कोरोना ने पढ़ने की आदत को बुरी तरह संक्रमित किया- एन. रघुरामन

Corona badly infected the habit of reading - N. raghuraman
कोरोना ने पढ़ने की आदत को बुरी तरह संक्रमित किया- एन. रघुरामन
कोरोना ने पढ़ने की आदत को बुरी तरह संक्रमित किया- एन. रघुरामन

डिजिटल डेस्क, नागपुर । कोरोना महामारी ने पढ़ने की आदत को बुरी तरह संक्रमित किया है। इस पर चिंता जताते हुए जाने-माने मैनेजमेंट गुरु एन. रघुरामन ने कहा कि युवाओं की पसंद को समझकर उन्हें पढ़ने के प्रति आकर्षित करना होगा। उन्होंने कहा कि युवा पीढ़ी में पढ़ने की आदत कम होती जा रही है। इसके लिए युवा पीढ़ी की भाषा को समझना होगा। युवा क्या पढ़ना पसंद करते हैं, इस बारे में सोचना होगा। युवा पीढ़ी में पढ़ने की ललक जगानी होगी।   दैनिक भास्कर कार्यालय में सलाहकार समिति के सदस्यों के साथ अनौपचारिक चर्चा का आयोजन किया गया था। इस अ‌वसर पर वे बोल रहे थे। इस दौरान उन्होंने ‘बच्चों में पढ़ने की आदत’ विषय पर चर्चा की। 

कोई भाषा सीखना मुश्किल नहीं है 
मैनेजमेंट गुरु एन. रघुरामन ने समाचार पत्र की तुलना थाली से करते हुए कहा, कि जैसे थाली के सभी व्यंजनों का स्वाद लेते हैं, वैसे अखबार का भी आनंद लेना चाहिए। थाली में बहुत सारे पदार्थ परोसे जाते हैं। मीठा पदार्थ उसे खूबसूरत बनाता है। हालांकि आज के समय में समाचार पत्र संबंधित अनेक एप आ गए हैं, लेकिन समाचार पत्र पढ़ने का मजा उसे सामने रखकर ही है। चर्चा को आगे बढ़ाते हुए दैनिक भास्कर की सलाहकार समिति के सदस्य एवं सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति वी. एस. सिरपुरकर ने कहा कि कोई भाषा सीखना मुश्किल नहीं है। अपने अनुभव साझा करते हुए उन्होंने बताया कि उनका मद्रास हाईकोर्ट में तबादला हुआ था। स्टेशन पर उतरते ही 30 दिन में तमिल सीखने की किताब खरीदी।

 अगले 10-15 दिन बाद में तमिल सीखी। लिफ्ट में जाते समय एक न्यायाधीश से मुलाकात की। उनसे तमिल में बात की तो वे आश्चर्यचकित रह गए, वे भी प्रेरित हुए। अगले कुछ दिन बाद उनसे मुलाकात हुई। उन्होंने जेब से चिट्ठी निकाली और हिंदी में लिखे कुछ शब्द देखकर बात करने लगे। न्या. सिरपुरकर ने कहा कि उनके परिवार में तीन पीढ़ियां हैं। तीनों अलग-अलग समाचार पत्र पढ़ते हैं, लेकिन महत्वपूर्ण यह कि सभी पढ़ते हैं। उन्होंने कहा कि टीवी देखकर बच्चे पढ़ना भूल गए हैं, इसलिए बच्चों में पढ़ने की आदत डालनी होगी। इसके लिए स्कूल में पाठ होना चाहिए। असहयोग आंदोलन (भाषा संबंधी) संस्था की वंदना सोलंकी ने कहा कि बच्चों में पढ़ने की आदत डालने के लिए उन्हें पुस्तक आदि दें, इससे उनमें पढ़ने की ललक जागेगी।

भारतीय भाषा पर जोर दें
साउथ इंडियन एजुकेशन सोसायटी के अध्यक्ष टी. के. व्यंकटेश ने विद्यार्थियों के भविष्य के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि ऑनलाइन पढ़ाई का कोई फायदा नहीं है। अब पढ़ना भी कम्प्यूटर के माध्यम से हो गया है। बच्चों के लिए स्कूल में समाचार पत्र रखना चाहिए, ताकि उन्हें पढ़ने की आदत हो। मंच संचालक श्वेता शेलगांवकर ने कहा कि स्थानीय लोगों के लिए भी अलग-अलग विषयों पर कॉलम शुरू किए जाने चाहिए। चार्टर्ड अकाउंटेंट कैलाश जोगानी ने बच्चों में पढ़ने की आदत पर सुझाव दिया कि हर बच्चे से स्कूल में समाचार पत्र की हेडलाइन पूछी जानी चाहिए, इससे बच्चों में पढ़ने की आदत विकसित होगी।

रातुम स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग पूर्व अध्यक्ष डॉ प्रमोद शर्मा ने बच्चों में भारतीय भाषा में पढ़ने की बात पर जोर दिया। उन्हाेंने कहा कि जब तक भारतीय भाषाओं को नहीं पढ़ा जाएगा, तब तक चिंतामुक्त नहीं हो सकते। आधार सामाजिक संस्था के अध्यक्ष डॉ. अविनाश रोड़े ने सुझाव दिया कि बच्चों में पढ़ने की आदत अभिभावकों से ही विकसित होती है। चर्चा में माध्यम समन्वय अधिकारी अनिल गडेकर, साहित्यकार डॉ. सागर खादीवाला, मैत्री परिवार संस्था के चंदू पेंडके, नागपुर चेंबर आॅफ कॉमर्स के पूर्व अध्यक्ष भागीरथ मुरारका  ने भी अपने विचार रखे। इस अवसर पर दैनिक भास्कर के समूह संपादक प्रकाश दुबे सहित संपादकीय विभाग के  सहयोगी उपस्थित थे। संचालन समन्वय संपादक आनंद निर्बाण ने व आभार संपादक मणिकांत सोनी ने माना।

सदस्यों के अहम सुझाव 
-स्कूलों में समाचार पत्र रखने चाहिए, जिससे पढ़ने की आदत बढ़े। 
-खबरें ऐसी हो, जिससे पाठक की सोच बदलें, सोचने का तरीका बदलना चाहिए।
-विद्यार्थियों के लिए विशेष अभियान चलाएं, जिसमें विद्यार्थियों को अखबार पढ़ना सिखाएं।
-भाषा का ज्ञान बढ़ाने के लिए अलग-अलग शब्दों का कॉलम होना चाहिए। इसमें विलुप्त हो रहे शब्दों को भी रखा जाना चाहिए।
-स्थानीय लोगों की रुचि के अनुसार अलग-अलग विषयों पर कॉलम शुरू करें।
-आम जनता सक्सेस स्टोरी पढ़ना चाहती हैं, इसलिए हर रोज किसी भी क्षेत्र से संबंधित सक्सेस स्टोरी होनी चाहिए।
 

Created On :   28 Jun 2021 9:51 AM GMT

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