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गडचिरोली में जान गंवाने वाले एसआरपीएफ जवान के परिजनों को कोर्ट से मिली राहत

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने नक्सल प्रभावित इलाके गढ़चिरोली में ड्यूटी के दौरान जान गवाने वाले स्टेट रिज़र्व पुलिस फोर्स (एसआरपीएफ) के एक हेड कॉन्स्टेबल के परिजनों को राहत प्रदान की है। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह हेड कॉन्स्टेबल गणेश चव्हाण के उस बकाया वेतन का भुगतान करे, जो साल 2019 से राज्य के गृह विभाग के एक आदेश के बाद बंद कर दिया गया था। गृह विभाग के आदेश के खिलाफ चव्हाण की पत्नी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में दावा किया गया था कि चव्हाण उनके घर में अकेले कमाने वाले थे। इसलिए उनके न रहने से उनका वेतन ही हमारे लिए सहारा है।
न्यायमूर्ति के के तातेड़ व न्यायमूर्ति एनआर बोरकर की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका के मुताबिक चव्हाण की 15 जुलाई 2009 को ड्यूटी के दौरान गढ़चिरोली इलाके में उस समय मौत हो गई थीजब वह कीचड़ में फंसी बस को निकालने के बाद अपने वाहन से कैंप लौट रहे थे और उनका वाहन दुर्घनग्रस्त हो गया था। अचानक ट्रक के फिसलने के कारण चव्हाण व तीन अन्य पुलिसकर्मी नदी में गिर गए और पानी के साथ बह गए।याचिका के मुताबिक चव्हाण की मौत के बाद नवंबर 2008 के राज्य सरकार के शासनादेश के तहत सरकार की ओर से चव्हाण के परिजनों को वह वेतन जारी रखा गया जो चव्हाण की मौत के समय था। वेतन मिलना साल 2019 तक जारी रहा। इस बीच राज्य के गृहविभाग ने राज्य के पुलिस महानिदेशक कार्यालय की ओर से भेजे गए उस प्रस्ताव को रद्द कर दिया जिसके तहत शासनादेश के अंतर्गत निर्धारित लाभ चव्हाण के परिवार वालों को जारी रखने का आग्रह किया गया था।
याचिका के अनुसार गृह विभाग ने मैजिस्ट्रेट के आदेश के आधार पर डीजीपी कार्यालय के प्रस्ताव को रद्द किया है। क्योंकि मैजिस्ट्रेट ने अपने आदेश में कहा है कि चव्हाण व तीन अन्य जवानों की मौत ट्रक ड्राइवर की लापरवाही से हुई है। जिसे कोर्ट ने दोषी ठहराया है और कारावास की सजा सुनाई है। इसलिए मुआवजे के तौर पर चव्हाण के परिजनों को दिए जाने वाले वेतन को रोक दिया गया है। खंडपीठ ने याचिका में उल्लेखित तथ्यों पर गौर करने के बाद कहा कि मुआवजे के मामले में किसी का बरी होना अथवा दोषी ठहराया जाना मायने नहीं रखता है। इस मामले में राज्य के गृह विभाग को सिर्फ यह देखना चाहिए था कि नवंबर 2008 के शासनादेश के तहत चव्हाण के परिजन राहत के लिए पात्र हैं कि नहीं। इस शासनादेश के तहत यह देखना जरूरी था कि चव्हाण की मौत नक्सल व आतंकियों के खिलाफ जारी ऑपरेशन में हुई है अथवा बचाव कार्य में। इस बात को लेकर कोई विवाद नहीं है कि चव्हाण व अन्य पुलिस कर्मियों की मौत उस समय हुई जब वे बचावकार्य को पूरा कर अपने कैम्प की ओर लौट रहे थे। इस लिहाज से गृह विभाग की ओर से जारी किया गया आदेश सही नहीं दिख रहा है। इसलिए इसे खारिज किया जाता है। इस तरह से हाईकोर्ट ने चव्हाण के परिवार वालो को राहत प्रदान की है।
Created On :   7 Jun 2021 6:35 PM IST