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घरेलू कामगार हो रहे धोखाधड़ी का शिकार, भटक रही महिलाएं

चंद्रशेखर पोलकोंडवार, नागपुर। घरेलू कामगारों को न्याय दिलाने के लिए 28 साल तक कड़ा संघर्ष किया गया। इसके बाद कानून बना, लेकिन न कानून काम आया और न घरेलू कामगारों के लिए बने बोर्ड से कामगारों को राहत मिली। आज भी घरेलू कामगार महिलाएं दर-दर भटक रही हैं। पूरा जीवन जिस समाज की सेवा में लगा दिया, वह समाज जीवन के अंतिम पड़ाव पर साथ देगा, यह आस भी अब धूमिल हो गई है। अगस्त 2011 में बने घरेलू कामगार कल्याण बोर्ड की 2014 में अवधि समाप्त होने के बाद सरकार ने इस बोर्ड को जिंदा रखने का कोई प्रयास नहीं किया। सरकार ने इसे बर्खास्त कर दिया। अब बोर्ड नहीं है, किंतु घरेलू कामगारों की अर्जियों का पुलिंदा ऊंचा होता जा रहा है। उन्हें अब भी यही आस है कि जीवन की सांझ होगी तब कानून का सहयोग मिलेगा और कुछ न सही पेंशन तो शुरू हो ही जाएगी।
संपर्क करते हैं दलाल
55 बसंत पार कर चुके घरेलू कामगारों को यह आस है कि कभी भी उन्हें 10 हजार रुपए उनके खाते में जमा होने का संदेशा मिल सकता है। पैसे मिलने की आस लगाए ये घरेलू कामगार धोखाधड़ी के भी शिकार हो रहे हैं। स्वयं को दलाल बताने वाले कुछ ठग इन महिलाओं से संपर्क कर उन्हें पैसा आने का झांसा देते हैं तथा 10 हजार रुपए के लिए 1 हजार रुपए कमीशन की मांग करते हैं।
राज्य में 75 लाख घरेलू कामगार
35 प्रकार के काम करने वाले कामगारों को घरेलू कामगारों की श्रेणी में रखा गया है। इस श्रेणी में होटल में काम करने वाले कामगारों का भी समावेश है। एक अनुमान के मुताबिक महाराष्ट्र में लगभग 75 लाख घरेलू कामगार हंै। उपराजधानी नागपुर में 2012-13 में घरेलू कामगार सदस्यों की संख्या 1 लाख 48 हजार तक पहुंच गई थी। 30 रुपए सदस्यता शुल्क व 60 रुपए वार्षिक शुल्क लेेकर इन कामगारों को सदस्य बनाया गया था। बोर्ड के सदस्य घरेलू कामगारों के लिए दुर्घटना बीमा ,जीवन बीमा, प्रसूति खर्च 5000 रुपए, अंतिम संस्कार खर्च 2000 रुपए, कामगारों के बच्चों को हर माह 100 रुपए छात्रवृत्ति, कंप्यूटर शिक्षा के लिए टैबलेट, कामगारों को पेंशन, पीएफ अादि लागू करने का प्रावधान किया गया था।
लंबे संघर्ष के बाद बना कानून
लगातार शोषण का शिकार हो रहे घरेलू कामगारों को न्याय दिलाने के लिए 1980 में विदर्भ मोलकरीण संगठन की स्थापना हुई। इसका मुख्य उद्देश्य ‘कामवाली बाई’ के रूप में पहचानी जाने वाली घरेलू कामगार महिलाओं के जीवन में सुधार लाकर शासन द्वारा विविध याोजनाओं से उन्हें लाभान्वित करना था। इस प्रयास को तेज करने के लिए 1995 में नागपुर में पहली घरेलू कामगार परिषद आयोजित की गई। संगठन की संस्थापक अध्यक्ष डॉ. रूपा कुलकर्णी व सचिव विलास भोंगाडे के नेतृत्व में राज्यभर के हजारों घरेलू कामगारों ने मोर्चा निकालकर राज्य सरकार का इस ओर ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया। मोर्चे का यह दौर 1998 से 2008 तक चला। इन आंदोलनकारियों की मांगों पर गौर करते हुए तत्कालीन सरकार ने 2008 में घरेलू कामगार कानून बनाया। कानून बनने के 3 साल बाद घरेलू कामगार कल्याणकारी बोर्ड बना। श्रम विभाग के प्रधान सचिव व श्रम आयुक्त को इस बोर्ड का क्रमश: अध्यक्ष व सचिव नियुक्त किया गया।
घरेलू कामगारों को बेसहारा छोड़ दिया
राज्य सरकार की नीति घरेलू कामगारों के प्रति अन्यायपूर्ण साबित हो रही है। बोर्ड को बर्खास्त न कर कार्यकाल की अवधि बढ़ानी चाहिए थी। हमारी पहले से ही मांग रही है कि मेहनत कर परिवार का पालन-पोषण करने वाले घरेलू कामगारों को सरकारी सुविधाओं के अतिरिक्त पेंशन लाभ भी मिलना चाहिए। हमने घरेलू कामगारों के लिए प्रसूति, दुर्घटना बीमा व मृत्यु पर प्रोटेक्शन की आवाज उठायी थी। इस मामले में वर्तमान राज्य सरकार गैरजिम्मेदार साबित हुई है। कुछ महिलाएं घरेलू कामगारों को पैसा आने का झांसा देकर ठगने का काम कर रही है। कुछ महिलाएं अवैध रूप से उगाही भी कर रही हैं। यह स्थिति भी दु:खद है। अब बोर्ड बर्खास्त हो गया।
( डॉ. रूपा कुलकर्णी, विदर्भ मोलकरीण संगठन)
Created On :   22 May 2018 3:53 PM IST