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कोर्ट ने कहा-सत्र न्यायालय में अग्रिम जमानत अर्जी खारिज होने पर समय दिया जाना चाहिए

डिजिटल डेस्क, नागपुर। सत्र न्यायालय में विचाराधीन अग्रिम जमानत याचिका खारिज होते ही पुलिस आरोपी को तुरंत गिरफ्तार कर सकती है या फिर उसे हाईकोर्ट में अपील करने के लिए वक्त दिया जाना चाहिए? आपराधिक मामलों में अकसर यह कानूनी पेंच उलझ जाता है। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने अपने हालिया फैसले में इसका उत्तर दिया है। न्या.मनीष िपतले की खंडपीठ ने साफ किया है कि सत्र न्यायालय से अग्रिम जमानत खारिज होने के दौरान यदि आरोपी को सुनवाई में उपस्थित रहने के आदेश दिए गए हों और कोर्ट उसकी अग्रिम जमानत अर्जी खारिज कर दे, तब भी पुलिस उसे तुरंत गिरफ्तार नहीं कर सकती। हाईकोर्ट में अपील करने के लिए उसे 72 घंटों का वक्त दिया जाना चाहिए।
क्या है मामला : रामदास पेठ स्थित मेडिट्रिना अस्पताल के संचालक डॉ. समीर पालतेवार ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर यह मुद्दा उपस्थित किया था। अस्पताल में आर्थिक अनियमितता करने के आरोपी पालतेवार ने 22 फरवरी 2021 सत्र न्यायालय में अग्रिम जमानत अर्जी दायर की थी। कोर्ट ने उन्हें अंतरिम राहत देते हुए मामले की सुनवाई शुरू की। इसके बाद सरकार और फरियादी की प्रार्थना पर हाईकोर्ट ने सीआरपीसी धारा 438(4) के तहत आदेश जारी करते हुए पालतेवार को सुनवाई में हाजिर रहने के आदेश दिए थे। पालतेवार को डर था कि यदि वे सुनवाई में उपस्थित रहे और सत्र न्यायालय ने अग्रिम जमानत अर्जी खारिज कर दी तो पुलिस उन्हें तुरंत गिरफ्तार कर लेगी। ऐसे में पालतेवार ने निचली अदालत के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने सभी पक्षों को सुनकर निचली अदालत का आदेश खारिज कर दिया। मामले में सरकार की ओर से सरकारी वकील एस.ए.आर्शिर्गेडे और फरियादी की ओर से एड.श्याम देवानी और एड.साहिल देवानी ने पक्ष रखा।
तुरंत गिरफ्तारी क्यों नहीं होनी चाहिए : हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अविनाश गुप्ता और एड.आकाश गुप्ता ने दलील दी कि सत्र न्यायालय से अग्रिम जमानत अर्जी खारिज होने के बाद भी आरोपी को 72 घंटे तक गिरफ्तारी से सुरक्षा मिलनी चाहिए, ताकि उसे हाईकोर्ट में अपील करने का वक्त मिले। यदि ऐसा नहीं हुआ तो पुलिस उसे तुरंत गिरफ्तार कर लेगी और आरोपी हाईकोर्ट में अपील करने के अपने अधिकार से वंचित रह जाएगा। एड.गुप्ता ने लॉ कमीशन की 203वीं रिपोर्ट का हवाला दिया कि इस रिपोर्ट में लॉ कमीशन ने स्पष्ट किया है कि भारत में गिरफ्तारी से बचने के लिए हर व्यक्ति को सर्वप्रथम सत्र न्यायालय, और वहां से अर्जी खारिज होने के बाद हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत याचिका दायर करने का अधिकार है। ऐसे में यह दो स्टेप की प्रक्रिया है। यदि सत्र न्यायालय से अर्जी खारिज होते ही व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया जाए तो वह हाईकोर्ट में अपील नहीं कर पाएगा, जिससे कानून का पूरा उद्देश्य ही बाधित हो जाएगा।
क्या है हाईकोर्ट का फैसला : हाईकोर्ट ने आदेश जारी किया कि सत्र न्यायालय को धारा 438(4) का उपयोग करके तब ही आदेश जारी करना चाहिए, जब आरोपी के फरार होने की संभावना दिख रही हो। सरकारी पक्ष को बेवजह धारा 438(4) के तहत अर्जी दायर करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। जब भी सरकारी वकील इस प्रकार की अर्जी दायर करें, उन्हें ठोस कारण बताना होगा। जब भी अदालत धारा 438(4) का उपयोग करके किसी आरोपी को कोर्ट में बुलाएं और अग्रिम जमानत अर्जी खारिज करें, तब आरोपी को हाईकोर्ट में अपील करने के लिए 72 कामकाजी घंटों का वक्त दें।
इसलिए अन्य राज्यों ने नहीं अपनाया संशोधन : प्रदेश में वर्ष 1993 से सीआरपीसी धारा 438(4) लागू हुआ। लॉ कमीशन की रिपोर्ट का हवाला देते हुए नागपुर खंडपीठ ने कहा कि लॉ कमीशन की राय थी कि इस संशोधन से "अग्रिम जमानत' के अधिकार बाधित होते हैं। कमीशन की राय थी कि ऐसे प्रावधान हटा दिए जाने चाहिए, लेकिन महाराष्ट्र में इसे नहीं हटाया गया। शायद लॉ कमीशन की राय के कारण ही अन्य राज्यों ने धारा 438(4) जैसे प्रावधान अपने यहां लागू नहीं किए।
Created On :   23 Aug 2021 10:02 AM IST