विदेशों में है डिमांड खादी के वस्त्रों की , ‘अहिंसक वस्त्रम’से मिला सैकड़ों को रोजगार

Gandhiji recognized Khadi With this, people got employment on a large scale
विदेशों में है डिमांड खादी के वस्त्रों की , ‘अहिंसक वस्त्रम’से मिला सैकड़ों को रोजगार
विदेशों में है डिमांड खादी के वस्त्रों की , ‘अहिंसक वस्त्रम’से मिला सैकड़ों को रोजगार

डिजिटल डेस्क, नागपुर। गांधी जी ने खादी को पहचान दी। इससे बड़े पैमाने पर लोगों को रोजगार मिला। एक समय ऐसा दौर आया जब खादी की मांग कम होने से इसके उत्पादन से लेकर बिक्री तक पर बुरा असर पड़ा। आज जागरूकता कहें या लोगों का आकर्षण खादी के प्रति लोगों की सोच बदली है और नागपुर की अहिंसक वस्त्रम् टीम भी आईआईएम अहमदाबाद और विप्रो कंपनी की नौकरी छोड़कर खादी वस्त्र को बढ़ावा देने में जुट गया है। इनके वस्त्र विदेशों तक भेजे जा रहे हैं। ये युवा जो वस्त्र बनवा रहे हैं, उसका नाम ‘अहिंसक वस्त्रम’ दिए हैं। इनके कारण सैकड़ों लोगों को रोजगार भी मिला है। नागपुर के ये युवा गांवों में बुनकरों को धागा देते हैं, और कताई करने वालों को सूत देते हैं। ये वही धागा इस्तेमाल करते हैं, जो अहिंसक तरीके से बना हो। इसमें किसी जीव की हत्या न हो। टीम में आदित्य जैन, पारस जैन, डॉ. मंजू जैन व अन्य लोग शामिल हैं। 

नए लुक में पेश कर रहे
टीम का कहना है कि हथकरघा और खादी भारतीय लोगों के रोजगार का मुख्य हिस्सा है। युवा पीढ़ी को आकर्षित करने के लिए खादी के कपड़े को नए लुक में पेश कर रहे है़ं। आदित्य व पारस ने बताया कि हम शुद्ध व अहिसंक तरीकों से धागा बनाते हैं, इसमें वानस्पतिक रंगों का इस्तेमाल करते हैं, इसके बनाने में किसी प्रकार से जीव प्रभावित नहीं होते हैं। हम लोग स्वयं धागा बनाना भी सीख रहे हैं। टीम के मेंबर पारस जैन विप्राे कंपनी की नौकरी छोड़ चुके हैं और हैंडलूम के लिए काम कर रहे हैं। इनकी टीम में डॉ. मंजू जैन, डॉ. अर्चना जैन, डॉ. कविता जैन, डॉ. संगीता, अंकित गोगंले, ग्रीष्मा, रूचा काले, वकील इदरीस, सलाम भाई, आदित्य जैन अादि शामिल हैं। 

नागपुर में बने कपड़े करते हैं एक्सपोर्ट
बुनकरों की हालत बहुत ही खराब थी, क्योंकि बुनकरों के रोजगार का साधन हथरकरघा मरणासन्न हो चुका है। हम नागपुर व उसके आसपास के इलाकों के बुनकरों से मिले और एक-एक को जोड़ना शुरू किए। हमने सोचा था कि हमें खादी को प्रमोट करना है। नागपुर में ही धागा बने, रंगाई हो और खादी का कपड़ा बने, और ऐसा हुआ भी। अब हम नागपुर से खादी के कपड़ों को विदेश में एक्सपोर्ट कर रहे हैं। हम खादी के कपड़ों पर काम कर रहे हैं। इसके लिए हमने बुनकरों को रॉ मटेरियल उपलब्ध करवाया, ताकि वो अपनी समझ और टैलंेट के दम पर आज के फैशन के अनुरूप खादी के फैशनेबल कपड़े तैयार कर सकें। हम अभी शर्ट एक्सपोर्ट कर रहे हैं, जो नागपुर में ही तैयार किए गए हैं।  (आदित्य जैन)

इंडो-वेस्टर्न में पेश कर रहे
हमने कई युवा बुनकरों को चरखे दिए हैं, ताकि वे सूत कात सकें। हम उन्हें ऐसे खादी बनाने को कह रहे हैं, जिसमें कोई कमी न रह जाए। अक्सर कुछ भी कमी रह जाने पर ऑर्डर वापस आ सकते हैं। हमने कामठी, रनाला, कलमना, रामटेक व  अन्य इलाकों के करीब 700 लोगों को राेजगार दिया है, ताकि वे अपनी संस्कृति और खादी से जुड़ जाएं। आचार्य विद्यासागर जी महाराज के आशीर्वाद से हमने अहिंसक वस्त्रम् का निर्माण किया है, ताकि लोगों को शुद्ध, अहिंसक वस्त्र पहनने को मिले। इसे अब इंडो वेस्टर्न में पेश किया जा रहा है। (पारस जैन, टीम मेंबर)

Created On :   2 Oct 2018 1:16 PM IST

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