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नियमों में उलझा कर जंगल की जमीन पर अतिक्रमण
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डिजिटल डेस्क, नागपुर। वन हक अधिनियम और जंगल के उपयोग से जुड़े नियम जंगल पर आश्रित आदिवासियों और अन्य समुदाय के लोगों को जंगल की जमीन और अन्य वस्तुओं के इस्तेमाल की अनुमति देते हैं, लेकिन नियमों के जाल में उलझा कर और सक्षम अधिकारियों के साथ मिलीभगत से कई शातिर इसका लाभ ले रहे हैं। असली जरूरतमंदों तक इस योजना का लाभ नहीं पहुंच रहा है। इस मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने सू-मोटो जनहित याचिका दायर कर रखी है। मामले में बुधवार को हुई सुनवाई में राज्य सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए कोर्ट को बताया कि अब तक उन्होंने जिला स्तरीय समिति की रिपोर्ट पर गौर करने के बाद 31 हजार 290 आवेदनों को मंजूरी दी है। इसी तरह कुल 4 हजार 858 आवेदन खारिज भी किए गए हैं। इधर न्यायालयीन मित्र ओमकार देशपांडे वन अधिकार योजना से जुड़ी जमीन पर अतिक्रमण का ब्योरा प्रस्तुत करने के लिए कोर्ट से चार सप्ताह का समय मांगा। मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद रखी गई है।
यह है मामला?
याचिकाकर्ता के अनुसार, शेड्यूल ट्राइब्स एंड अदर फॉरेस्ट ड्वेलर्स एक्ट के तहत किसी वन क्षेत्र में कई पीढ़ियों से रह रहे आदिवासियों व अन्य समुदायों के वन हक की रक्षा का उल्लेख है और उन्हें वन संपत्ति के इस्तेमाल के अधिकार भी दिए गए हैं। लेकिन इस अधिनियम का दुरुपयोग भी जम कर हो रहा है। कई लोग प्रभावित न होने के बावजूद सरकारी अधिकारियों के संरक्षण से इस योजना का लाभ रहे रहे हैं और जो वाकई जरूरतमंद हैं, वे असली लाभ से वंचित हैं। वन हक अधिनियम के तहत जंगल के इस्तेमाल के लिए कौन पात्र है और कौन नहीं यह स्पष्ट किया गया है। इसमें उल्लेख है कि कोई भी महज अनुसूचित जनजाति समुदाय या फिर तीन पीढ़ियों से संबंधित क्षेत्र मंे रहने के कारण लाभार्थी की श्रेणी मंे नहीं आ सकता। बल्कि उसे यह साबित करना होता है कि उसका परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी उसी वन क्षेत्र में बसा है और उसकी आजीविका जंगल पर ही निर्भर करती है। कई लोगों ने जंगल के बहुत बड़े हिस्से पर स्वयं को लाभार्थी दर्शा कर अतिक्रमण कर रखा है। याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट से इस योजना में पारदर्शिता लाने के लिए योग्य आदेश जारी करने की प्रार्थना की है।
Created On :   14 Feb 2019 12:17 PM IST