थव्यवस्था पर बनी बिना ब्रेक की औसत फिल्म

Budget-2020: Average film without a break on budget economy
Budget-2020: बजट अर्थव्यवस्था पर बनी बिना ब्रेक की औसत फिल्म
Budget-2020: बजट अर्थव्यवस्था पर बनी बिना ब्रेक की औसत फिल्म

डिजिटल डेस्क, नागपुर। देश के बजट के इतिहास में यह पहला मौका था जब बिना ब्रेक के लगातार ढाई घंटे तक वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट पर बोला। यह अर्थव्यवस्था पर बनी बिना ब्रेक की ढाई घंटे की औसत फिल्म थी। बजट में 5 से 7.5 लाख रुपए आय के टैक्स स्लैब को 20 फीसदी से 10 फीसदी और 7.5 से 10 लाख रुपए आय के टैक्स स्लैब को 20 से 15 फीसदी किया है, जो निश्चित तौर पर राहत की बात है, लेकिन डिमांड होना भी जरूरी है जिसकी उपाय योजना नहीं दिखाई पड़ रही है। यह बात ‘दैनिक भास्कर’ से बजट पर चर्चा के दौरान इंडिया न्यूज के मुख्य राजनीतिक संपादक मनीष अवस्थी ने कही।

टीवी की नजर आम बजट
उन्होंने बताया कि, वित्त मंत्री सीतारमण ने मोदी-2 के बजट में जब बोलना आरंभ किया तो 2.30 घंटे की बिना ब्रेक की फिल्म की तरह प्रसारण चलता रहा। संवाद माध्यमों को समझ नहीं आ रहा था कि, वह कब तक बोलेंगी, क्योंकि बजट में आंकड़ों की बाजीगिरी को आम व्यक्ति की भाषा में समझाने की जिम्मेदारी एंकर और आमंत्रित विषय विशेषज्ञों की होती है, लेकिन विशेषज्ञों या अर्थशास्त्रियों को अपने इनपुट दर्ज करवाने का मौका नहीं मिला। अंग्रेजी में भाषण होने पर उसका त्वरित अनुवाद भी एक चुनौती बनी रहती है, क्योंकि सही और सटीक जानकारी दर्शकों को देनी होती है। दर्शक चाहता है कि, बजट से उसके दैनिक जीवन पर क्या असर पड़ने वाला है, वह बताया जाए, जो चैनल की नैतिक जिम्मेदारी होती है। बजट को कवर करने के िलए संबंधित विषयों के लिए रिपोर्टर वहां जाकर विजुअल के साथ रिपोर्टिंग करते हैं, लेकिन ऐसे में समय नहीं निकाल पाए।

दिल्ली चुनाव और बजट
उन्होंने कहा कि, दिल्ली चुनाव के समय बजट आया है। दिल्ली की राज्य सरकार ने स्वास्थ्य में फरिश्ता स्कीम में रोगी का मुफ्त उपचार और शिक्षा संस्थान को सुदृढ़ करने का काम किया है। वही, इस बजट में उस पर राहत दिखाई दे रही है। ऐसे में यह भी सोचना होगा कि, दिल्ली चुनाव पर बजट का कितना असर रहेगा।

बजट का विश्लेषण
उन्होंने कहा कि, बजट में आम आदमी की मूलभूत जरूरत रोटी, कपड़ा और मकान पर ठोस निर्णय कुछ दिखाई नहीं दिया। बाजार में डिमांड नहीं बन पा रही है और रोजगार नहीं मिलने से बेरोजगारी है, ऐसे में जीडीपी को 10 और 5 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी की बात किस तरह देखें, जबकि मंदी या बेरोजगारी के लिए कोई विशेष योजना नहीं है। सरकार ने पहल की है कि, यदि कोई बैंक डूबती है, तो वह 1 लाख की जगह खाताधारक को 5 लाख रुपए देंगे, लेकिन ऐसा न हो सरकार को उस दिशा में काम करना चाहिए। आम व्यक्ति का एक-एक पैसा कीमती होता है। अर्थ व्यवस्था को सुधारने और वैश्विक मार से बचाव के लिए कदम उठाने की दिशा में कदम कैसे उठाएंगे, दिखाई नहीं पड़ रहे हैं। फिलहाल स्थिति औसत है रिव्यू आगे मालूम चलेगा, क्या स्थिति है।

बजट की यह है स्थिति
रेल में वाई-फाई की बात शुरुआत से की जा रही है, लेकिन अब भी राजधानी तक में पूरी तरफ नेट नहीं है, स्टेशन की स्थिति भी ऐसी ही है। खान-पान और स्वच्छता के साथ-साथ अब इंटरनेट भी जरूरी अंग बन गया है, उसके बिना लोगों में चिड़चिड़ापन दिखाई देता है। टीवी की स्क्रीन भी अब तक नहीं आई है। किसानों को पेंशन में 6 हजार के बाद 12 हजार या उससे अधिक की उम्मीद थी, जो टूट गई। सड़क इंफ्रास्ट्रक्चर में सिर्फ 10 फीसदी बढ़ोतरी हुई, वहीं जीवनस्तर बढ़ाने के लिए जिलास्तर पर हवाई पट्टी को एटीआर से कनेक्टिविटी देने पर जोर दिया जा रहा है। भविष्य बताने वाली लाल किताब की पोटली से बजट पार्ट-2 में जेब भरने की जगह खाली रह गई। सरकार गठित होने के बाद पार्ट-2 का पहला बजट होने से वोट बटोरने की चुनौती नहीं थी। अंत में तो यही है कि, बजट की रस्म में हलवा बनता है, लेकिन ऐसी स्थिति में हलवा और पुरी आसान नहीं है।

Created On :   1 Feb 2020 9:58 PM GMT

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