डॉक्टरों ने ऑपरेशन कर पेट से निकाला 15 किलोग्राम वजनी ट्यूमर, मरीज स्वस्थ्य

Doctors remove 15 kilograms tumor from abdominal of the Patient
डॉक्टरों ने ऑपरेशन कर पेट से निकाला 15 किलोग्राम वजनी ट्यूमर, मरीज स्वस्थ्य
डॉक्टरों ने ऑपरेशन कर पेट से निकाला 15 किलोग्राम वजनी ट्यूमर, मरीज स्वस्थ्य

डिजिटल डेस्क, नागपुर। चार साल से पेट दर्द से परेशान पीड़ित एक मरीज के पेट से 15 किलोग्राम का ट्यूमर निकाला गया। साढ़े तीन घंटे लगातार ऑपरेशन के बाद यह सफलता मिली। ट्यूमर की जानकारी मरीज को करीब 6 माह पहले सोनोग्राफी और सीटी स्कैन जांच के बाद सामने आई थी। 21 फरवरी को विदर्भ इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (विम्स) में ऑपरेशन किया गया। अस्पताल के संचालक डॉ.राजेश सिंघानिया ने बताया कि विभिन्न ट्यूमर में पेट में होने वाले इस तरह के मांस के गोले (रेट्रो पेरिटोनियल लाइपोसारकोमा) 3 से 4 फीसदी ही देखने को मिलता है। भंडारा के तुमसर निवासी धनश्याम मिश्रा (67) को चार साल से पेट में सूजन थी और पिछले 6 माह पहले जांच में ट्यूमर होने की बात पता चली। धनश्याम ने कई डॉक्टरों से संपर्क किया, लेकिन ट्यूमर बढ़ा होने के कारण सभी ने मना कर दिया। 20 को अस्पताल में भर्ती हुए और साढ़े तीन घंटे जटिल सर्जरी के बाद ट्यूमर निकाल दिया गया। मरीज स्वस्थ हैं। ऑपरेशन करने वालों की टीम में डॉ.सिंघानिया के अलावा डॉ.आतिश बंसोड़, डॉ.मीनाक्षी हांडे, सुखदेव बांडेबुचे, वृशाली पेटकर, चंद्रकला बोकड़े आदि शामिल थे।

ऑपरेशन में 30-40 फीसदी ही आर्टिफिशियल अंगों का प्रत्यारोपण
इसके अलावा घुटना प्रत्यारोपण (नी रिप्लेसमेंट) को लेकर काफी सारी भ्रांतियां हैं। लेकिन समय के साथ यह ऑपरेशन भी अपडेट हो गया है। इस ऑपरेशन में जितने हिस्से की आवश्यकता होती है, उसके अनुसार 30-40 फीसदी ही आर्टिफिशियल अंगों का प्रत्यारोपण करते हैं। इससे सर्जरी में चीरा कम लगता है और 12 से 18 घंटे में मरीज वॉकर से चलने लगता है। फिजियोथेरेपी की भी बहुत ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती है। यह बात सीताबर्डी स्थित मेडसिटी नी एंड हिप क्लीनिक के डॉ.राहुल अग्रवाल ने दैनिक भास्कर कार्यालय में शनिवार को चर्चा के दौरान बताई। उन्होंने बताया कि इस पद्धति से ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर क्रूसिएट रिटेइनिंग स्पेशलिस्ट होते हैं।

परेशानी का उपाय सिर्फ प्रत्यारोपण नहीं
डॉ.राहुल ने बताया कि नी रिप्लेसमेंट पोस्टेरियर स्टेबलाइज्ड ऑपरेशन बड़ा होने के कारण में सर्जरी के लिए बड़ा चीरा (स्कार) करना पड़ता है इसमें ब्लडिंग भी ज्यादा होती है और मरीज को चलने में भी ज्यादा समय लगता है। घुटने में दर्द और परेशानी का उपाय सिर्फ प्रत्यारोपण नहीं है। घुटना प्रत्यारोपण के लिए आने वाले 20 से 30 फीसदी मरीजों का उपचार दवाओं से संभव है, जबकि अन्य मरीजों का उनकी स्थिति पर निर्भर करता है। बहुत बार ऐसा देखा जाता है कि 80 की उम्र के मरीज को प्रत्यारोपण की जरूरत नहीं है, जबकि 40 की उम्र के मरीज को है। यह समस्या 40 से 60 की उम्र में देखने को मिलती है। इसका एक बड़ा कारण उम्र का पड़ाव भी है।

Created On :   25 Feb 2018 5:29 PM IST

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