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सेंट्रलाइज्ड किचन प्लांट में भी नहीं शुद्धता की गारंटी, मेंटिनेंस हो रहा मुश्किल

डिजिटल डेस्क,नागपुर। सरकार के कहने पर जिन चयनित संस्थाआें ने सेंट्रलाइज्ड किचन के प्लांट लगाए, वह बैंक का कर्ज भरते-भरते परेशान हो गए हैं। इसका मेंटिनेंस इनके लिए मुश्किल हो रहा है। वैसे तो अन्न व आैषधि प्रशासन विभाग के नियमों के मुताबिक स्कूली बच्चों को शुद्ध भोजन (हाथ स्पर्श नहीं होना) मिलना चाहिए, लेकिन यहां आज भी हाथ से बना भोजन ही बच्चों को परोसा जा रहा है। जिस माहौल में भोजन तैयार कर बच्चों को दिया जा रहा है, उसमें स्वच्छता व शुद्धता की कोई कसौटी नहीं है।
2011 में पेश की गई संकल्पना
राज्य के पूर्व शिक्षा मंत्री राजेंद्र दर्डा ने 2011 में अनुदानित स्कूलों को मिलने वाले मिड-डे मिल में सेंट्रलाइज्ड किचन की संकल्पना पेश की थी। 2011-12 में इसके लिए आवेदन मंगाए गए थे। नागपुर जिले की 7 स्वयंसेवी संस्थाआें सहित राज्य की सैकड़ों संस्थाआें का चयन किया गया था। राज्य के शिक्षा विभाग ने चयन करने के पूर्व जिस जगह मशीन लगेगी, वह जगह व मशीन के लिए की गई व्यवस्था की पुष्टि कर ली थी। सेंट्रलाइज्ड किचन के एक मशीन की कीमत 25 लाख से ज्यादा है। पूरा प्लांट खड़ा करने में 40 लाख तक का खर्च आता है। इसके अलावा हर महीने इसका मेंटिनेंस हजारों रुपए आता है। इस बीच 2013 में कुछ लोग कोर्ट गए आैर सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में सेंट्रलाइज्ड किचन को सही मानते हुए इस दिशा में उठाए जा रहे कदमों को सही बताया था।
समस्या का नहीं कोई समाधान
2014 में सरकार बदली आैर तब से अब तक इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। फरवरी 2016 में शिक्षा संचालक पुणे ने राज्य की सभी चयनित संस्थाआें को पत्र लिखकर 12 व 13 अप्रैल 2016 को बुलाकर पुन: दस्तावेजों की जांच-पड़ताल की। संस्थाआें ने प्लांट लगाने पर आए खर्च व हर महीने बिजली, पानी व रख-रखाव पर हो रहे खर्च का ब्यौरा दिया। बैंक से कर्ज लिए बगैर मुनाफे का ब्याज भरने की व्यथा भी बताई। शिक्षा संचालक कार्यालय ने शीघ्र समाधान होने का वादा किया, लेकिन कोई कदम नहीं उठाए गए। थक-हार कर मिड-डे मिल के लिए चयनित कुछ संस्थाआें ने सेंट्रलाइज्ड किचन शुरू करने की मांग लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की और सरकार को पार्टी बनाया गया। दिल्ली, मध्य प्रदेश, गुजरात व पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों में सेंट्रलाइज्ड किचन व्यवस्था पर अमल हो रहा है। पुरोगामी व प्रगतिशील महाराष्ट्र में आज भी स्कूल में ही भोजन बनाकर बच्चों को दिया जा रहा है।
सरकार नहीं ले रही दिलचस्पी
सेंट्रलाइज्ड किचन के लिए लाखों की मशीन लगाई। पिछले पांच साल से मशीन धूल खा रही है। बिजली-पानी का किराया, मेंटिनेंस व बैंक का कर्ज भरना पड़ रहा है। जिन लोगों ने किराए के कमरों में प्लांट लगाया, उन्हें किराया भी देना पड़ रहा है। 2014 में कोर्ट ने हरी झंडी दी, लेकिन सरकार दिलचस्पी नहीं ले रही है। कक्षा एक से 8वीं तक विद्यार्थी कच्ची उम्र के होते हैं, इसलिए इन्हें संक्रमण होने की संभावना ज्यादा रहती है। शीघ्र इस पर अमल नहीं हुआ, तो प्लांट लगाने वालों काे भूखे मरने की नौबत आ जाएगी। ( चंद्रभान ठाकुर, याचिकाकर्ता)
सेंट्रलाइज्ड किचन पर कोई आदेश नहीं
अनुदानित स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को स्कूल में ही भोजन बनाकर खिलाया जा रहा है। इसके लिए अलग से स्टाफ नहीं दिया गया है। स्वच्छता व शुद्धता के लिए सेंट्रलाइज्ड किचन की संकल्पना आई है, लेकिन इस बारे में कोई आदेश नहीं मिला है। सेंट्रलाइज्ड किचन शुरू करने की मांग को लेकर मामला कोर्ट में चल रहा है।
चपरासी बनाता है भाेजन, शिक्षक परोसते हैं
वर्तमान में मिड-डे मिल स्कूल में ही बनाया जाता है। सरकार ने इसके लिए अलग से स्टाफ नहीं दिया है। स्कूल का चपरासी भोजन बनाता है आैर विशेषकर महिला शिक्षक भोजन परोसने की व्यवस्था पर नजर रखती हैं। मिड-डे मिल के रूप में खिचड़ी व मसाला चावल दिया जाता है। कितने बच्चों को भेाजन मिला, इसका हिसाब शिक्षकों को रखना पड़ता है। यह सब पढ़ाई के दौरान करना पड़ता है, जिससे बच्चों की शिक्षा प्रभावित होती है।
क्यों आई सेंट्रलाइज्ड किचन की योजना
वर्तमान में सरकार की तरफ से भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) अनुदानित स्कूलों में चावल भेजते हैं। ईंधन, परिवहन, लेबर खर्च के तौर पर हर विद्यार्थी पर 6 रुपए स्कूल के बैंक खाते में डाला जाता है। यह खाता स्कूल के मुख्याध्यापक के नाम से होता है। भोजन स्कूल में बनने से उसे हाथ लगते हैं आैर स्वच्छता के मानकों पर अमल नहीं होता। स्कूली बच्चों के स्वास्थ्य पर असर न हो इसलिए सेंट्रलाइज्ड किचन की संकल्पना सामने लाई गई। सेंट्रलाइज्ड किचन में सारा भोजन मशीन में बनता है। भोजन ऑटोमेटिक पैक हो जाता है। ( गौतम गेडाम, अधीक्षक, शालेय पोषण आहार नागपुर)
Created On :   24 March 2018 5:39 PM IST