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मृत्यु तक आजीवन कारावास की सजा के प्रावधान को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

डिजिटल डेस्क,नागपुर। 12 वर्ष या इससे कम उम्र की बालिका के साथ दुष्कर्म करने पर भादवि धारा 376 डीबी के तहत मिलने वाली "प्राकृतिक मृत्यु होने तक आजीवन कारावास" के प्रावधान की संवैधानिक मान्यता को देश की सर्वोच्च अदालत में चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ता निखिल शिवाजी गोलाइत का पक्ष सुनकर न्यायमूर्ति डी. वाय. चंद्रचूड और न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी करके जवाब मांगा है।
बालिका से दुष्कर्म का आरोप
दरअसल याचिकाकर्ता को बुलढाणा सत्र न्यायालय ने 9 वर्षीय बालिका के दुष्कर्म का दोषी करार देकर फांसी की सजा दी थी। तब बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने फांसी की सजा की जगह याचिकाकर्ता को भादवि धारा 376 डीबी के तहत प्राकृतिक मृत्यु होने तक आजीवन कारावास की सजा दी थी, जिसे याचिकाकर्ता ने एड. गौरव अग्रवाल और एड. राजेंद्र डागा के जरिए सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी है।
मौलिक अधिकार का उल्लंघन
याचिकाकर्ता के अनुसार यह प्रावधान सरासर संविधान में धारा 14 और 21 के तहत मिले बराबरी और जीवन केे मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है, क्योंकि प्राकृतिक मृत्यु होने तक कारावास का मतलब कम से कम 40 से 50 वर्ष की जेल की सजा है, जिससे व्यक्ति में आगे होने वाले किसी भी सुधार की गंुजाइश ही खत्म हो जाती है। यहां तक िक आजीवन कारावास में व्यक्ति को 20 से 30 वर्ष तक ही जेल में बिताने पड़ते हैं। दरअसल निर्भया गैंगरेप के बाद ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए भारत सरकार दंड विधान में संशोधन करके धारा 376 डीबी लेकर आई थी।
Created On :   14 May 2022 6:39 PM IST