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गांधीजी के विचारों के लिए उम्र का बंधन नहीं , यहां है चरखा लैब और 4000 बुक्स का संग्रह

डिजिटल डेस्क, नागपुर। गांधी जी की ख्वाहिश थी कि हर घर से चरखे की संगीत सुनाई दे। उनका यही चरखा, पिछले दिनों खूब सुर्खियों में रहा। गांधीजी के लिए चरखा कभी दिखावे की चीज नहीं रहा। इसमें उनकी रूहानी ताकत बसती थी। इसलिए जब भी चरखे की बात करते हैं, तो वह सिर्फ सूत, कताई या खादी तक नहीं सिमटा है, बल्कि अब यह चरखा लैब बनकर पढ़ाई में काम आ रहा है। नागपुर विद्यापीठ के गांधी विचारधारा विभाग में थ्योरी के साथ-साथ चरखा लैब भी है, जहां गांधीजी द्वारा चलाए गए चरखों को रखा गया है। विभाग में 18 से 20 तरह के चरखे हैं, जो पढ़ाई के दौरान विद्यार्थयों के लिए प्रासंगिक हैं।
गांधीजी की प्रासंगिकता पर भले ही सवाल उठाए जाएं, सवाल उठाने वालों की विचारधारा कुछ भी हो, लेकिन इस हकीकत से इनकार नहीं किया जा सकता कि 21वीं सदी में भी गांधीवाद वह करिश्माई दर्शन है, विचारधारा है जिसके जरिए आज भी विदेशों में शांति, सदभाव व एकात्मकता को ढ़ूंढ़ा जाता है। नागपुर में भी गांधी विचारधारा को पढ़नेवाले विद्यार्थियों में ज्यादातर लड़कों का समावेश है। यह कहना है गांधीयन थॉट डिपार्टमेंट हेड का। गांधी विचारधारा विभाग में एम, पीएचडी की पढ़ाई की जाती है।
वर्किंग लोग ही लेते हैं प्रवेश
जो लोग गांधी विचारधारा से प्रेरित होते हैं वे ही यहां प्रवेश लेते हैं। इनमें ज्यादातर कामकाजी लोगों का समावेश होता है। विभाग की खासियत है कि इसकी कुछ क्लासेस शाम में भी शुरू होती हैं, इसीलिए कामकाजी लोग विभाग में आकर गांधी जी की विचारधारा से रूबरू होते हैं।
उम्र का बंधन नहीं गांधी विचारधारा विभाग पढ़ाई करने के लिए उम्र का बंधन नहीं है। यहां 21 से लेकर 70 वर्ष तक के लोग पढ़ाई कर रहे हैं। गांधीजी की विचारधारा से प्रभावित होना स्वाभाविक बात है। इस विचारधारा को पूरी तरह जानने के लिए गांधी विचारधारा में हर उम्र के लोग शामिल हो रहे हैं।
मार्गदर्शन के लिए 4000 किताबें
चरखा लैब से विद्यार्थियों को पुराने जमाने में उपयोग किए जाने वाले चरखों के बारे में पूरी जानकारी मिल जाती है, यहां पर कई चरखों को रखा गया है। वहीं गांधी विचारधारा से जुड़ी 4000 किताबें उनमें शामिल हैं।
एडमिशन में कमी नहीं
फिलॉसफिकल फाउंडेशन व गांधीयन थॉट, गांधीयन इकोनॉमिक थॉट, पॉलिटिकल थॉट महात्मा गांधी, सोशल थॉट, गांधी व उनके कंटेमप्रेरीज, गांधीयन एप्रोच टू रूरल डेवलपमेंट, सत्याग्रह, रिसर्च मेथोडोलॉजी, रिसर्च आदि करवाए जाते हैं। यह आम कोर्स की तरह ही हैं, परंतु गांधीजी से जुड़े होने के कारण इसका महत्व ज्यादा है। एडमिशन हर वर्ष की तरह ही है, कोई कमी नहीं हुई है।
पी.वी. वाटकर, विभागाध्यक्ष
Created On :   20 Oct 2018 6:11 PM IST