सेहत से खिलवाड़, बिना जांच किए शहर में हो रही पानी सप्लाई

drinking water is supplied to the public of Shahdol without testing
सेहत से खिलवाड़, बिना जांच किए शहर में हो रही पानी सप्लाई
सेहत से खिलवाड़, बिना जांच किए शहर में हो रही पानी सप्लाई

डिजिटल डेस्क, शहडोल। शहर की करीब 50 हजार आबादी को बिना जांच (टेस्टिंग) के पेयजल सप्लाई की जा रही है। यानि जो पानी शहडोलवासी  पी रहे हैं, वह  सेहत के ठीक है कि नहीं, इसकी नियमित रूप से जांच ही नहीं की जाती है। नगर पालिका के सरफा जल संयंत्र में बनी लेबोरेटरी में पानी की जांच के लिए  न तो केमिस्ट है और न ही लैब टेक्नीशियन। जबकि संभागीय मुख्यालय में केमिस्ट का होना जरूरी है।
लोगों की सेहत के साथ काफी समय से यह खिलवाड़ किया जा रहा है। आए दिन गंदे पानी की सप्लाई की शिकायत मिलती रहती है, लेकिन नगर पालिका प्रशासन इसे गंभीरता से नहीं ले रहा है। शहर में 8 हजार से अधिक जल उपभोक्ता हैं। पूरे शहर में सरफा संयंत्र से ही पेयजल की सप्लाई होती है । जल प्रदाय के लिए दो फिल्टर प्लांट बने हैं। एक पुराना है, जहां से शहर के अधिकतर हिस्से में जल प्रदाय होता है। वहीं दूसरे फिल्टर का अभी ट्रायल चल रहा है। यहां से शहर में नए विकसित इलाकों में जल की सप्लाई की जा रही है। यह प्रोजेक्ट मुख्यमंत्री शहरी पेयजल योजना के तहत 23 करोड़ की लागत से तैयार हुआ है। प्रोजेक्ट के अंतर्गत ही प्लांट में लेबोरेटरी का निर्माण भी हुआ है। बताया जाता है कि अभी लेबोरेटरी नगर पालिका को हस्तांतरित भी नहीं हुई है, लेकिन पानी की टेस्टिंग शुरू कर दी गई है।

सुपरवाइजर के जिम्मे टेस्टिंग
समय-समय पर होने वाली पानी की अलग-अलग टेस्टिंग का काम एक सुपरवाइजर के जिम्मे हैं। सुपरवाइज को किसी तरह का प्रशिक्षण भी नहीं दिया गया है। मुख्यमंत्री शहरी पेयजल योजना के लिए पाइपलाइन आदि का काम करने वाले ठेकेदार ने दो दिन तक टेस्ट करना बताया था, इसके बाद से टेस्टिंग की पूरी जिम्मेदारी सुपरवाइजर के जिम्मे है।

जांच का समय तय नहीं 
नगर पालिका द्वारा पानी की टेस्टिंग के लिए भी कोई अवधि भी तय नहीं है। जब गंदा पानी आता है तभी टेस्टिंग की जाती है। कई बार तो दो-दो महीने तक पानी की जांच नहीं की जाती है और मटमैला पानी ही सप्लाई कर दिया जाता है। आए दिन इस तरह की शिकायत मिलती है। पिछले दिनों शहर के कुछ हिस्सों में करीब एक सप्ताह तक गंदे पानी की सप्लाई हुई थी।

पीएचई करता था टेस्टिंग
पहले नगरीय जल प्रदाय के लिए भी जांच का काम पीएचई विभाग की ओर से किया जाता था, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से यह पूरी तरह से बंद हो गया है। अधिकारियों के मुताबिक सरफेस वाटर के लिए ज्यादा जांच नहीं होती, लेकिन ग्राउंड वाटर की जांच 14 पैरामीटर्स पर की जाती है। प्री-मानसून और पोस्ट मानसून जांच भी होती है। 

नियमित होनी चाहिए जांच
विशेषज्ञों ने बताया कि पानी की नियमित जांच होनी चाहिए। टर्बीडिटी (मटमैलापन) टेस्ट तो माह में एक बार होनी ही चाहिए। टर्बीडिटी टेस्ट के बाद पानी में एलम मिक्स किया जाता है। टर्बीडिटी के हिसाब से ही एलम का डोज तय होता है। इससे पानी का पीएच कम हो जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो पानी एसिडिक हो जाता है। इसे कंट्रोल करने के लिए लाइम (चूना) मिलाया जाता है। इसके अलावा पानी में क्लोरीन का टेस्ट भी किया जाता है। इसमें देखा जाता है कि सप्लाई वाटर में कितनी मात्रा में क्लोरीन है, ताकि स्वास्थ्य के लिए यह नुकसानदायक न हो। ये सारे टेस्ट करने के लिए लैबोरेटरी में केमिस्ट का रहना जरूरी है।

इनका कहना है
पानी की जांच के लिए संयंत्र में केमिस्ट नहीं है। केमिस्ट का पद नियमित होता है, इसके लिए शासन को लिखा गया है। हम अपने स्तर पर केमिस्ट की भर्ती नहीं कर सकते हैं।  -अमित तिवारी, सीएमओ 
 

Created On :   28 Dec 2018 1:16 PM IST

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