सीधे प्रधानमंत्री-राष्ट्रपति को पत्र लिखने की प्रथा हाईकोर्ट से नामंजूर

Direct writing letter to PM and president is not permitted
सीधे प्रधानमंत्री-राष्ट्रपति को पत्र लिखने की प्रथा हाईकोर्ट से नामंजूर
सीधे प्रधानमंत्री-राष्ट्रपति को पत्र लिखने की प्रथा हाईकोर्ट से नामंजूर

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने कानूनी प्रक्रिया का पालन करने की बजाय लोगों द्वारा किसी पर बड़े-बड़े आरोप लगाकर सीधे राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री अथवा मुख्यमंत्री को पत्र लिखने के चलन को हत्तोसाहित करते हुए उसे नमंजूर किया है।जस्टिस एसएस शिंदे व जस्टिस मृदुला भाटकर की बेंच ने कहा कि कानूनी प्रक्रियाओं की अनदेखी करके सीधे बड़े संवैधानिक पदों पर असीन लोगों को पत्र लिखने की धाराणा दर्शाती है कि यह पत्र लोकप्रियता व प्रचार पाने के उद्देश्य से लिखे जाते है। बेंच ने यह टिप्पणी भीमा-कोरेगांव हिंसा को लेकर दायर कई याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान की।

खुद को भीमा-कोरेगांव हिंसा का पीड़ित बताते हुए याचिकाकर्ता सतीश गायकवाड ने भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी(एनआईए) से कराने की मांग की है। जबकि दूसरी याचिका में याचिकाकर्ता अब्दुल चौधरी ने इस प्रकरण की जांच सीआईडी से कराने की मांग की है। सुनवाई के दौरान बेंच ने चौधरी की याचिका पर गौर करने के बाद पाया कि याचिका दायर करने से पहले याचिकाकर्ता ने प्रधानमंत्री,राष्ट्रपति व महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को इस मामले को लेकर पत्र लिखा है। जिसमें कई लोगों पर बड़े-बड़े आरोप लगाए गए है।

इस पर बेंच ने कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि लोग कानूनी प्रक्रिया का पालन करने की बजाय सीधे प्रधानमंत्री,राष्ट्रपति व मुख्यमंत्री को पत्र लिखते है। कानून के मुताबिक यदि किसी को शिकायत है तो वह अपनी शिकायत पुलिस स्टेशन अथवा मैजिस्ट्रेट के सामने करे। इस मामले में ऐसा लगता है, जैसे याचिकाकर्ता को सिर्फ प्रचार व लोकप्रियता चाहिए। यह कहते हुए बेंच ने मामले की सुनवाई 17 सितंबर तक के लिए स्थगित कर दी। पुलिस ने पिछले दिनों इस मामले में माओंवादियों व नक्सलियों से कथित संबंधों को लेकर कई सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया था। जिन्हें फिलहाल 12 सितंबर तक के लिए नजरबंद रखा गया है। यह मामला सुप्रीम कोर्ट में प्रलंबित है। 

 

Created On :   7 Sep 2018 3:00 PM GMT

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