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तबादले के लिए राजनीतिक रसूख का इस्तेमाल करने वाले अधिकारी को राहत देने से कोर्ट का इंकार

डिजिटल डेस्क, मुंबई। अपने तबादले के लिए राजनीतिक रसूख का इस्तेमाल करने वाले सरकारी अधिकारी को बॉम्बे हाईकोर्ट ने राहत देने से इंकार कर दिया है। मामला एक सरकारी अधिकारी अनिल पारखे से जुड़ा है। जिन्होंने ने तबादले के लिए राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल किया था। हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि पारखे ने अपना नाशिक से पुणे तबादला कराने के लिए महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव राजाराम देशमुख से सिफारिश करवाई।
देशमुख ने पारखे के तबादले के लिए राजस्व मंत्री बाला साहब थोरात को पत्र लिखा। यही नहीं इस बारे में श्री थोरात के साथ ही मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से भी अपील की गई। इससे पहले पारखे ने मंत्रालय में भी अपने तबादले के लिए निवेदन दिया था। पारखे के तबादले से जुड़े प्रस्ताव को मंजूरी मिल गई। लेकिन पारखे का तबादला पुणे में जिस अधिकारी गोपीनाथ कोलेकरके स्थान पर किया गया था, उसने संयुक्त जिला रजिस्ट्रार केपद पर तीन साल का तय कार्यालय पूरा नहीं किया था। फिर भी कोलेकर का तय समय से पहले सहायक महानिरीक्षक (रजिस्ट्रेशन एंड स्टैम्प) के पद पर तबादला कर दिया गया।
तबादले के इस आदेश को कोलेकर ने महाराष्ट्र प्रशासकीय न्यायाधिकरण(मैट) में चुनौती दी। मैट में दायर आवेदन में कोलेकर ने दावा किया था कि ट्रांसफर अधिनियम के प्रावधानों के तहत सिर्फ अपवादजनक स्थिति को छोड़कर तीन साल से पहले किसी अधिकारी का तबादला दूसरी जगह नहीं किया जा सकता है। कोलेकर के मुताबिक उसने संयुक्त जिला रजिस्ट्रार के पद पर तीन साल का कार्यालय पूरा नहीं किया है। इस लिहाज उसका तबादला पूरी तरह से अवैध है। कोलेकर के कहा कि पारखे के लिए जगह बनाने के लिए उसका तबादला किया गया है। ताकि पारखे को उसके स्थान पर नियुक्त किया जा सके। इस लिए यह तबादला आदेश पूरी तरह से नियमों के विपरीत है। मैट ने मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद 28 नवंबर 2021 को कोलेकर के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कोलेकर को उसके पद पर भेजने को निर्देश दिया।
मैट के इस आदेश को पारखे ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी। मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति गिरीष कुलकर्णी की खंडपीठ के सामने सुनवाई हुई। पारखे कि ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता एस नारगोलकर ने दावा किया कि कोलेकर के तबादले का आदेश पूरी तरह से न्यायसंगत है। क्योंकि उसके खिलाफ कई शिकायतें मिली थी। इसके अलावा कोलेकर का तबादला पुणे में ही एक पद से दूसरे पद में किया गया है। वहीं कोलेकर के वकील सुजीत जोशी ने इस मामले में मैट के आदेश को सही बताया। अधिवक्ता नारगोलकर की इस दलील से असहमत खंडपीठ ने मामले से जुड़ी सरकारी फाइल को देखने के बाद पाया कि याचिकाकर्ता (पारखे) ने पुणे में तबादले के लिए राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल किया है। इसके लिए पारखे ने महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव देशमुख सिफारिश करवाई थी।देशमुख ने याचिकाकर्ता के तबादले के लिए राजस्व मंत्री थोरात को पत्र लिखा। इसके बाद मुख्यमंत्री व राजस्व मंत्री ने पारखे के तबादले को मंजूरी दी थी।
खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि इस मामले में तबादले के मामले को देखने के लिए गठित सिविल सर्विस बोर्ड ने भी नियमों की अनदेखी की है। क्योंकि जिन शिकायतों के मद्देनजर कोलेकर का तबादला किया गया उसमें से दो शिकायत अज्ञात शख्स ने भेजी थी। इसके अलावा इन शिकायतों की प्रामाणिकता को भी नहीं परखा गया है। एक शिकायत कोलेकर के कार्यकाल से जुडी ही नहीं थी। इस मामले में शिकायतों को लेकर सरकार के 11 फरवरी 2015 के शासनादेश की अनदेखी की गई है। इस तरह से खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में मैट का निष्कर्ष सही है। कोलेकर के तबादले से जुड़ा आदेश पूरी तरह से अवैध है। यह बात कहते हुए खंडपीठ ने पारखे की याचिका को खारिज कर दिया और मैट के आदेश को कायम रखा।
Created On :   20 March 2021 5:49 PM IST