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सिर्फ 150 पुलिस वाहनों पर जीपीएस सिस्टम, 600 अभी भी लोकेशन से दूर

डिजिटल डेस्क, नागपुर। शहर पुलिस विभाग के अधिकारी-कर्मचारी को कंट्रोल रूम से किसी घटना के बारे में जानकारी देने पर वह घटनास्थल पर पहुंचे या नहीं, इस बारे में पहले पता नहीं चल पाता था, लेकिन जीपीएस सिस्टम प्रणाली ने पुलिस कंट्रोल रूम की इस दुविधा को दूर कर उसे सुविधाजनक बना दिया है। अब पुलिस कंट्रोल रूम को यह तत्काल पता चल जाता है कि कौन सा वाहन किस दिशा में कितनी दूरी पर और कहां खड़ा है? वायरलेस विभाग से जुड़े सूत्रों के अनुसार शहर पुलिस विभाग अभी सिर्फ 150 पुलिस वाहनों में ही जीपीएस (ग्लाेबल पोजिशन सिस्टम) लगा पाया है, जबकि पुलिस विभाग के पास लगभग 850 वाहन हैं। वायरलेस विभाग से जुड़े सूत्रों का कहना है कि हर पुलिस वाहन में जीपीएस सिस्टम को नहीं लगाया जा सकता है। यह सिस्टम सीधे तौर पर पुलिस कंट्रोल रूम के 100 नंबर से जुड़े हैं। जीपीएस सिस्टम से जुड़े वाहनों की लोकेशन जल्दी से पता चल जाती है। एक वाहन में जीपीएस को लगाने के लिए करीब 10 लाख रुपए का खर्च आता है। इसलिए पुलिस विभाग ने यह सिस्टम सिर्फ चुनिंदा ही वाहनों में लगाया है, जो पुलिस नियंत्रण कक्ष से सीधे तौर पर जुड़े हैं।
सिस्टम से आएगी पारदर्शिता
शहर के 30 थानों में 90 पुलिस गश्तीदल वाहनों, 24 सीआर मोबाइल वाहन, बीटमार्शल, विशेष पुलिस शाखा दल, अपराध शाखा पुलिस विभाग, भरोसा सेल व अन्य पुलिस शाखा विभाग के 30 वाहन सहित 150 पुलिस वाहन शामिल हैं। इस सिस्टम को पुलिस का वायरलेस विभाग लगाने का कार्य करता है। जीपीएस लगे 20 वाहन बंद पड़े थे। इन वाहनों को दुरुस्ती के लिए एमटीओ (पुलिस परिवहन वर्कशॉप विभाग) में दुरुस्ती के लिए भेज दिया गया है। एमटीओ विभाग के पुलिस निरीक्षक अजीत देशपांडे ने बताया कि उनके यहां आने वाले वाहनों को 3 से 4 घंटे में दुरुस्त कर भेज दिया जाता है। उसमें जीपीएस लगा है या नहीं यह बात उनके विभाग को नहीं पता है। जीपीएस के कारण पुलिस कंट्रोल रूम में बैठे पुलिस अधिकारी-कर्मचारी को सैटेलाइट के माध्यम से दिखाई पड़ जाता है कि कौन सा वाहन कहां पर है। एमटीओ ने जीपीएस लगे वाहनों को दुरुस्त कर वापस भेजा या नहीं यह उनका अंदरुनी मसला है। नागपुर शहर पुलिस विभाग के बचे हुए वाहनों में जीपीएस लगाए जाने से पुलिस अधिकारियों-कर्मचारियों के कार्य करने की प्रणाली में और पारदर्शिता आ सकती है।
ऐसे कर सकते हैं जीपीएस ट्रैकिंग का उपयोग
जीपीएस ट्रैकिंग सिस्टम पुलिस विभाग की सेवा की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए बेहतर विकल्प है। यह तकनीक व्यक्तिगत इकाइयों और मुख्यालय रियल-टाइम डेटा प्रदान करती है, जिसके परिणामस्वरूप अधिक प्रभावी और कुशल पुलिस कार्य होता है। पुलिस अपने रोजमर्रा के काम में कई तरीकों से जीपीएस तकनीक का उपयोग कर सकती है। पुलिस विभागों द्वारा चार तरीकों से जीपीएस ट्रैकिंग का उपयोग किया जा सकता है। जीपीएस ट्रैकिंग उपकरणों से डेटा दिखा सकता है कि कौन सा पुलिस वाहन घटनास्थल के करीब है। प्रत्येक पुलिस स्क्वाड वाहन को ट्रैक किया जा सकता है। विभाग प्रमुख अधिकारी अपने टैब के माध्यम से नजर रख सकता है। अपराध के खिलाफ लड़ने में जीपीएस ट्रैकिंग सिस्टम भी सहायक है।
वायरलेस विभाग को जानकारी नहीं
एमटीओ के पास कुछ वाहन दुरुस्ती के लिए आए थे। उसमें जीपीएस लगा था या नहीं यह बात मुझे नहीं पता है। जीपीएस लगाने का काम वायरलेस विभाग ही करता है। एमटीओ के पास जो वाहन दुरुस्ती के लिए आते हैं। उन्हें 3-4 घंटे में दुरुस्त कर वापस भेज दिया जाता है। मेरे पास रोजाना 8 से 9 वाहन ही दुरुस्ती के लिए आ रहे हैं। पुलिस विभाग के पास 850 वाहन हैं, इसमें 8 या 9 वाहन दुरुस्ती के लिए आना कोई बड़ी बात नहीं है। एमटीओ में आने वाले वाहनों को दुरुस्त कर भेज दिया जाता है। शायद यह जानकारी वायरलेस विभाग को नहीं है।
- अजीत देशपांडे, पुलिस निरीक्षक, एमटीओ विभाग
कोई झूठ नहीं बोल सकता है
जीपीएस लगे वाहनों में सवार अधिकारी-कर्मचारी झूठ नहीं बोल सकता है। पुलिस कंट्रोल के पास जीपीएस लगे वाहनों के बारे में सारी जानकारी मौजूद है। कौन सा वाहन किस दिशा में गतिमान है या खड़ा है। इस बारे में उसे तत्काल पता चल जाता है। यह प्रणाली काफी महंगी है। फिलहाल 150 वाहनों में जीपीएस लगाए गए हैं, जो सीधे पुलिस कंट्रोल रूम से जुड़े हैं। इसमें 20 वाहनों का सिस्टम बंद है। - जितेंद्र नवनीत, प्रभारी सहायक पुलिस आयुक्त, वायरलेस विभाग नागपुर
Created On :   29 Nov 2018 1:04 PM IST