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युवाओं को शोषण से बचाना सरकार का कर्तव्यः हाईकोर्ट

डिजिटल डेस्क, मुंबई। राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांत के तहत युवाओं को शोषण से बचाना सरकार के लिए अनिवार्य है। इसके बावजूद दुष्कर्म का शिकार एक नाबालिग लड़की को रेलवे प्लेटफॉर्म पर भटकने के लिए छोड़ना बेहद हैरानीपूर्ण है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने दुष्कर्म के आरोपी के जमानत आवेदन पर सुनवाई के दौरान यह बात कही। न्यायमूर्ति भारती डागरे ने मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद पाया कि पीड़िता के साथ चलते ऑटोरिक्शा में दुष्कर्म किया गया। काले पर्दे से ढके ऑटोरिक्शा में लड़की की चीख सुनने के बाद सड़क से गुजर रहे युवक ने ऑटो को रोका था। इसके बाद वहां ट्रैफिक पुलिस पहुंच गई। लड़की को छुड़ाया गया और आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया। साल 2018 की इस घटना को लेकर पुलिस ने आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 354,363, 376 व पाक्सो कानून की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया। 33 महीनों से जेल में बंद आरोपी ने हाईकोर्ट में जमानत के लिए आवेदन दायर किया है।
सुनवाई के दौरान आरोपी के वकील ने कहा कि पीड़िता औरऑटोरिक्शा ड्राइवर एक दूसरे के परिचित थे। दोनों के संबंध सहमति से बने थे। पीड़िता की उम्र 18 साल है। मेरा मुवक्किल 33 महीने से जेल में बंद है। इसलिए उन्हें जमानत दी जाए। जबकि अभियोजन पक्ष के मुताबिक पीड़िता की उम्र 16 साल थी। वह अंधेरी रेलवे प्लेटफार्म के पास रहती है। मेडिकल जांच में गर्भवती भी पायी गई है। इसके अलावा जब पीड़िता को छुड़ाया गया तो वह नशे में थी। इन तथ्यों को जानने के बाद न्यायमूर्ति ने सरकारी वकील से पीड़िता की मौजूदा स्थिति के बारे में पूछा। पुलिस अधिकारी से जानकारी लेने के बाद सरकारी वकील ने कहा कि पीड़िता अभी भी अंधेरी प्लेटफॉर्म पर रहती है।
इस बात को जानने के बाद न्यायमूर्ति ने हैरानी जाहिर की और कहां की राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांतो के तहत युवाओं को शोषण से बचना एक राज्य के लिए अनिवार्य है। इस मामले से जुडी पीड़िता तो नाबालिग है। लिहाजा उसे सुधारगृह ले जाना चाहिए था। बाल न्याय बोर्ड से मदद लेनी चाहिए थी। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि प्रकरण से जुड़े पुलिस अधिकारी को इस कानून के बारे में जानकारी ही नहीं है।
न्यायमूर्ति ने कहा कि पुलिस ने पीड़िता के नाबालिग होने का दावा किया है लेकिन उसकी उम्र का पता लगाने के लिए ओसिफिकेशन जांच तक नहीं कराई गई है। इसके अलावा आरोपी का डीएनए टेस्ट भी नहीं हुआ है। इन तमाम पहलुओं पर गौर करने के बाद अदालत ने कहा कि महिलाओं से जुड़े व खासतौर से नाबालिग के मामलों के देखने वाले सभी संबंधित लोगों को आत्मपरीक्षण करने की जरूरत है। न्यायमूर्ति ने फिलहाल पुलिस को मामले में गलती सुधारने का मौका दिया है। इसके साथ ही आरोपी को इंतजार करने को कहा है और मामले की सुनवाई 15 अप्रैल 2021 तक के लिए स्थगित कर दी है।
Created On :   3 April 2021 6:02 PM IST