दूसरे राज्यों के चुनाव परिणाम से महाराष्ट्र में बदल सकती है स्थिति

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दूसरे राज्यों के चुनाव परिणाम से महाराष्ट्र में बदल सकती है स्थिति

डिजिटल डेस्क, नागपुर। बिहार में विधानसभा चुनाव के परिणाम कांग्रेस के लिए सबसे अधिक चौंकाने वाले रहे हैं। अन्य राज्यों में उपचुनाव के परिणाम भी उनकी उम्मीद से अलग रहे। ऐसे में राज्य में बिहार चुनाव परिणाम को लेकर राजनीतिक हलचल है। सवाल उठाया जाने लगा है कि कहीं मध्य प्रदेश की राजनीति का दांव महाराष्ट्र में तो नहीं चलेगा। चर्चाओं के केंद्र में राकांपा है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, मणिपुर, तेलंगाना के उपचुनाव में कांग्रेस की स्थिति ठीक नहीं रही है।

राज्य में भले ही वह सत्ता में है, लेकिन संख्या बल के मामले में चौथे स्थान पर होने के कारण उसकी स्थिति मजबूत नहीं है। कांग्रेस के मंत्री व विधायक निजी तौर पर शिकायत करते रहते हैं कि उन्हें सत्ता का बल नहीं मिल रहा है। मध्य प्रदेश में कांग्रेस के एक बड़े गुट को अपने साथ लाकर भाजपा ने अपनी सरकार बनाई। उपचुनाव में भाजपा की स्थिति और मजबूत हुई। उसी तरह राज्य में भी राकांपा व कांग्रेस के कुछ नेताओं से सत्ता के नए खेल की उम्मीदें की जाने लगी हैं।

बिहार में वापस लिए कदम
बिहार चुनाव में राकांपा ने अपने कदम वापस लिए थे। पहले तो उम्मीदवार मैदान में उतारने की तैयारी की। उम्मीदवार संबंधी एबी फार्म भी तैयार किए गए। बिहार चुनाव के लिए राकांपा के 24 स्टार प्रचारक भी तैयार हो गए। लेकिन बाद में राकांपा ने वहां के चुनाव में भागीदारी नहीं की। राकांपा के नेता वहां किसी का प्रचार करने भी नहीं गए। इस मामले पर राकांपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रवीण कुंटे कहते हैं कि धर्म निरपेक्ष मतों का विभाजन रोकने के लिए उनके दल ने ऐन समय पर नया निर्णय लिया। 

राकांपा रही है चर्चा में
सत्ता के मामले में राकांपा पहले से ही चर्चा में रही है। 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा व शिवसेना का गठबंधन टूटा था। चुनाव परिणाम आने के बाद भाजपा सबसे बड़े दल के तौर पर सामने आया था। तब शिवसेना प्रमुख विपक्ष की जिम्मेदारी संभालने लगी थी। राकांपा अध्यक्ष शरद पवार ने भाजपा को बिना शर्त समर्थन देने की घोषणा कर दी थी। लिहाजा शिवसेना भाजपा के साथ सत्ता में शामिल हो गई। बाद में साथ रहते हुए भी भाजपा सेना में संबंध तनावपूर्ण होते रहे। 2019 में भाजपा व सेना से मिलकर चुनाव लड़ा।

परिणाम आने के बाद सेना अपनी मांग लेकर गठबंधन तोड़ने की स्थिति में पहुंच गई। ऐसे में राकांपा के ही नेता अजित पवार भाजपा को साथ देने के लिए आगे आए। सुबह के समय भाजपा के देवेंद्र फडणवीस के साथ अजित पवार ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। राकांपा के एक बड़े पदाधिकारी का दावा है कि फिलहाल राकांपा का कोई नेता महाविकास आघाड़ी के बाहर नहीं जाएगा। लेकिन चर्चाओं में यह जरूर दावा किया जा रहा है कि सत्ता के मामले में राकांपा के लिए कोई दल पराया नहीं है।

शिवसेना की स्थिति
शिवसेना की स्थिति वोटकटवा की भी नहीं बन पाई। बिहार चुनाव के लिए शिवसेना ने 50 उम्मीदवारों की घोषणा की थी। लेकिन 23 उम्मीदवार ही मैदान में उतार पाई। उनमें भी 21 उम्मीदवारों को नोटा से भी कम वोट मिले। 2015 के चुनाव में शिवसेना के 80 उम्मीदवार थे। तब कुल 2,11, 131 मत शिवसेना को मिले थे। 7 स्थानों पर वह दूसरे स्थान पर थी। 35 स्थानों पर तो सेना के उम्मीदवार भाजपा के उम्मीदवार से भी आगे थे। इस बार स्थिति एकदम अलग है।

राज्य के नेताओं की स्थिति
बिहार चुनाव में भाजपा के प्रभारी देवेंद्र फडणवीस व कांग्रेस के प्रभारी अविनाश पांडे नियुक्त किए गए थे। दोनों महाराष्ट्र से हैं। उसमें भी नागपुर निवासी हैं। इस चुनाव में फडणवीस की स्थिति कुशल रणनीतिकार के तौर पर बताई जाने लगी है। भाजपा के प्रदेश महासचिव चंद्रशेखर बावनकुले ने कहा है कि बिहार में भाजपा की जीत का श्रेय फडणवीस को भी जाता है। चुनाव परिणाम को लेकर पांडे की स्थिति चाहे जो हो, लेकिन कांग्रेस ने उनकी रणनीति को माना है। मतदान के तत्काल बाद ही पांडे को बिहार के लिए कांग्रेस का पर्यवेक्षक नियुक्त किया गया है।  दावा किया जा रहा है कि पांडे को पहले ही जिम्मेदारी दी जाती तो कांग्रेस की स्थिति अलग रह सकती थी।
 

Created On :   13 Nov 2020 12:34 PM IST

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