बच्चे के इलाज के लिए शंकरबाबा पापड़कर की मानस पुत्री को गिरवी रखने पड़े गहने

For the treatment of the child, the Manas daughter of Shankarbaba Papadkar had to mortgage the ornaments.
बच्चे के इलाज के लिए शंकरबाबा पापड़कर की मानस पुत्री को गिरवी रखने पड़े गहने
नहीं मिली कहीं मदद बच्चे के इलाज के लिए शंकरबाबा पापड़कर की मानस पुत्री को गिरवी रखने पड़े गहने

डिजिटल डेस्क,अमरावती । अनाथों के पिता शंकरराव पापड़कर की मानसपुत्री को अपने पुत्र का इलाज करने के लिए कहीं से भी मदद न मिलने पर गहने गिरवी रखने पड़े।  अचलपुर तहसील के वझ्झर फाटा के स्व. अंबादासपंत वैद्य मूकबधिर मतिमंद अनाथ बालगृह में पालनपोषण के बाद विवाहित हुई वर्षा की कोख से बेटे का जन्म होने के बाद उसकी हालत चिंताजनक रहने और इलाज के लिए पास में पैसा न रहने पर शंकरबाबा पापड़कर की इस मानस पुत्री और उसके मूकबधिर पति ने मंगलसूत्र और कन्यादान में मिला सामान गिरवी रख अपने मासूम बेटे की जान बचाई। साथ ही निजी अस्पताल का बिल शंकरबाबा के कहने पर सिविल सर्जन डा. श्यामसुंदर निकम द्वारा अदा किए जाने के बाद पिछले डेढ़ माह से अस्पताल में इलाज चल रहे इस मूकबधिर दंपति के मासूम बेटे को उनके हवाले किया गया। मासूम सकुशल घर लौटने से अनाथों के नाथ शंकरबाबा और उनकी मानस पुत्री के चेहरे खिल उठे।

जानकारी के अनुसार जन्म के समय बच्चे का वजन केवल 1400 ग्राम था। इस कारण से गाडगेनगर के बालरोग विशेषज्ञ के अस्पताल में भर्ती किया गया। जहां प्रतिदिन का 5 हजार रुपए खर्च था। यह जानते ही शंकरबाबा अपनी मानसपुत्री वर्षा व उसके पति समीर की आर्थिक स्थिति को देख मासूम का इलाज कराने पैसों की व्यवस्था कैसे करना इस चिंता में आ गए। लेकिन अब उनकी मानसपुत्री के मंगलसूत्र सहित अन्य गहने और शंकरबाबा की मां के पुराने आभूषण एक साहूकार के पास गिरवी रख अस्पताल में पैसे जमा किए गए। 5 नवंबर को जिलाधीश पवनीत कौर ने अस्पताल पहुंचकर मासूम के स्वास्थ्य के बारे में पूछताछ की और उसका विशेष ध्यान रखने की सूचना डाक्टरों को दी। करीबन डेढ़ माह तक इस मासूम को अपनी मां से दूर रखा गया। लेकिन डाक्टरों के अथक प्रयास से मासूम बच्चे का वजन 2500 ग्राम हो गया। पश्चात इस मासूम ने मां का दूध  प्राशन करना शुरू किया। जिससे शंकरबाबा सहित सभी लोग खुश हो गए।

25 नवंबर को अस्पताल से शंकरबाबा को सूचना दी कि वह अब बच्चे को घर ले जा सकते हंै। डेढ माह का बिल 1 लाख 50 हजार रुपए अदा करना होगा। तब शंकरबाबा चिंतित हो गए। उन्होंने चार-पांच लोगों से सहायता भी मांगी। लेकिन कोई सामने न आने पर आखिरकार शंकरबाबा ने जिला शल्यचिकित्सक डा.श्यामसुंदर निकम से गुरुवार की रात संपर्क कर इस बाबत जानकारी दी। तब डा. निकम ने इस बाबत चिंता न करने की बात शंकरबाबा पापड़कर से कही और तत्काल बालरोग विशेषज्ञ से संपर्क कर  बातचीत की। पश्चात शुक्रवार को अस्पताल के डाक्टरों ने शंकरबाबा से संपर्क कर उन्हें मासूम को अस्पताल से घर ले जाने को कहा। अस्पताल का बिल डा. निकम ने अदा करने की जानकारी भी दी। जिला शल्यचिकित्सक द्वारा दिखाई गई इस मानवता पर शंकरबाबा ने कृतज्ञता व्यक्त की। मानसपुत्री वर्षा और उसका पति समीर अस्पताल से बेटे को गोद में लेकर सीधे वझ्झर ग्राम पहुंचे। जहां उन्होंने अपने अपने पिता शंकरबाबा से भेंट कर उनका आशीर्वाद लिया। 

डाक्टरों ने बचाया बच्चे को 
बालरोग विशेषज्ञ के दल के अथक प्रयासों से मेरे पोते की जान बच पाई और बच्चे में किसी तरह की दिव्यांगता नहीं आई है। पोते को अथक प्रयासों से डाक्टरों द्वारा सकुशल बचाए जाने पर उनका मैं अपने 123 दिव्यांग बच्चों की तरफ से आभार मानता हूं।  - शंकरबाबा पापड़कर

Created On :   27 Nov 2021 8:47 PM IST

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