सोशल मीडिया पर जजों के खिलाफ टिप्पणी पड़ी भारी, मिली 3 महीने की जेल

Comment on Judges in social media, accused Convicted jail for 3 months
सोशल मीडिया पर जजों के खिलाफ टिप्पणी पड़ी भारी, मिली 3 महीने की जेल
सोशल मीडिया पर जजों के खिलाफ टिप्पणी पड़ी भारी, मिली 3 महीने की जेल

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने सोशल मीडिया पर न्यायाधीशों व न्यायालय पर आपत्तिजनक पोस्ट के मामले में कडा रुख अपनाया है। हाईकोर्ट ने सोशल मीडिया पर ऐसा कृत्य करने वालों को आगाह करते हुए कहा है कि यदि वे अपनी हरकत से बाज नहीं आएंगे तो एक दिन ऐसा समय आएगा जब कोई उनकी व उनके संपत्ति की सुरक्षा के लिए लिए आगे नहीं आएगा। इस दौरान अदालत ने सोशल मीडिया पर न्यायधीशों के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी करने वाले पूर्व पत्रकार केतन तिरोडकर को 3 माह की सजा और 2 हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई है। इस दौरान जस्टिस अभय ओक की अध्यक्षता में बनी पूर्ण पीठ ने कहा कि अक्सर यहां देखा गया है जब किसी की स्वतंत्रता  व जीवन का अधिकार प्रभावित होता है तो उसे पुलिस व न्यायालय की याद आती है। यदि लगातार न्यायालय को आम आरोपों से मलीन किया जाएगा तो कानून का राज बिल्कुल नहीं बचेगा और  यह स्थिति बेहद दुखद होगी।  

सोशल मीडिया पर लगाम क्यों नहीं लगाती सरकार
पूर्ण पीठ ने कहा कि यदि सकार सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट व टिप्पणी करनेवालों पर लगाम लगाने के लिए कुछ नहीं कर रही है तो इसका मतलब यह नहीं है कि न्यायालय भी इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं करेगी। आजकल लोग अभिव्यक्ति व बोलने की स्वतंत्रता की आड़ में न्यायालय की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाले आरोप लगा रहे हैं। जिसे उचित नहीं माना जा सकता है। संविधान ने मौलिक अधिकार के साथ-साथ नागरिकों के दायित्यों का भी उल्लेख किया है। जिसका पालन भी जरुरी है। न्यायपालिका की शक्ति जनभावना व जन विश्वास है जिसे किसी भी कीमत पर नष्ट नहीं होने दिया जाएगा। 

गुरुवार को जस्टिस अभय ओक व जस्टिस एससी धर्माधिकारी तथा जस्टिस आएम सावंत की पूर्णपीठ ने यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। दोषी पाए गए तिरोडकर ने फेसबुक पर हाईकोर्ट के मौजूदा व पूर्व न्यायाधीशों पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। तिरोडकर ने सोशल मीडिया पर लिखा था कि रेस्टोरेंट में एक मेन्यूकार्ड होता है, वैसे ही न्यायाधीशों का भी रेट लिस्ट होता है। जो जमानत के मामलों में लागू होता है। कई न्यायाधीशों से आसानी से साठगांठ की जा सकती है। इसके अलावा पोस्ट में महिला न्यायाधीशों पर भी काफी आपत्तिजनक टिप्पणी की गई थी। हाईकोर्ट ने इस मामला का स्वत: संज्ञान लिया था और तिरोडकर के खिलाफ न्यायालय की आपराधिक अवमानना के लिए नोटिस जारी किया था। 

सुनवाई के दौरान तिरोडकर ने पूर्णपीठ के सामने माफी मांगते हुए कहा कि जब उसने फेसबुक पर पोस्ट किए थे तो उसकी मनोदशा ठीक नहीं थी। इसलिए न्यायाधीश उसके प्रति सहानुभूति व उदारता दिखाए और उसे माफ कर दे। किंतु खंडपीठ ने कहा कि हमे तिरोडकर का माफीनामा प्रमाणिक नजर नहीं आ रहा है। अदालत ने तिरोडकर के आग्रह पर अपने आदेश पर 6 सप्ताह तक के लिए रोक लगाई है, जिससे वह सुप्रीम में अपील कर सके। 
 

Created On :   11 Oct 2018 9:15 PM IST

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