दम-खम के साथ चुनाव में उतरने की तैयारी में, आरक्षित सीटों पर फोकस

Congress in preparation for maharashtra assembly elections
दम-खम के साथ चुनाव में उतरने की तैयारी में, आरक्षित सीटों पर फोकस
दम-खम के साथ चुनाव में उतरने की तैयारी में, आरक्षित सीटों पर फोकस

डिजिटल डेस्क, नागपुर। आगामी चुनाव में कांग्रेस पूरे दम-खम के साथ उतरने की तैयारी में है, इसके लिए आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों पर खासतौर पर फोकस किया जा रहा है। राज्य में विधानसभा चुनाव की तैयारी में कांग्रेस जुटी हुई है।  अनुसूचित जनजाति यानी आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों पर भी पराजय को कांग्रेस बड़ी हानि मानती है। आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में कांग्रेस का जनाधार काफी रहा है। लिहाजा खोया जनाधार वापस पाने के लिए संगठन कार्य की विशेष जिम्मेदारी संगठन पदाधिकारियों को दी जाएगी। कांग्रेस ने प्रदेश स्तर पर अनुसूचित जाति मोर्चा की उपसमिति बनाकर जिला स्तर पर एसटी आरक्षित सीटों की सामाजिक व राजनीतिक स्थिति की समीक्षा आरंभ कर दी है। अनुसूचित जनजाति यानी एसटी के लिए आरक्षित सीटों की भी समीक्षा की जाएगी। विशेषकर विदर्भ में अधिक जोर लगाया जाएगा। 

आरक्षित सीटों पर रहा है प्रभाव
गौरतलब है कि राज्य में लंबे समय तक कांग्रेस सत्ता में रही है। इनमें आरक्षित सीटों पर वह 90 प्रतिशत से अधिक सफल रही है। राज्य में विधानसभा के 288 में से 29 सीटें अनुसूचित जाति व 25 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। विदर्भ के गड़चिरोली, चंद्रपुर, गोंदिया, यवतमाल, अमरावती जिलों की आरक्षित सीटों पर कांग्रेस का प्रभाव रहा है। लेकिन इन सीटों पर भाजपा का प्रभाव बढ़ता गया। 1995 में भाजपा सेना की राज्य में सत्ता थी। तब भाजपा के 22 व सेना के 11 विधानसभा सदस्य विदर्भ से थे। 2014 में स्थिति बदल गई। भाजपा ने 62 में से 42 सीटें जीत ली। 20 सीटों पर कांग्रेस, राकांपा, सेना के अलावा निर्दलीय जीते। इससे पहले 2009 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के 19 व सेना के 8 उम्मीदवार जीते थे।

क्षेत्रवार बदलेगी रणनीति
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों पर इस बार स्थानीय स्थिति को देखते हुए चुनावी रणनीति बनेगी। गड़चिरोली जिले में पेसा कानून के तहत आदिवासियों को लाभ का मामला चर्चा में है। वहां ओबीसी आरक्षण 19 प्रतिशत से 6 प्रतिशत कर दिया गया है। वर्ग 3 व वर्ग 4 के लिए केवल आदिवासियों को भर्ती दी जा रही है। इससे ओबीसी व आदिवासियों के बीच संघर्ष का मुद्दा गर्माएगा। आरमोरी, गड़चिरोली व अहेरी में पहले भी चुनाव बहिष्कार की पेशकश हो चुकी है। यवतमाल व अमरावती जिले में आदिवासी नेताओं को एक मंच पर लाकर चुनाव रणनीति का खाका तैयार किया जाएगा। मंत्री रहे वसंत पुरके, शिवाजीराव मोघे के अलावा पूर्व विदर्भ के पुराने आदिवासी नेताओं से सुझाव लिए जाएंगे। आदिवासी संरक्षण के तहत बने कानून का पालन नहीं होना भी बड़ी समस्या है। आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र की वन संपत्ति पर पहला अधिकार आदिवासी का माना गया है। गांव सभा को विशेष अधिकार दिए गए हैं। लेकिन विकास योजनाओं के नाम पर भाजपा सरकार विविध निर्णय लाद रही है। आदिवासियों को रोजगार की बातों पर अमल नहीं हो पाता है। इन सभी मामलों पर क्षेत्र के प्रतिष्ठितजनों, विशेषज्ञों से सुझाव लेकर विधानसभा स्तर पर सरकार विरोधी जनजागरण अभियान चलाया जाएगा।

Created On :   14 March 2018 1:27 PM IST

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