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बेटियां पैदा होने पर प्रताड़ना, आत्महत्या के लिए मजबूर करने वाले पति को सजा

डिजिटल डेस्क,मुंबई। दो बेटियां होने के चलते पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने वाले व दूसरी महिला से संबंध बनानेवाले पति को बांबे हाईकोर्ट ने 24 साल बाद जेल भेजा है। हाईकोर्ट ने कहा कि इस तरह के गंभीर मामले में हम आरोपी के प्रति कोई नरमी नहीं दिखा सकते हैं। क्योंकि उसकी क्रूरता के चलते दो जीवन खत्म हो गए हैं। इसलिए भले ही आरोपी अपील पर सुनवाई के दौरान 1997 से जमानत पर था पर अब हम आरोपी के प्रति नरमी नहीं दिखा सकते। इस तरह से हाईकोर्ट ने आरोपी पति को पत्नी के साथ क्रूरतापूर्ण बर्ताव करने के लिए उसे 24 साल बाद जेल भेजा है। निचली अदालत ने आरोपी को इस मामले में तीन साल के कारावास की सजा सुनाई थी जिसे हाईकोर्ट ने कायम रखा है।
हाईकोर्ट ने मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद पाया कि आरोपी रामदास कलटकर की बदसलूकी व क्रूरता से तंग आकर उसकी पत्नी जनाबाई ने अपनी छोटी बच्ची के साथ कुंए में कूद कर 9 अक्टूबर 1992 को आत्महत्या कर ली थी। जबकि एक बेटी की पहले ही दुर्घटना में मौत हो गई थी। पहली बेटी की मौत के बाद जब जनाबाई ने दोबारा बेटी को जन्म दिया तो उसके ससुरालवाले उसके साथ अमानवीय बर्ताव करने लगे। उसके पति ने दूसरी महिला को अपने साथ रख लिया। जिससे उसे एक बेटा भी हुआ।इसके बाद पति के अमानवीय व्यवहार व दूसरी महिला की बदसलूकी से तंग आकर जनाबाई ने बेटी के साथ आत्महत्या कर ली।
1997 में सत्र न्यायालय ने आरोपी कलटकर को भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए व 306 के तहत दोषी ठहराते हुए तीन साल के कारावास की सजा सुनाई थी। सत्र न्यायालय के फैसले के खिलाफ कलटकर ने हाईकोर्ट में अपील की थी। न्यायमूर्ति अनूजा प्रभुदेसाई के सामने अपील पर सुनवाई हुई। इस दौरान आरोपी के वकील ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने मेरे मुवक्किल के खिलाफ जो सबूत पेश किए हैं वह उन पर लगाए गए आरोपों को साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। इसलिए मेरे मुवक्किल पर लगाया गया क्रूरता व आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप साबित नहीं होता है। किंतु न्यायमूर्ति ने मामले से जुड़े सबूतों पर गौर करने के बाद कहा कि बेटियां होने के चलते जनाबाई को शारिरिक व मानसिक यातना का सामना करना पडा।
न्यायमूर्ति ने कहा कि एक आम धारणा के तहत विवाहित महिला को पराया धन माना जाता है। विवाह के बाद ससुराल को ही स्त्री का असली जगह माना जाता है। फिर चाहे भले ही उसे ससुराल में क्यों न यातना झेलनी पड़े। इसी धारणा के चलते जनाबाई को उसके पिता व भाई ने दोबारा अपने ससुराल भेजा जहां वह खुश नहीं थी और जब उसके पति व उसके साथ रहनेवाली महिला की बदसलूकी उसे असहनीय लगने लगी तो उसने अपनी बेटी के साथ आत्महत्या कर ली। अभियोजन पक्ष की ओर से पेश किए गए सबूत आरोपी पर लगे आरोपों को साबित करते है।इसलिए निचली अदालत के आरोपी को दोषी ठहराने के आदेश को कायम रखा जाता है। कोर्ट के इस फैसले बाद आरोपी के वकील ने कहा कि मेरे मुवक्किल 1997 से जमानत परहै इसलिए नरमी दिखाई जाए। किंतु न्यायमूर्ति ने मामले की गंभीरता को देखते हुए आरोपी के प्रति नरमी दिखाने से इनकार कर दिया।
Created On :   25 Dec 2021 6:45 PM IST