आशीष देशमुख की राजनीति रूख की ओर उठ रहे सवाल, कांग्रेस में भी राह नहीं दिखती आसान

Discussions are going about the political stance of Ashish Deshmukh
आशीष देशमुख की राजनीति रूख की ओर उठ रहे सवाल, कांग्रेस में भी राह नहीं दिखती आसान
आशीष देशमुख की राजनीति रूख की ओर उठ रहे सवाल, कांग्रेस में भी राह नहीं दिखती आसान

डिजिटल डेस्क, नागपुर। विधायक पद से इस्तीफा देने के बाद आशीष देशमुख के राजनीतिक रूख को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। विकास मामले में भाजपा की नीति पर असंतोष जताते हुए विधायक पद से इस्तीफा देने के बाद आशीष देशमुख भाजपा को भी अलविदा कहेंगे। मंगलवार को देशमुख ने इस्तीफे का फैक्स विधानसभा अध्यक्ष हरिभाऊ बागड़े को भेजा था। उसके बाद वर्धा जाकर कांग्रेस की सभा में राहुल गांधी से मिलकर उन्हें गांधी टोपी पहनाई थी। साफ है, देशमुख भाजपा को छोड़नेवाले हैं। उन्होंने इस संबंध में घोषणा भी की है, लेकिन अहम सवाल यह कि उनकी राजनीति किस ओर करवट लेगी। वे राज्य के बजाय केंद्र की राजनीति की तैयारी तो नहीं कर रहे हैं। 

कांग्रेस में राह कितनी आसान
आशीष देशमुख ही नहीं, उनके परिवार का कांग्रेस से काफी जुड़ाव रहा है। पिता रणजीत देशमुख कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं। फिलहाल कांग्रेस में गुटबाजी चल रही है। रणजीत देशमुख के समय भी गुटबाजी कम नहीं थी, लेकिन श्री देशमुख कांग्रेस में केंद्रीय स्तर पर प्रभाव रखते थे। एक बार उन्होंने सावनेर में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की सभा भी कराई थी, लेकिन बाद में उनका असंतोष सामने आया। 2009 के रामटेक लोकसभा क्षेत्र में उन्होंने कांग्रेस से बगावत की थी।  लिहाजा श्री देशमुख कांग्रेस में रहकर भी कई कांग्रेस नेताओं के निशाने पर आ गए। आशीष के छोटे भाई डॉ.अमोल देशमुख भी कांग्रेस में हैं। डॉ.अमोल ने विदेश में शिक्षा पाई है। ब्रिटेन में प्रबंधन की मास्टर डिग्री पाने के बाद उन्होंने अंतराराष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य परियोजनाओं के तहत वियतनाम, अफगानिस्तान, कजाकिस्तान जैसे देशों में काम किया है। 2014 में कांग्रेस का टिकट नहीं मिलने पर डॉ.अमोल ने रामटेक से राकांपा उम्मीदवार के तौर पर विधानसभा का चुनाव लड़ा था। पराजित होने के बाद कांग्रेस में लौट आए। लिहाजा, उनकी कांग्रेस निष्ठा पर कांग्रेस के कार्यकर्ता ही सवाल उठाते रहे।

आशीष के साथ भी ऐसी ही स्थिति है। 2007 के दौरान राजनीति में सक्रिय होते हुए आशीष ने राहुल गांधी के प्रति निष्ठा जताई थी। तब राहुल गांधी की राजनीति पर ही सवाल उठाए जा रहे थे। राहुल के बजाय उनकी बहन प्रियंका को कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय करने की मांग होने लगी थी, लेकिन आशीष ने राहुल गांधी पर निष्ठा जताई थी। यूथ फार इंडिया अभियान चलाया था। नागपुर में ही करीब साढ़े चार लाख युवाआें के हस्ताक्षर लिए गए थे। राहुल गांधी को नागपुर से लोकसभा का उम्मीदवार बनाने की इच्छा के साथ युवाओं से हस्ताक्षर लिए गये थे। अचानक उस अभियान को छोड़ दिया गया। एक मामले में भाजपा नेता वरुण गांधी को गिरफ्तार किया गया, तब वरुण के समर्थन में रायबरेली में निकली रैली में पहुंचकर आशीष ने वरुण का हाथ थाम लिया। वरुण काे भविष्य का बड़ा नेता मानते हुए आशीष ने कहा था कि राहुल गांधी में उन्हें वह राजनीतिक संभावना नहीं दिखती है, जिसका भरोसा किया गया था। राहुल गांधी के राजनीतिक नेतृत्व पर सवाल उठाते हुए आशीष भाजपा में शामिल हुए थे। 2009 में उन्होंने सावनेर विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था। तब आशीष की राजनीतिक निष्ठा के मामले को कांग्रेस ने चुनावी मुद्दा बनाया था। 

लोकसभा की तैयारी 
माना जा रहा है कि आशीष विधानसभा के बजाय लोकसभा चुनाव की तैयारी कर रहे हैं। लोकसभा चुनाव की तैयारी के तहत ही पहले वे भाजपा के असंतुष्ट नेताओं यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा व नाना पटोले से जुड़े थे। करीबियों के बीच वे कभी नागपुर तो कभी वर्धा में भाजपा के विरोध में जनाधार की संभावना पर चर्चा करते रहते हैं। जल्द ही उनकी अगली रणनीति स्पष्ट होने की संभावना है। 

Created On :   4 Oct 2018 8:05 AM GMT

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story