"गोवारी' और "गोंड-गोवारी' अलग-अलग, गोवारी अनुसूचित जनजाति के लाभ नहीं ले सकते -SC

Gowari and Gond-Gowari separately, Gowari cannot take the benefit of ST -SC
"गोवारी' और "गोंड-गोवारी' अलग-अलग, गोवारी अनुसूचित जनजाति के लाभ नहीं ले सकते -SC
"गोवारी' और "गोंड-गोवारी' अलग-अलग, गोवारी अनुसूचित जनजाति के लाभ नहीं ले सकते -SC

डिजिटल डेस्क,नागपुर।  देश की सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि "गोवारी" जाति और "गोंड-गोवारी" जाति एक नहीं, बल्कि अलग-अलग हैं। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ द्वारा इन दोनों जातियों को एक मानना गलत निर्णय था। सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि "गोवारी" जाति आदिवासी नहीं है, इसलिए उन्हें अनुसूचित जनजाति प्रवर्ग में नहीं रखा जा सकता। महाराष्ट्र सरकार द्वारा उन्हें पिछड़ा वर्ग में रखने का निर्णय सही है। न्या. अशोक भूषण, न्या.सुभाष रेड्डी और न्या. एम.आर. शाह की खंडपीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि नागपुर खंडपीठ के 14 अगस्त 2018 के आदेश के बाद गोवारी समाज के व्यक्तियों को अनुसूचित जनजाति के प्रमाणपत्र दिए गए थे। इस आधार पर कई विद्यार्थियों ने शिक्षा संस्थानों में प्रवेश ले लिया है और कई युवा नौकरी पर लग गए हैं। वे अपनी पढ़ाई और नौकरी जारी रख सकते हैं, लेकिन कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि यह संरक्षण सिर्फ मौजूदा कोर्स में पढ़ाई और नौकरी के लिए है। इसके अलावा इस श्रेणी के उम्मीदवारों को अनुसूचित जनजाति के कोई लाभ नहीं मिलेंगे।

ये था नागपुर खंडपीठ का निर्णय
नागपुर खंडपीठ ने 14 अगस्त 2018 को दिए अपने फैसले में "गोवारी"और "गोंड-गोवारी" एक ही माना था। नागपुर खंडपीठ का मानना था कि, गोवारी समुदाय को अनुसूचित जनजाति के सभी लाभ मिलने चाहिए। नागपुर खंडपीठ ने आदिवासी गोंड-गोवारी (गोवारी) सेवा मंडल व अन्य की याचिका पर यह फैसला लिया था। राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के इस आदेश के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय की शरण ली थी। 

ऐसे बदलती रही श्रेणी
दरअसल, 15 जून 1995 के जीआर के तहत गोवारी प्रवर्ग को राज्य सरकार ने विशेष पिछड़ा वर्ग की श्रेणी में डाला था। केंद्र सरकार ने भी 15 जून 2011 को गोवारी को पिछड़ा वर्ग का दर्जा दे दिया था। ऐसे में गाेवारी प्रवर्ग को प्रदेश में पिछड़ा वर्ग के लाभ दिए जा रहे थे, लेकिन फिर नागपुर खंडपीठ में दायर याचिका में मुद्दा उठा कि, 24 अगस्त 1985 तक गोवारी वर्ग के लोगों को "गोंड-गोवारी" के तहत जाति प्रमाण-पत्र दिया जाता था, लेकिन इसके बाद सरकार ने परिपत्रक जारी किया, जिसमें गोंड और गोवारी वर्ग को अलग-अलग परिभाषित किया गया। याचिकाकर्ता ने इसी परिपत्रक को चुनौती दी थी। इस पर नागपुर खंडपीठ ने अपना फैसला दिया। अब सर्वोच्च न्यायालय ने इसे पलट कर राज्य सरकार के निर्णय को सही करार दिया है।

Created On :   19 Dec 2020 2:10 PM IST

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