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नए कानून में संकुचित है मनोरोग की व्याख्या, केंद्र को हाईकोर्ट का नोटिस

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने मेंटल हेल्थ कानून में मनोरोग की संकुचित व्याख्या किए जाने को लेकर दायर याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। हाईकोर्ट ने यह नोटिस इंडियन साइकेट्रिक सोसायटी की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के बाद जारी किया है। याचिका में मेंटल मानसिक स्वास्थ्य कानून-2017 के प्रावधानों की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है। याचिका में साफ किया गया है कि मेंटल हेल्थ कानून का उद्देश्य मनोरोगियों के अधिकारों को संरक्षण प्रदान करना है, लेकिन इसके कुछ प्रावधान अपने आप में विरोधाभासी नजर आते हैं।
कानून में मनोरोग को लेकर जो परिभाषा दी गई है वह संकुचित है। जिसके कारण कई मनोरोगी मेंटल हेल्थ कानून के दायरे के बाहर हो गए हैं। इसलिए मनोरोगियों के हित को प्रभावित करने वाले प्रावधानों को निरस्त किया जाए। क्योंकि नए कानून में हताशा व भ्रांति को मनोरोग नहीं माना गया है। इसके अलावा कानून में ऐसी कई स्थितियां दर्शायी गई हैं, जो संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ है।
याचिका में मेंटल हेल्थ कानून की धारा 2 (एस) व धारा 85 (2) के प्रवाधानों को चुनौती दी गई है। याचिका में मनोरोगी को बिजली का झटका देने को लेकर किए गए प्रावधानों पर भी आपत्ति जताई गई है। सोमवार को जस्टिस नरेश पाटील व जस्टिस गिरीष कुलकर्णी की बेंच के सामने याचिका सुनवाई के लिए आयी। याचिका पर गौर करने के बाद केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया और याचिका में उठाए गए मुद्दों पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा है।
Created On :   4 Jun 2018 6:08 PM IST