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"अवनि' शिकार मामले में वन विभाग को सप्ताहभर की मोहलत
डिजिटल डेस्क, नागपुर। वर्ष 2018 में बाघिन "अवनि" शिकार प्रकरण में वन विभाग द्वारा अपनाई गई कार्यप्रणाली पर बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने एक सप्ताह में वन विभाग से जवाब मांगा है। हाईकोर्ट ने यह भी पूछा है कि "अवनि" शिकार के बाद वन विभाग ने ऐसे हादसे रोकने के लिए क्या एहतियात बरते? हाईकोर्ट ने अर्थ ब्रिगेड फाउंडेशन की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान सोमवार को यह आदेश दिए हैं। याचिकाकर्ता ने "अवनि" प्रकरण में वन विभाग की कार्यशैली पर सवाल खड़े किए हैं। आरोप है कि प्रिलिमनरी ऑफेंस रिपोर्ट (पीओआर) जो तैयार की थी, वह अधूरी थी। उसमंे कई जरूरी जानकारियां नजरअंदाज की गईं। साथ ही, इस मामले में फॉरेंसिक रिपोर्ट भी पूरी तरह पुख्ता नहीं है। मामले में याचिकाकर्ता की ओर से एड.श्रीरंग भंडारकर व एड.सेजल लाखानी, वन विभाग की ओर से एड.कार्तिक शुकुल और शूटर शफत अली खान की ओर से एड. राहिल मिर्जा ने पक्ष रखा।
2 नवंबर 2018 को बाघिन को मारी गई थी गोली, वन विभाग की कार्यशैली पर सवाल
हाईकोर्ट ने पूछा - "अवनि" शिकार के बाद वन विभाग ने ऐसे हादसे रोकने के लिए क्या एहतियात बरते?
ये है आरोप : पर्यावरण प्रेमी संस्था अर्थ ब्रिगेड फाउंडेशन ने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में फौजदारी रिट याचिका दायर कर मामले की एसआईटी जांच की मांग की है। साथ ही, हाईकोर्ट से विनती की है कि वे "अवनि" को गोली मारने वाले शूटर शफत अली खान, असगर अली खान, उप-वन संरक्षक मुखबिर शेख, पशु वैद्यकीय अधिकारी डॉ. बी.एम. कडू के खिलाफ फौजदारी कार्रवाई शुरू करने के आदेश राज्य सरकार और एनटीसीए को जारी करे। याचिकाकर्ता के अनुसार, प्रदेश में वन्यक्षेत्रों में मानवी दखल खासा बढ़ गया है। इसी चलते यवतमाल के पांढरकवड़ा में 13 लोगों की मृत्यु हो गई। वन विभाग ने बगैर पुष्टि किए "अवनि" को इन हादसों का जिम्मेदार मान लिया और उसे गोली मारने के आदेश जारी किए गए। कोर्ट ने केवल बाघिन और उसके शावकों को बेहोश करके पकड़ने और अंतिम उपाय स्वरूप ही बाघिन को गोली मारने को कहा था। लेकिन इसके बाद भी 2 नवंबर 2018 को "अवनि" बाघिन को गोली मार दी गई।
Created On :   19 Jan 2021 9:16 AM GMT